बसंत : 8 : 4
कहैं कबीर दासन के दास , काहू सुख दै काहू निरास !
शब्द अर्थ :
कहैं कबीर = परमात्मा कबीर कह रहे है , बता रहे है ! दासन दास = सब के नम्र , विनम्र , सेवको के सेवक ! काहू सुख दै = कही सुख है ! काहू निरास = कही दुख है !
प्रग्या बोध :
परमात्मा कबीर बसंत आठ के इस अंतिम पद में बताते है भाईयों ये संसार माया मोह से ग्रस्त है , हर जीव इच्छा तृष्णा ग्रस्त है और इस लिये भवचक्र फसे हुवे है और जन्म मृत्यू के फेरे में उल्जे हुवे है स्वाभविक है उन्हे इसमे कुछ सुख और कुछ दुख मिलते है क्यू की वो धर्म का पालन पुरी तरह नही करते इस लिये भवचक्र से मुक्त नही हो पाते ! बहुत कम लोग इस रहष्य को जानते है जब की कबीर साहेब इस रहष्य को मानव कल्याण के लिये ,मानव मुक्ती के लिये बिना किसी राग लपेट से सब को निस्वार्थ भाव से बताते है ! कबीर साहेब , परमात्मा सब को निराकार निर्गुण चेतन राम की सुख दुख रहित अवस्था निर्वाण तक ले जाना चाहते है और उसका मार्ग सहज सरल योग क्षेम प्रग्या बोध का मार्ग अर्थात शिल सदाचार का धर्म मार्ग मुलभारतिय हिन्दूधर्म बिना किसी भेदभाव से विनम्रतासे सब को बताते है !
धर्मविक्रमादित्य कबीरसत्व परमहंस
दौलतराम
जगतगुरू नरसिंह मुलभारती
मुलभारतिय हिन्दूधर्म विश्वपीठ
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