बसंत : 8 : 2
कपरा न पहिरे रहै उधारि , निर्जिव से धनि अति रे पियारि !
शब्द अर्थ :
कपरा न पहिरे = कपडे , अंगवस्त्र न पहने ! रहै उधारी = रहे निर्वस्त्र , नंगी ! निर्जिव = भोग वस्तु , धन संपत्ती , अहंकार ! अति रे पियारि = अती प्रेम , लालच माया मोह !
प्रग्या बोध :
परमात्मा कबीर बसंत के इस पद में माया का वर्णन करते हुवे बताते है माया बेशर्म होती है , नंगी बिना वस्त्र लाज शरम के घुमती रहती है और चेतान राम अर्थात जीव से प्यार नही करती न उसका भला चाहती है वह कल्याणकारी नही अहंकारी है उसे निर्जीव वस्तु धन संपत्ती अहंकार से बडा लगाव है प्यार है और इनको पाने के लिये वो किसी भी हद तक जा सकती है उसे शर्म लाज की कोई चिंता नही वह निर्लाज्ज है बेशर्म है वह इज्जत भी बेच कर खुश रहती है !
धर्मविक्रमादित्य कबीरसत्व परमहंस
दौलतराम
जगतगुरू नरसिंह मुलभारती
मुलभारतिय हिन्दूधर्म विश्वपीठ
No comments:
Post a Comment