Thursday, 30 January 2025

Pavitra Bijak : Pragya Bodh : Gyan Chountisaa : F

#पवित्र_बीजक : #प्रग्या_बोध : #ग्यान_चौंतिसा : #फ 

#ग्यान_चौंतिसा : #फ 

फफा फल लागे बड दूरी, चाखे सतगुरू देई न तूरी /
फफा काहै सुनहु रे भाई, स्वर्ग पताल की खबरि न पाई //

#शब्द_अर्थ : 

फल = मोक्ष , कल्यान ! 

#प्रग्या_बोध : 

धर्मात्मा कबीर ग्यान चौतिसा के अक्षार फ के द्वारा धर्म ग्यान देते हुवे कहते है भाईयो स्वर्ग पताल के भ्रामक कल्पना से बाहर आवो और सदगुरू ने बताया आपना मुलभारतिय हिन्दू धर्म के शिल सदाचार भाईचारा अहिंसा शांती समता का पालन करो ! 

कबीर साहेब अंधविस्वास के खिलाफ थे और सत्य धर्म पालन करने की शिक्षा देते है !

#धर्मविक्रामादित्य_कबीरसत्व_परमहंस 
#दौलतराम 
#जगतगुरू_नरसिंह_मुलभारती 
#मुलभारतिय_हिन्दूधर्म_विश्वपीठ 
#कल्यान , #अखण्डहिन्दुस्तान, #शिवशृष्टी

Wednesday, 29 January 2025

Pavitra Bijak : Pragya Bodh : Gyan Chountisaa : P

#पवित्र_बीजक : #प्रज्ञा_बोध : #ज्ञान_चौंतीसा : #प 

#ज्ञान_चौंतीसा : #प 

पपा पाप करें सब कोई, पाप के करे धर्म नहिं होई /
पपा कहैं सुनहु रे भाई, हमरे से इन किछुवो न पाई //

#शब्द_अर्थ :

पाप = अधर्म ! पपा = चेतन राम ! हमरे से = अहंकार से 

#प्रज्ञा_बोध : 

धर्मात्मा कबीर ज्ञान चौंतीसा के अक्षर प का तात्पर्य समझाते हुवे कहते हैं भाईयो पाप यानी अधर्म सब लोग कर रहे है इस लिऐ जो करेंगे वो भरेंगे के न्याय तत्व अनुसार उसके दुष्परिणाम को भी भुगतना पड़ेगा ! 

कबीर साहेब बुरे कर्म , विकृति अधर्म पाप , अंध विश्वास , कुसंगति से बचने की शिक्षा देते हुवे मोह माया इच्छा तृष्णा अहंकार से दूर रहो यह बताते है ! पाप का कारण मै पन है अहंकार खुद का बड़ा शत्रु है , अहंकार भरे लोग अंत में खुद का ही अहित कर बैठते है जैसे दुर्योधन, कंस, रावण ! 

#धर्मविक्रमादित्य_कबीरसत्व_परमहंस 
#दौलतराम 
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#कल्याण, #अखंडहिंदुस्थान, #शिवसृष्टि

Tuesday, 28 January 2025

Pavitra Bijak : Pragya Bodh : Gyan Chountisaa : N

#पवित्र_बीजक : #प्रज्ञा_बोध : #ज्ञान_चौंतीसा : #न

#ज्ञान_चौंतीसा : #न 

चौथे वो ना महं जाई, राम का गदढा होय खर खाई /

#शब्द_अर्थ : ना = नकारात्मक विचार ! गड्ढ़ा = जानवर ! खर = घास !

#प्रज्ञा_बोध : 

धर्मात्मा कबीर ज्ञान चौंतीसा के अक्षर न का तात्पर्य समझाते हुवे कहते है भाईयो मानव और जानवर में भेद समजो ! मानव का अंतःकरण मन चित्त बुद्धि और अहंकार से भरा होता है उसका तालमेल बनाए रखने से शांति और सुख मिलता है पर जब हम बुद्धि हीन जानवर की तरह काम करते है और खुद के भीतर बसा चेतन राम भूल जाते है तो हम मानव और जानवर गढ्डा , गधे मे कोई अन्तर नहीं रह जाता है ! 

