#ज्ञान_चौंतीसा : ढ
ढढा हिंड़त ही कित जान, हिंड़त ढूंढत जाय परान /
कोटि सुमेरु ढूंढ़ी फिरी आवै, जेहिं ढूंढा सो कतहुं न पावै //
#शब्द_अर्थ :
हिंड़त = खोजते ! सुमेरु = सुमेरु पर्वत !
#प्रज्ञा_बोध :
धर्मात्मा कबीर ज्ञान चौंतीसा का अक्षर ढ का तात्पर्य महत्व समझाते हुवे कहते है भाइयों लोग भगवान , देव, ईश्वर बाहर खोजते है उसकी काल्पनिक मूर्ति बनाकर मंदिर में पूजते है पर अपने मन मंदिर में स्थित चेतन राम की बात नहीं सुनते !
लोग ईश्वर की प्राप्ति के लिये जंगल पर्वत गुफा में जाते है वहां ईश्वर भगवान की आराधना , प्रार्थना करते है पर उसने शरीर के कण कण में बसा चेतन राम को अनदेखा करते है और जब कोई देव देवता सदेह उनके सामने प्रगट नही होता तो अपने भ्रमजाल से निर्मित काल्पनिक देवी देवता को ही कोसते है !
कबीर साहेब कहते हैं भाईयो ईश्वर को किसी मंदिर की मूर्ति में खोजना बंद करो किसी पर्वत या जंगल या गुफा में जाने की जरूरत नहीं वो चेतन तत्व राम संसार के कण कण में है बस जरूरत है खुद को निर्विकार निर्मल करने की और वही विधि उपाय मूलभारतीय हिन्दूधर्म का पालन करना है , धर्म का पालन करना है अधर्म को छोड़ना है !
#धर्मविक्रमादित्य_कबीरसत्व_परमहंस
#दौलतराम
#जगतगुरू_नरसिंह_मूलभारती
#मूलभारतीय_हिन्दूधर्म_विश्वपीठ
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