#ज्ञान_चौंतीसा : #क
कका कँवल किर्ण में पावै, शशि ब्रिग़सित स्मपुट नहिं आवै /
तहाँ कुसुम रंग जो पावै, औगह गहि के गगन रहावै // १
#शब्द_अर्थ !
कँवल = कमल , वृदय ! किर्ण = किरण , प्रकाश, ज्ञान ! शशि = चंद्रमा, मन ! ब्रिग़सित = विकसित , जागृत ! स्मपुट = बंद , समाप्त ! कुमुद = पीला रंग = रंग, आभा ! औगह = अगम्य ! गगन = आकाश, वृद्यय !
#प्रज्ञा_बोध :
धर्मात्मा कबीर ज्ञान चौंतीसा में क अक्षर की महता बताते हुवे कहते है क अक्षर कोमल सुंदर कमल पुष्प जैसा है और मानव का मन भी वैसा ही होना चहिये कोमल और सुंदर ! कमाल कीचड़ में खिलता है पर कीचड़ में लिप्त नहीं होता , जब तक बेदाग तब तक सुंदर कमल देखतेही बनता है , प्यारा प्यारा लगता है उसी प्रकार बेदाग जीवन जीने वाला व्यक्ति सब को प्रिय होता है !
कबीर साहेब कहते हे मानव तुम कमल जैसे बनो , रहो मोह माया इच्छा अधार्मिक वृति तृष्णा के मैल से जब तक दूर रहोगे , निर्मल रहोगे चेतन राम को भी प्यारे लगोगे !
#धर्मवीक्रमादित्य_कबीरसत्व_परमहंस
#दौलतराम
#जगतगुरू_नरसिंह_मूलभारती
#मूलभारतीय_हिन्दूधर्म_विश्वपीठ
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