कबीर साहेब कहते भाईयो तुम राम हो , चेतन राम हो यह ना भूलो और ध्यान रखो तुम्हे परख करना है क्या घास है और क्या मानव भोजन क्या धर्म है और क्या अधर्म , क्या हितकारी और क्या अहितकारी ! 

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Monday, 27 January 2025

Pavitra Bijak : Pragya Bodh : Gyan Chountisaa : Dha

#पवित्र_बीजक : #प्रज्ञा_बोध : #ज्ञान_चौंतीसा : #ध 

#ज्ञान_चौंतीसा : #ध

धधा अर्ध माहिं अँधियारी, अर्ध छोडि उर्ध् मन तारी /
अर्ध छोडि ऊर्ध मन लावै, आपा मेटि के प्रेम बढ़ावै //

#शब्द_अर्थ : 

अर्ध = आधा , अधूरा , निचला ! ऊर्ध = ऊपरी , अच्छा ! तारी = ध्यान ! आपा = अहंकार , मै पन ! 

#प्रज्ञा_बोध : 

धर्मात्मा कबीर ज्ञान चौंतीसा के अक्षर ध के माध्यम से उपदेश करते हुवे बताते है भाइयों मन ओर विचार को अच्छा बनावो ! मन में सदभाव शील सदाचार भाईचारा समता शांति अहिंसा मानवता आदि उच्च धार्मिक गुण जगावो और नीच मनोवृति , नीच विचार अधर्म विकृति को छोड़ दो ! 

कबीर साहेब अच्छे विचार को बढ़ावा देना और बुरे विचार को दूर करना इस विद्या कोही ध्यान कहते है ! मन लगाकर कोई काम करो तो सफलता मिलती है !

मन अच्छे और उच्च विचार गुणवत्ता के काम में लगावो और नीच कर्म , अधर्म छोड़ दो यही बात कबीर साहेब हमे यहां बताते हैं समझाते हैं , सिख देते है ! 

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Saturday, 25 January 2025

Pavitra Bijak Pragya Bodh : Gyan Chountisaa : Thh

#पवित्र_बीजक : #प्रज्ञा_बोध : #ज्ञान_चौंतीसा : #थ 

#ज्ञान_चौंतीसा : #थ 

थथा अति अथाह थाहो नहिं जाई, ई थिर  ऊ स्थिर नहि रहाई  /
थोरे थोरे स्थिर हाउ भाई, बिन थम्भे जस मंदिर थांभाई  //

#शब्द_अर्थ : 

ई = लोक  , ये संसार ! ऊ = पर लोक, अन्य ! थाह = अंदाज !

#प्रज्ञा_बोध : 

धर्मात्मा कबीर ज्ञान चौंतीसा का अक्षर थ का जीवन में मतलब समझाते हुवे कहते हैं भाईयो जीवन में उलझने बहुत आती है ! माया मोह इच्छा भरे इस जीवन में मन अस्थिर होता है , ये करे या वो करें कुछ समझ नहीं आता है ! 

मन अस्थिर कब होता है ? धार्मिक मन और मोह भरे मन में जब द्वंद्व चलता है तब अपने आप को सद्विवेक से स्थिर कर अच्छा बुरा की पहचान कर शांति ओर धैर्य से काम लेना चाहिए ! 

कबीर साहेब कहते है संसार, परलोक , स्वर्ग नरक  आदि अनेक संभ्रमित कल्पना ने मानव को डराया है ! भाई  ये संसार वास्तविक है और परलोक भ्रम , स्वर्ग नरक भ्रामक धारणाएं है , सुख दुख सच्चाई है ! सुख दुख का चयन आपके हाथ में है , अधर्म करोगे तो दुख मिलना निश्चित है और धर्म करोगे हो सुख मिलने से कोई रोक नहीं सकता और ये खुद आप चुन सकते हो बस जरूरत है मन को स्थिर  कर धर्म से जीने की !

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Friday, 24 January 2025

Pavitra Bijak : Pragya Bodh : Gyan Chountisaa : T

#पवित्र_बीजक : #प्रज्ञा_बोध : #ज्ञान_चौंतीसा : #त 

#ज्ञान_चौंतीसा : #त 

तता अति त्रियो नहिं जाई, तन त्रिभुवन में राखू छिपाई  /
जो तन त्रिभुवन माहिं छिपावै, तत्वहि मिलि तत्व सो पावै  //

#शब्द_अर्थ : 

त्रियो = तीन गुण :  सत रज तम ! त्रिभुवन = तीन लोक !  राखु छिपाई = रक्षा करो ! तत्व = यथार्थ, सार ! 

