Saturday, 25 January 2025

Pavitra Bijak Pragya Bodh : Gyan Chountisaa : Thh

#पवित्र_बीजक : #प्रज्ञा_बोध : #ज्ञान_चौंतीसा : #थ 

#ज्ञान_चौंतीसा : #थ 

थथा अति अथाह थाहो नहिं जाई, ई थिर  ऊ स्थिर नहि रहाई  /
थोरे थोरे स्थिर हाउ भाई, बिन थम्भे जस मंदिर थांभाई  //

#शब्द_अर्थ : 

ई = लोक  , ये संसार ! ऊ = पर लोक, अन्य ! थाह = अंदाज !

#प्रज्ञा_बोध : 

धर्मात्मा कबीर ज्ञान चौंतीसा का अक्षर थ का जीवन में मतलब समझाते हुवे कहते हैं भाईयो जीवन में उलझने बहुत आती है ! माया मोह इच्छा भरे इस जीवन में मन अस्थिर होता है , ये करे या वो करें कुछ समझ नहीं आता है ! 

मन अस्थिर कब होता है ? धार्मिक मन और मोह भरे मन में जब द्वंद्व चलता है तब अपने आप को सद्विवेक से स्थिर कर अच्छा बुरा की पहचान कर शांति ओर धैर्य से काम लेना चाहिए ! 

कबीर साहेब कहते है संसार, परलोक , स्वर्ग नरक  आदि अनेक संभ्रमित कल्पना ने मानव को डराया है ! भाई  ये संसार वास्तविक है और परलोक भ्रम , स्वर्ग नरक भ्रामक धारणाएं है , सुख दुख सच्चाई है ! सुख दुख का चयन आपके हाथ में है , अधर्म करोगे तो दुख मिलना निश्चित है और धर्म करोगे हो सुख मिलने से कोई रोक नहीं सकता और ये खुद आप चुन सकते हो बस जरूरत है मन को स्थिर  कर धर्म से जीने की !

#धर्मविक्रमादित्य_कबीरसत्व_परमहंस 
#दौलतराम 
#जगतगुरू_नरसिंह_मूलभारती 
#मूलभारतीय_हिन्दूधर्म_विश्वपीठ 
#कल्याण, #अखंडहिंदुस्थान, #शिवश्रृष्टि

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