Monday, 20 January 2025

Pavitra Bijak : Pragya Bodh : Gyan Chountisaa : T

#पवित्र_बीजक : #प्रज्ञा_बोध : #ज्ञान_चौंतीसा : 
#ट

#ज्ञान_चौंतीसा : #ट 

टटा बिकट बाट मन माहीं, खोलि कपाट महल  मौ जाहीं  /
रही लटापटि झूटि तेहि माहीं, होई अटल तब कतहुँ न जाहीं //

#शब्द_अर्थ : 

कपाट = किवाड़  , फाटक , मन  का दरवाजा !  महल = स्वरूप , स्वघर ! लटापटी = किसी प्रकार , संघर्ष ! 

#प्रज्ञा_बोध : 

धर्मात्मा कबीर ज्ञान चौंतीसा के अक्षर ट का तात्पर्य समझाते हुए कहते हैं भाईयो मन की उलझनें बडी बिकट होती है ! मन बड़ा चंचल है कही एक जगह टिकता नहीं इस लिये मन को बड़े धैर्य और परिश्रम से चुचकारते हुवे उसे आपाधापी से शांत कर मन के अंदर जाना होता है तब कही आत्म स्वरूप का बोध होता है ! 

कबीर साहेब कहते है जब मन पर नियंत्रण हो जाता है मार यानी इच्छा , तृष्णा मोह माया अहंकार आदि छट रिपु को वश में कर लिया जाता है और मन निर्मल शुद्ध निर्विकार होता तब चेतन राम के दर्शन होते है ! यही अटल स्थिति है फिर कही जाने की जरूरत नहीं होती है  ! यही निर्वाण मोक्ष कि स्थिति जो जीते जी हम प्राप्त कर सकते हैं ! यही परमसुख है ! 

#धर्मविक्रमादित्य_कबीरसत्व_परमहंस 
#दौलतराम 
#जगतगुरू_नरसिंह_मूलभारती 
#मूलभारतीय_हिन्दूधर्म_विश्वपीठ 
#कल्याण, #अखंडहिंदुस्थान, #शिवश्रृष्टि

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