#प्रज्ञा_बोध :

धर्मात्मा कबीर ज्ञान चौंतीसा में अक्षर त का महत्व तात्पर्य समझाते हुवे कहते है भाईयो  तत्व बड़ी महत्व पूर्ण बात है , तत्व यानी विचार, अच्छे बुरे धार्मिक अधार्मिक विचार जिस पर मानव चलता है ! अगर अधार्मिक विचार या कृत्य मानव करता है तो उसे उसके परिणाम भुगतने ही होंगे ! 

मानव स्वभाव में तीन गुण सत रज तम बड़े प्रभाव डालते है इस लिये इन गुणोंकी खासियत समझो और अपने ऊपर इनको हावी होने मत दो !  सब को शांति और धर्य से लो ! उसके परिणाम को समझो ! 

कबीर साहेब किसी भी चीज के अति से बचने कि सिख देते है , आत्म संतुष्ट रहो यह बात करते है ! अंततः सार तत्व चेतन राम को जानो और चेतन राम को पाने के लिये धर्म शील सदाचार भाईचारा समता मानवता का पालन करो यही अंतिम सत्य है ! 

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Thursday, 23 January 2025

Pavitra Bijak : Pragya Bodh : Gyan Chountisaa : N

#पवित्र_बीजक: #प्रज्ञा_बोध : #ज्ञान_चौंतीसा : #ण 

#ज्ञान_चौंतीसा : #ण 

णणा दुई बसाये गाऊँ, रेणा ढूंढे तेरी नाउँ /
मुये एक जाय तजि धना, मरे इत्यादिक केते को गना //

#शब्द_अर्थ : 

रेणा = झगड़ा ! गना = गिनती ! 

#प्रज्ञा_बोध : 

धर्मात्मा कबीर ज्ञान चौंतीसा के अक्षर ण की महता बताते हुवे कहते है भाइयों न का अर्थ है निरर्थक ! हम सब निरर्थक वस्तुएँ जमा करने में लगे रहते है ! धन संपत्ति महल माड़ी , राजसी किले , गाड़ी घोड़े , मकान दुकान सब इकट्ठा करते है और धर्म का आचरण ही छोड़ देते है ! 

इन चीजोंसे किसे सुख शांति मिली है ? न इकट्ठा करने वाले को न उसके मरने बाद जीने वालों को ! क्यू की जीते जी भी यही चीजें धन संपत्ति दुख का कारण थी तृष्णा मोह माया अहंकार का कारण थी , कमाने वाला मरे तो यही धन संपत्ति मोह माया दुख का कारण रहती है !

कबीर साहेब कहते हम दुख का कारण खुद मोल लेते है और ये कोई नई बात नहीं , जादातर संसार में यही हो रहा है , लोग आते है , मरते है पर दुख के कारण को जानते ही नहीं ! 

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Wednesday, 22 January 2025

Pavitra Bijak: Pragya Bodh : Gyan Chountisaa : Chh

#पवित्र_बीजक : #प्रज्ञा_बोध : #ज्ञान_चौंतीसा : #ढ

#ज्ञान_चौंतीसा : ढ 

ढढा हिंड़त ही कित जान, हिंड़त ढूंढत जाय परान /
कोटि सुमेरु ढूंढ़ी फिरी आवै, जेहिं ढूंढा सो कतहुं न पावै //

#शब्द_अर्थ : 

हिंड़त = खोजते ! सुमेरु = सुमेरु पर्वत ! 

#प्रज्ञा_बोध : 

धर्मात्मा कबीर ज्ञान चौंतीसा का अक्षर ढ का तात्पर्य महत्व समझाते हुवे कहते है भाइयों लोग भगवान , देव, ईश्वर बाहर खोजते है उसकी काल्पनिक मूर्ति बनाकर मंदिर में पूजते है पर अपने मन मंदिर में स्थित चेतन राम की बात नहीं सुनते !

