#जगत_जननी_माँ_लोई !
माँ लोई
नही है दुसरी कोई
रोज सबेरे उठती
चरखे पर सुत कातती
पूँगारिया में भरती
घर की सफाई करती
आँगण घर बुहारती !
कबीर का आसन
बैठक की चटाई
हथकरधा की देखभाल
सब का खाना रसोई
मेहमानो का आवभगत
पानी गुड की तजबीज
और बिना व्यवधान से
सुनती कबीर के दोहे
और अनमोल धर्म विचार !
कमल कमला बेटी बेटे
न बोल सुने कभी झुटे
बकरी कबीर के घर की
चारा इधर उधर का चरती
जो बिक जाये शेला कबीर का
घर गृहास्थी उसी से चलाती !
जब आते रवीदास दादू घर
और काशी के नरेश महाराजा
सुनने अनमोल कबीर विचार
शिल सदाचार भाईचारा समता
रहते काबिर के यही विचार !
वर्ण जातिवादी अस्पृष्यता विषमाता
नही मानते कबीर पत्थर के विधाता
माया मोह अहंकार रहित सूचिता
यही रहाता बीजक का धर्म संदेशा !
लोई कमल कमला सब सुनाते
वही बात न हो कबीर दोहराते
सब मिलकर रात में अलख जगाते
लोगोंको मुलभारतिय हिन्दूधर्म बताते !
एक दिन एैसा आया
देश से कबिला जब आया
लोई ने दाना अन्न का
न घर में पाया
अब तक न कोई भूका
धर्मात्मा कबीर के घर से गया !
लोई गई दुकान पर
ले आई परचुन और अनाज
लालाने कहाँ रात को आना
पर कबीर को न बताना !
रात हुवी बारिश भारी
लोई बैठी जाने कर त्यैयारी
कबीर को बताई बात पुरी
परमात्मा ने लोई की नजर ऊतारी !
कबीर चले भरे बारिश
लाला के घर लोई काधे बिठाये
परमात्मा कबीर मन ही मन मुस्कुराये
माँ लोई को लाला के घर ऊतारे !
जगत जननी माँ लोई
जब ऊतारी निचे
लाला अचंभीत हुवा
अपनी सगी माँ सामने देखे !
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