पवित्र बीजक : प्रग्या बोध : बसंत : 8 : 1
बसंत : 8 : 1
कर पल्लव केवल खेले नारि , पंडित होय सो लेइ बिचारि !
शब्द अर्थ :
कर पल्लव = हाथ मे लाज ! केवल खेले नारि = माया मोह इच्छा तृष्णा के खेल ! पंडित = ग्यानी ! होय सो = अगर है ! लेइ बिचारि = विचार पूर्वक काम करना !
प्रग्या बोध :
परमात्मा कबीर बसंत आठ के प्रथम पद में माया मोह इच्छा तृष्णा के स्वरूप को बताते हुवे कहते है माया मोह को कोई शर्म लाज नही आती है वह लाज को हाथ मे लपेटे बडे शान से चलती है जैसे मोहीनी लोगो को आकृष्ट करने के लिये करती हो उसके पल्लू मे बडी मोहक अदा होती है ज़िस पर लोग लठ्ठु हो जाते है और बेशर्म होकर उसके लिये वो काम करते है जो अधर्म है , जो नही करना चाहिये ! जो लोग विचारी है ग्यानी है मुलभारतिय हिन्दूधर्म के शिल सदाचार का धर्म जानते है उसका पालन कारते है वे माया मोह की बेशर्म मोहक मन लुभावनी अदा से बच जाते है ! एसे भी कुछ लोग है जो विदेशी यूरेशियन वैदिक ब्राह्मणधर्म जो विषमता शोषण जातीवर्ण वाद , अस्पृष्यता , ऊचनीच भेदाभेद छुवाछुत आदी का विकृत अधर्म का खुद को ग्यानी ब्राह्मण पंडित पांडा पूजारी धर्म गुरू शंकारचार्य है बताते है उनसे दुर रहना ही श्रेयकर है !
धर्मविक्रमादित्य कबीरसत्व परमहंस
दौलतराम
जगतगुरू नरसिंह मुलभारती
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