लोग ईश्वर की प्राप्ति के लिये जंगल पर्वत गुफा में जाते है वहां ईश्वर भगवान की आराधना , प्रार्थना करते है पर उसने शरीर के कण कण में बसा चेतन राम को अनदेखा करते है और जब कोई देव देवता सदेह उनके सामने प्रगट नही होता तो अपने भ्रमजाल से निर्मित काल्पनिक देवी देवता को ही कोसते है ! 

कबीर साहेब कहते हैं भाईयो ईश्वर को किसी मंदिर की मूर्ति में खोजना बंद करो किसी पर्वत या जंगल या गुफा में जाने की जरूरत नहीं वो चेतन तत्व राम संसार के कण कण में है बस जरूरत है खुद को निर्विकार निर्मल करने की और वही विधि उपाय मूलभारतीय हिन्दूधर्म का पालन करना है , धर्म का पालन करना है अधर्म को छोड़ना है ! 

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Tuesday, 21 January 2025

Pavitra Bijak : Pragya Bodh : Gyan Chountisaa : Tth

#पवित्र_बीजक : #प्रज्ञा_बोध : #ज्ञान_चौंतीसा : #ठ 

#ज्ञान_चौंतीसा : #ठ

ठठा ठौर दूर ठग नियरे, नित के निठुर कीन्ह मन घेरे /
जे ठग ठगे सब लोग सयाना, सो ठग चीन्ह ठौर पहिचाना //

#शब्द_अर्थ : 

ठौर = स्वरूपस्थिति ! ठग = मन ! सयाना = ज्ञानी! निठुर = कठोर , निष्ठुर !

#प्रज्ञा_बोध : 

धर्मात्मा कबीर ज्ञान चौंतीसा में अक्षर ठ की विशेषता बताते हुवे कहते है भाइयों मानव को ठगने वाला कोई अन्य नहीं वो दूर बैठा नहीं है तुम्हारे पास ही है और वो कोई नहीं तुम्हारा मन ही है ! 

इस मन को रोज उलझन में डालने माया मोह इच्छा अधार्मिक वृति, अंहकार, तृष्णा आदि विकार मन को ग्रसित करते रहते है और मन मनमानी करते हुवे अंत में खुद को ही हानि पहुंचाता है , धर्म भूलकर अधर्म की राह पकड़ता है ! 

कबीर साहेब कहते हैं हमने उस ठग को पहचान लिया है , हमारे साथ अब मन मनमानी नही करता ! जो लोग इस बात को समझ रहे है वही ज्ञानी है , सयाने हैं !

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Monday, 20 January 2025

Pavitra Bijak : Pragya Bodh : Gyan Chountisaa : T

#पवित्र_बीजक : #प्रज्ञा_बोध : #ज्ञान_चौंतीसा : 
#ट

#ज्ञान_चौंतीसा : #ट 

टटा बिकट बाट मन माहीं, खोलि कपाट महल  मौ जाहीं  /
रही लटापटि झूटि तेहि माहीं, होई अटल तब कतहुँ न जाहीं //

#शब्द_अर्थ : 

कपाट = किवाड़  , फाटक , मन  का दरवाजा !  महल = स्वरूप , स्वघर ! लटापटी = किसी प्रकार , संघर्ष ! 

#प्रज्ञा_बोध : 

धर्मात्मा कबीर ज्ञान चौंतीसा के अक्षर ट का तात्पर्य समझाते हुए कहते हैं भाईयो मन की उलझनें बडी बिकट होती है ! मन बड़ा चंचल है कही एक जगह टिकता नहीं इस लिये मन को बड़े धैर्य और परिश्रम से चुचकारते हुवे उसे आपाधापी से शांत कर मन के अंदर जाना होता है तब कही आत्म स्वरूप का बोध होता है ! 

कबीर साहेब कहते है जब मन पर नियंत्रण हो जाता है मार यानी इच्छा , तृष्णा मोह माया अहंकार आदि छट रिपु को वश में कर लिया जाता है और मन निर्मल शुद्ध निर्विकार होता तब चेतन राम के दर्शन होते है ! यही अटल स्थिति है फिर कही जाने की जरूरत नहीं होती है  ! यही निर्वाण मोक्ष कि स्थिति जो जीते जी हम प्राप्त कर सकते हैं ! यही परमसुख है ! 

