Thursday, 18 September 2025

Pavitra Bijak : Pragya Bodh : Basant : 10 : 3

पवित्र  बीजक  : प्रग्या  बोध  :  बसंत  : 10 : 3

बसंत  : 10 : 3

तपसी  माते  तप  के  भेव  , संन्यासी  माते  कर  हंमेव  ! 

शब्द  अर्थ  : 

तपसी  = जप  तप  उपास  तापस  काराने वाले  लोग  ! माते =  के   लिये  ! तप  = व्रत  ! के  भेव  = का  डर  ! संन्यासी  = गृहस्थी  त्याग  कर  संन्यासी  बने  लोग  !  हंमेव  =  स्वयम  का  डर  ! 

प्रग्या  बोध  : 

परमात्मा  कबीर  बसंत  के  इस  पद  मे  कहते  है  जप तप  करने  वाले  तपसी  लोग  तप  अनुष्ठन संकल्प  जप  माला  संख्या  को  ही  धर्म  समझकर वो  न  टूटे  इस  डर  मे  ज़िते  है  और  कोई  उनके  जप तप   मे  बाधा  बने  तो  क्रोधित  होते  है  गाली  श्राप  देते  है  वैसे  ही  जो  लोग  घर  बार  स्त्री  बाल  बच्चे  माँ  बाप  तो  त्याग  कर  संन्यासी  बने  है  उनहे  अपने  कर्म  का  स्वयम  अफसोस  होता  रहता  है  ! आखिर  वो  संसार  से  कहाँ  कहाँ  और  कितना  दुर  भाग  सकते  है  उनहे  बार  बार  संसारी  लोगो  की  मदत  दया  पर  ही  आश्रित  रहना  पडता  है  ! कोई  संसार  से  नही  भाग  सकता  है  चाहे  वो  जप तप  करने  वाला  हो  य़ा  संन्यासी  ! दोनो  को  हरदम  हनेशा  डर  बना  रहता  है  कहि  ये  ना  टूटे  वो  ना  टूटे  ! ये  कोई  धर्म  नही  संन्यासी   और  जप तपी  जब  तक  शिल  सदाचार  का  धर्म  पालन नही  करते   उनके  जप तप  संन्यास  को  कोई  अर्थ  नही  सब  बेकार  है  ! 

धर्मविक्रमादित्य  कबीरसत्व  परमहंस 
दौलतरां 
जगतगुरू  नरसिंह  मुलभारती 
मुलभारतिय  हिन्दूधर्म  विश्वपीठ 
कल्याण , अखण्ड  हिन्दुस्तान , शिवशृष्टी

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