Saturday, 20 September 2025

Pavitra Bijak : Pragya Bodh : Basant : 10 : 5

पवित्र  बीजक  : प्रग्या बोध : बसंत  : 10 : 5

बसंत  : 10 : 5

संसारी  माते  माया  के  धार , राजा  माते  करी  हंकार  ! 

शब्द  अर्थ  : 

संसारी  माते  = संसारी  लोगोंके  लिये  ! माया  के  धार  = माया  मोह तृष्णा  ग्रस्त   !  राजा  माते  = राजा  , बडे  लोग  रइस  के  लिये  ! करि  अहंकार  = अहंकार कारते है ! 

प्रग्या  बोध  : 

परमात्मा  कबीर  बसंत  के  इस  पद  में  बताते  है  की  संसार  के  लोग  मोह  माया  इच्छा  तृष्णा  ग्रस्त  है  उसके  गुलाम  है  ! जो  नही  है  उसे  पाने  के  लिये  कुछ  भी  करने  के  लिये  तय्यार  हो  जाते  चाहे  वो  जायज  हो  य़ा  ना  जयाज  , धर्म  हो  या  अधर्म  , उसके  परिणाम   की  भी  चिंता  नही  करते  है  वैसे  ही  राजा  ,श्रीमंत  लोग  भी  अधिक  हाव  इच्छा  तृष्णा  चाहत  के  गुलाम  है  और  उनके पास ज़रूरत  से  जादा  होने  के  कारण  अहंकारी  , झूठी  शान  अनावश्यक  शेखी  के  गुलाम  हो  जाते  है  ! इच्छा  के  रूप  दोनो  स्तिथी  चाहे  गरीबी  हो  या  अमिरी  संसारी  हो  या  संन्यासी  सब  को  अधर्म  की  तरफ  ले  जाती  है  ! कबीर  साहेब  अती  से  बचने  की  शिक्षा  देते  है  ! 

धर्मविक्रमादित्य  कबीरसत्व  परमहंस 
दौलतरां 
जगतगुरू  नरसिंह  मुलभारती 
मुलभारतिय  हिन्दूधर्म  विश्वपीठ 
कल्याण , अखण्ड  हिन्दुस्तान  , शिवशृष्टी

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