#धर्मविक्रमादित्य_कबीरसत्व_परमहंस 
#दौलतराम 
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Sunday, 19 January 2025

Pavitra Bijak: Pragya Bodh :Gyan Chountisaa : Tra

#पवित्र_बीजक : #प्रज्ञा_बोध : #ज्ञान_चौंतीसा :  #त्र

#ज्ञान_चौंतीसा :  #त्र 

त्रत्रा निग्रह सनेहू , करो निरुवार संदेहू /
नहिं देखे नहिं भाजिया, परम सयानप येहू //
जहाँ न देखि तहाँ आपु भजाऊ, जहाँ नहीं तहाँ तन मन लाऊ / 
जहाँ नहीं तहाँ सब कुछ जानी, जहाँ है  तहाँ ले पहिचानी //

#शब्द_अर्थ : 

निग्रह = निवारण , त्याग ! सनेहू = स्नेह . माया  ! सयानप = बुद्धिमानी  श्रेष्ठता ! आपु भजाऊ = स्वयं भाग जाना !

#प्रज्ञा_बोध : 

धर्मात्मा और त्र अक्षर के माध्यम से उपदेश करते हुवे कहते है भाइयों  मन कि चंचलता का संदेह का धर्म ओर निग्रह के साथ निवारण करो ! जो संसार में दिख रहा है उससे ना दूर भागों ना उसको अपने उपर हावी न होने दो ! 

सत्य क्या है समझो, विवेक का उपयोग करों और अंधविश्वास पर आधारित कोई काम ना करो !  

संसार में लोग बड़े ठगी है , अधर्म  को धर्म बताने है शोषण ओर विषमता को धर्म कहते है  इनसे दूर रहो अधर्म का पालना कर काई सुखी नही हो सकता ! 

शील सदाचार भाईचारा समता शांति अहिंसा मानवता ही सच्चा धर्म है !  माया मोह इच्छा तृष्णा से दूर रहो ये आपके वहाँ ले जाते है जो अहितकारक  है ! 

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Saturday, 18 January 2025

Pavitra Bijak : Pragya Bodh : Gyaan Chountisaa : z

#पवित्र_बीजक : #प्रज्ञा_बोध : #ज्ञान_चौंतीसा : #झ

#ज्ञान_चौंतीसा : #झ 

झझा अरुझी सरूझी कित जान, अरुझीनि हिंड़त जाय परान /
कोटि सुमेरु ढुंढी फिरि आवै, जो गढ़ गढ़ें गढ़ैंया सो पावै //

#शब्द_अर्थ :

हिंड़त = खोजत ! सुमेरु = पर्वत ! गढ़ = किला, वासना ! गढ़ैया = जीव ! 

#प्रज्ञा_बोध : 

धर्मात्मा कबीर ज्ञान चौंतीसा का अक्षर झ की विशेषता बताते हुवे कहते है भाईयो तुम उलटे सीधे काम करते हो तो लक्ष्य पर नही पहुंच सकते ! धर्म और अधर्म एक साथ वांछित फल नहीं दे सकते ! 

कबीर ने कहते है भाईयो चेतन राम को ढूंढने के लिए किसी पहाड़ की चोटी पर जानेकी जरूरत नहीं ना जंगल जंगल भटकते की जरूरत है ये शरीर ही सुमेरु पर्वत है चोटी पर तुम्हारा विवेक बैठा है जिसे बुद्धि कहते है उसका उपयोग करो , परख करो , अच्छे बुरे कर्म और धर्म की पहचान करो, बुरे से बचो, अच्छे की संगत करो ! 

विकार और विकृति से भरा विदेशी यूरेशियन वैदिक ब्राह्मणधर्म से बचो, सुमेरु पर्वत मूलभारतीय हिन्दूधर्म खुद तुम्हारे पास है ! यही तुम्हारा सुरक्षित घर है गढ़ है किला है उसकी हिफाजत सुरक्षा करो , स्वदेशी मूलभारतीय हिन्दूधर्म की रक्षा करो , सदधर्म तुम्हारी रक्षा करेगा ! 

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Friday, 17 January 2025

Pavitra Bijak : Pragya Bodh : Gyan Chountisaa : J

#पवित्र_बीजक : #प्रज्ञा_बोध : #ज्ञान_चौंतीसा : #ज 

#ज्ञान_चौंतीसा : #ज

जजा ई तन जियत न जारो, जोबन  जारि युक्ति तन पारो /
जो कछु युक्ति जानि तन जरै, ई घट ज्योति उजियारी करै //

#शब्द_अर्थ : 

जोबन = यौवन, जवानी ! युक्ति = उपाय  ! पारो = करने में समर्थ !

