#ज्ञान_चौंतीसा : #च
चचा चित्र रचो बड़ भारी, चित्र छोड़ी तैं चेतु चित्रकारी /
जिन्हें यह चित्र हुईंहै न खेला, चित्र छोड़ी तैं चेतु चितेला //
#शब्द_अर्थ :
चित्र = कल्पनाएं , मान्यता ! चित्रकारी = संसार की निर्मिती , जीव , सजीव निर्जीव श्रृष्टि ! विचित्र = भिन्न भाव भंगिमा ! चितेला = चितेरा !
#प्रज्ञा_बोध :
धर्मात्मा कबीर ज्ञान चौंतीसा में अक्षर च की विशेषता बताते हुवे कहते है भाइयों यह संसार चेतन राम की रचना निर्मिती है ! जीव जन्तु सभी सजीव निर्जिव सब का कुछ ना कुछ मकसद से बनाया है !
मानव समाज ने भी उनके मान्यता के मानक चित्र बनाए है नाम दिए, रिश्ते दिए , धर्म अधर्म संस्कृति विकृति शील अश्लील कि व्याख्या और मान्यता प्रदान की !
कबीर साहेब कहते है इस श्रृष्टि निर्माता की मंशा को समझो अपने भीतर झांक कर खुद को पहचानो , बाहरी चित्रकारी में खुद को भूल मत जावो ! जिस प्रकार संसार में नानाविध भूल भुलैया है वैसे ही मानव समाज के जीवन में माया मोह इच्छा अधार्मिक वृति तृष्णा आदि के कारण समाज जीवन में क्या अच्छा क्या धर्म क्या अधर्म की पहचान कठिन हुवि है ! समाज के और मानव के दुश्मन विदेशी यूरेशियन वैदिक ब्राह्मणधर्म के पाण्डे पुजारी ब्राह्मण धर्मगुरु आदि ने भ्रामक चित्र खड़े खड़े किए है , वर्ण जाति वेवस्था उचनीच भेदाभेद अस्पृश्यता विषमता आदि गलत चित्र या व्यवस्था को सही ना समझो ! जागो चित्र , चित्र बनाने वाला उसके उद्देश को पहचानो , सावधान रहें और नकली माल से बचे , मिलावट से बचे यही बात कबीर साहेब यहां बताते हैं !
#धर्मविक्रमादित्य_कबीरसत्व_परमहंस
#दौलतराम
#जगतगुरू_नरसिंह_मूलभारती
#मूलभारतीय_हिन्दूधर्म_विश्वपीठ
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