#ज्ञान_चौंतीसा : #झ
झझा अरुझी सरूझी कित जान, अरुझीनि हिंड़त जाय परान /
कोटि सुमेरु ढुंढी फिरि आवै, जो गढ़ गढ़ें गढ़ैंया सो पावै //
#शब्द_अर्थ :
हिंड़त = खोजत ! सुमेरु = पर्वत ! गढ़ = किला, वासना ! गढ़ैया = जीव !
#प्रज्ञा_बोध :
धर्मात्मा कबीर ज्ञान चौंतीसा का अक्षर झ की विशेषता बताते हुवे कहते है भाईयो तुम उलटे सीधे काम करते हो तो लक्ष्य पर नही पहुंच सकते ! धर्म और अधर्म एक साथ वांछित फल नहीं दे सकते !
कबीर ने कहते है भाईयो चेतन राम को ढूंढने के लिए किसी पहाड़ की चोटी पर जानेकी जरूरत नहीं ना जंगल जंगल भटकते की जरूरत है ये शरीर ही सुमेरु पर्वत है चोटी पर तुम्हारा विवेक बैठा है जिसे बुद्धि कहते है उसका उपयोग करो , परख करो , अच्छे बुरे कर्म और धर्म की पहचान करो, बुरे से बचो, अच्छे की संगत करो !
विकार और विकृति से भरा विदेशी यूरेशियन वैदिक ब्राह्मणधर्म से बचो, सुमेरु पर्वत मूलभारतीय हिन्दूधर्म खुद तुम्हारे पास है ! यही तुम्हारा सुरक्षित घर है गढ़ है किला है उसकी हिफाजत सुरक्षा करो , स्वदेशी मूलभारतीय हिन्दूधर्म की रक्षा करो , सदधर्म तुम्हारी रक्षा करेगा !
#धर्मविक्रमादित्य_कबीरसत्व_परमहंस
#दौलतराम
#जगतगुरू_नरसिंह_मूलभारती
#मूलभारतीय_हिन्दूधर्म_विश्वपीठ
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