#प्रज्ञा_बोध : 

धर्मात्मा कबीर ज्ञान चौंतीसा में अक्षर ज  का महत्व समझाते हुवे कहते है भाईयो  यह मानव जीवन और शरीर दुर्लभ है इसे यूंही बर्बाद ना करो , जंगल में जाकर तपस्या करना , नागा साधु बनना, अघोरी बनना सब व्यर्थ है , शरीर को उपवास तापस से यातनाये देना कोई अच्छा काम नहीं !  ये काई धर्म नहीं ! 

कबीर साहेब कहते हैं भाईयो जवानी को आमोद प्रमोद में  और वासना कामना की अग्नि में जलना भी ठीक नहीं है ! 

इस शरीर का सद प्रयोग करो संसार में रहते हुवे अपने जवानी और पूरे जीवन को निर्विकार निर्मल जीवन जीने के लिये जी जान से कोशिश करो , अपने अंतरात्मा , चेतन राम की आवाज सुनो सत्य शील सदाचार भाईचारा समता शांति अहिंसा मानवता का धर्म मूलभारतीय हिन्दूधर्म का पालन करो , दुर्गुण, अविद्या , वैदिक अधर्म से दूर रहो तो इसी संसार में इसी शरीर में इसी जीवन काल में तुम्हे परमात्मा चेतन राम तत्व कबीर के धर्म ज्ञान से प्रज्ञा बोध होगा , मोक्ष निर्वाण शांति का परमसुख प्राप्त होगा और जीवन धन्य होगा ! 

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Thursday, 16 January 2025

Pavitra Bijak : Pragya Bodh : Gyan Chountisaa : Chh

#पवित्र_बीजक : #प्रज्ञा_बोध : #ज्ञान_चौंतीसा : #छ 

#ज्ञान_चौंतीसा : #छ 

छछा आहि छत्रपति पासा, छकि किन रहहु मेटि सब आसा /
मैं तोहीं छिन छिन समुझावा, खसम छाडि कस आपु बंधावा //

#शब्द_अर्थ : 

छत्रपति = सम्राट, मालिक , चेतन राम जीव ! छकि = तृप्त  ! खसम = मालिक,  जीव ! 

#प्रज्ञा_बोध : 

धर्मात्मा कबीर ज्ञान चौंतीसा के अक्षर वर्ण छ का महत्व समझाते हुवे कहते है भाईयो तुम खुद के मालिक हो तुम आत्मा राम, चेतन तत्व राम हो , जो संसार में है वही तुम में है तुम्हारे पास ही है , उसे बाहर खोजने के लिए दर दर भटकने की जरूरत नहीं ! जब वो तुम चेतन जीव में है तो बाहर की मूर्ति पूजा, अग्नि पूजा , नमाज प्रार्थना सब बेकार है  क्यों कि खुद को खुश रखना है तो और अच्छा दिखाना है तो ख़ुद का चेहरा आचरण ठीक करो ! 

खुद में ख़ुदा है और बाहर ढूंढ़ते हो तो यह तो अग्यान हुआ ! भाईयो तुमने खुद परमात्मा चेतन राम को मोह माया इच्छा तृष्णा लालच अधर्म विकृत में बांध रखा और निर्मल परमात्मा को लालच अहंकार में ढूंढते हो तो वो निराकार निर्गुण अविनाशी तत्व चेतन राम तुम अंधोंको कैसे दिखाई देगा ? 

कबीर साहेब कहते सजग बनो, ज्ञानी बनो विदेशी यूरेशियन वैदिक ब्राह्मणधर्म के होमहवन आदि बाहरी दिखावा  , अंध विश्वास से बाहर आवो, विषमता विषक्त विचार से बाहर आवो तो वो मालिक चेतन राम तुम खुद में दिखाई पड़ेगा ! 

