#ज्ञान_चौंतीसा : #ण
णणा दुई बसाये गाऊँ, रेणा ढूंढे तेरी नाउँ /
मुये एक जाय तजि धना, मरे इत्यादिक केते को गना //
#शब्द_अर्थ :
रेणा = झगड़ा ! गना = गिनती !
#प्रज्ञा_बोध :
धर्मात्मा कबीर ज्ञान चौंतीसा के अक्षर ण की महता बताते हुवे कहते है भाइयों न का अर्थ है निरर्थक ! हम सब निरर्थक वस्तुएँ जमा करने में लगे रहते है ! धन संपत्ति महल माड़ी , राजसी किले , गाड़ी घोड़े , मकान दुकान सब इकट्ठा करते है और धर्म का आचरण ही छोड़ देते है !
इन चीजोंसे किसे सुख शांति मिली है ? न इकट्ठा करने वाले को न उसके मरने बाद जीने वालों को ! क्यू की जीते जी भी यही चीजें धन संपत्ति दुख का कारण थी तृष्णा मोह माया अहंकार का कारण थी , कमाने वाला मरे तो यही धन संपत्ति मोह माया दुख का कारण रहती है !
कबीर साहेब कहते हम दुख का कारण खुद मोल लेते है और ये कोई नई बात नहीं , जादातर संसार में यही हो रहा है , लोग आते है , मरते है पर दुख के कारण को जानते ही नहीं !
#धर्मविक्रमादित्य_कबीरसत्व_परमहंस
#दौलतराम
#जगतगुरू_नरसिंह_मूलभारती
#मूलभारतीय_हिन्दूधर्म_विश्वपीठ
No comments:
Post a Comment