#धर्मविक्रमादित्य_कबीरसत्व_परमहंस 
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Wednesday, 15 January 2025

Pavitra Bijak : Pragya Bodh : Gyan Chountisaa : Ch

#पवित्र_बीजक : #प्रज्ञा_बोध : #ज्ञान_चौंतीसा : #च 

#ज्ञान_चौंतीसा : #च 

चचा चित्र रचो बड़ भारी, चित्र छोड़ी तैं चेतु चित्रकारी / 
जिन्हें यह चित्र हुईंहै न खेला, चित्र छोड़ी तैं चेतु चितेला //

#शब्द_अर्थ : 

चित्र = कल्पनाएं , मान्यता ! चित्रकारी = संसार की निर्मिती , जीव , सजीव निर्जीव श्रृष्टि ! विचित्र = भिन्न भाव भंगिमा ! चितेला = चितेरा ! 

#प्रज्ञा_बोध : 

धर्मात्मा कबीर ज्ञान चौंतीसा में अक्षर च की विशेषता बताते हुवे कहते है भाइयों यह संसार चेतन राम की रचना निर्मिती है ! जीव जन्तु सभी सजीव निर्जिव सब का कुछ ना कुछ मकसद से बनाया है ! 

मानव समाज ने भी उनके मान्यता के मानक चित्र बनाए है नाम दिए, रिश्ते दिए , धर्म अधर्म संस्कृति विकृति शील अश्लील कि व्याख्या और मान्यता प्रदान की ! 

कबीर साहेब कहते है इस श्रृष्टि निर्माता की मंशा को समझो अपने भीतर झांक कर खुद को पहचानो , बाहरी चित्रकारी में खुद को भूल मत जावो ! जिस प्रकार संसार में नानाविध भूल भुलैया है वैसे ही मानव समाज के जीवन में माया मोह इच्छा अधार्मिक वृति तृष्णा आदि के कारण समाज जीवन में क्या अच्छा क्या धर्म क्या अधर्म की पहचान कठिन हुवि है ! समाज के और मानव के दुश्मन विदेशी यूरेशियन वैदिक ब्राह्मणधर्म के पाण्डे पुजारी ब्राह्मण धर्मगुरु आदि ने भ्रामक चित्र खड़े खड़े किए है , वर्ण जाति वेवस्था उचनीच भेदाभेद अस्पृश्यता विषमता आदि गलत चित्र या व्यवस्था को सही ना समझो ! जागो चित्र , चित्र बनाने वाला उसके उद्देश को पहचानो , सावधान रहें और नकली माल से बचे , मिलावट से बचे यही बात कबीर साहेब यहां बताते हैं ! 

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Tuesday, 14 January 2025

Pavitra Bijak : Pragya Bodh : Gyan Chountisaa : Da

#पवित्र_बीजक : #प्रज्ञा_बोध : #ज्ञान_चौंतीसा : #ड 

#ज्ञान_चौंतीसा : #ड़ 

डडा निरखत निशिदिन जाई, निरखत नैन रहै रतनाई /
निमिष एक जो निरखै पावै, ताहि निमिष में नैन छिपावै //

#शब्द_अर्थ : 

निरखत = देखते हुए !  निशिदिन = सारा समय ! निमिष = पलक झपकाते , एक क्षण में ! नैन = आंखे  ! छिपावै = अदृश्य करना ! 

#प्रज्ञा_बोध :

धर्मात्मा कबीर ज्ञान चौंतीसा में अक्षर ड की विशेषता बताते हुए कहते है भाईयो  इस शरीर का एक ज्ञानेद्रिय आंख से आंख वाले जीवन का पूरा समय बिता देते है देखना आंख का काम है वह पलभर में एक क्षण में देख लेता है और आंख पलक झपकाते ही उसे दृष्टि से ओझल कर देता है ! 

कबीर साहेब कहते पर भाईयो विवेक तो आपके अंतर्मन को ही करना होगा क्या देखे , क्यू देखे, हितवाह है या नहीं ! 

आंख की एकाग्रता को नाक के अग्र बिंदु पर केंद्रित कर बहुत सारे लोग हिप्नोटीजम की विद्या हासिल करना चाहते हैं ! किसी बिन्दु पर सारा लक्ष केंद्रित कारना सरल नहीं होता हम बार बार उसमें असफल होते है ,  आंख लाल हो जाती है , पाणी आना शुरू होता है और प्रयास कुछ लोग छोड़ देते है क्यू की अधीर हो जाते है , समीप पहुंचकर भी वापस लौट जाते है ! 

कबीर साहेब यहां दृढ़ निश्चय बनाए रखने की बात करते है , लक्ष से ना भटकों उसे आंख से ओझल ना होने दो ! भरा बुला का विवेक करो और जो अधर्म है उसे दूर रखो , जागृत रहो ! विवेक बुद्धि से जो खोया वह गुलाम हो जाता है, जो सोया वो खोया ! 

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Monday, 13 January 2025

Pavitra Bijak : Pragya Bodh : Gyaan Chountisaa : Gha

#पवित्र_बीजक : #प्रज्ञा_बोध : #ज्ञान_चौंतीसा : #घ 

#ज्ञान_चौंतीसा : #घ

घघा घट बिनसै घट होई, घटहि में घट राखु समोई /
जो घट घटई घट फिरि आवै, घट ही में फिर घटहि समावै //

#शब्द_अर्थ : 

घट = शरीर ! समोई  = शमन !  घटई =  देह आसक्ति ! समावै = प्रविष्ट होना ! 

#प्रज्ञा_बोध : 

धर्मात्मा कबीर ज्ञान चौंतीसा के वर्ण घ का तात्पर्य समझाते हुवे कहते है भाईयो  यह संसार जुड़ना टूटना का खेल है ! चेतन राम तत्व जुड़ते रहते है टूटते रहते है उसी की क्रिया प्रतिक्रिया नित नव निर्मिति है और इस प्रकार नव निर्मिति के लिये जन्म मृत्यु होता रहता है! 

मानव जीवन भी इस जुड़ना टूटना प्रक्रिया पर चलता रहता है जब तक धर्म यानी सकारात्मक तत्व काम करते रहते है शांति सुख से जीवन आगे बढ़ता रहता है जैसे ही अधर्म , विकार , माया मोह, लालच , अहमभाव बढ़ता है शरीर का सुख शांति घटने लगता है और शरीर टूटकर बिखरना लगता है ! यह प्रक्रिया बहुत नाजुक होती है और अदृश्य रूप से सदैव चलती रहती है ! 

कबीर साहेब इसी लिये कहते है जो सांसारिक धर्म आप का सुख चैन छीन ले वो धर्म नहीं अधर्म है विदेशी यूरेशियन वैदिक ब्राह्मणधर्म पूरी तरह अधर्म और विकृति है उसे छोड़ोगे तभी सुख शांति मिलेगी अन्यथा जन्म मृत्यु के फेरे में दुख ही दुख भोगते रहोगे ! 

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Sunday, 12 January 2025

Pavitra Bijak : Pragya Bodh : Gyan Chountisaa : G

#पवित्र_बीजक : #प्रज्ञा_बोध : #ज्ञान_चौंतीसा : #ग 

#ज्ञान_चौंतीसा : #ग 

गगा गुरु के बचनहिं मान, दूसर शब्द करो नहिं कान / 
तहाँ बिहंगम कबहुँ न जाई, औगह गहि के गगन रहाई //

#शब्द_अर्थ : 

बिहंगम = विहंगम, पक्षी , मन! गगन = आकाश 

#प्रज्ञा_बोध : 

धर्मात्मा कबीर ज्ञान चौंतीसा के ग  वर्ण की विशेषता बताते हुवे कहते भाइयों अपने स्वदेशी मूलभारतीय हिन्दूधर्म के सदगुरु की बाते मानो अन्य अधर्मी विचार जो विदेशी यूरेशियन वैदिक ब्राह्मणधर्म के पाण्डे पुजारी ब्राह्मण बताते हैं उन्हें ना सुनो ना विदेशी तुर्की धर्म के बेतुके बातों में आवो ! 

अपना सनातन पुरातन समतावादी मानवतावादी समाजवादी वैज्ञानिक दृष्टि रखने वाला आदिवादी आद्यधर्म मूलभारतीय हिन्दूधर्म  ही सर्व श्रेष्ठ है जो वर्ण जाति वेवस्था उचनीच भेदाभेद अस्पृश्यता विषमता आदि अमानवीय विचार को छोड़ कर अपने स्वदेशी मूलभारतीय हिन्दूधर्म का पालन करने की  सिख देता है इसी से ही सुख शांति मिलेगी, गुलामी दूर होंगी !

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