#पवित्र_बीजक : #प्रज्ञा_बोध : #ज्ञान_चौंतीसा : #ड
#ज्ञान_चौंतीसा : #ड़
डडा निरखत निशिदिन जाई, निरखत नैन रहै रतनाई /
निमिष एक जो निरखै पावै, ताहि निमिष में नैन छिपावै //
#शब्द_अर्थ :
निरखत = देखते हुए ! निशिदिन = सारा समय ! निमिष = पलक झपकाते , एक क्षण में ! नैन = आंखे ! छिपावै = अदृश्य करना !
#प्रज्ञा_बोध :
धर्मात्मा कबीर ज्ञान चौंतीसा में अक्षर ड की विशेषता बताते हुए कहते है भाईयो इस शरीर का एक ज्ञानेद्रिय आंख से आंख वाले जीवन का पूरा समय बिता देते है देखना आंख का काम है वह पलभर में एक क्षण में देख लेता है और आंख पलक झपकाते ही उसे दृष्टि से ओझल कर देता है !
कबीर साहेब कहते पर भाईयो विवेक तो आपके अंतर्मन को ही करना होगा क्या देखे , क्यू देखे, हितवाह है या नहीं !
आंख की एकाग्रता को नाक के अग्र बिंदु पर केंद्रित कर बहुत सारे लोग हिप्नोटीजम की विद्या हासिल करना चाहते हैं ! किसी बिन्दु पर सारा लक्ष केंद्रित कारना सरल नहीं होता हम बार बार उसमें असफल होते है , आंख लाल हो जाती है , पाणी आना शुरू होता है और प्रयास कुछ लोग छोड़ देते है क्यू की अधीर हो जाते है , समीप पहुंचकर भी वापस लौट जाते है !
कबीर साहेब यहां दृढ़ निश्चय बनाए रखने की बात करते है , लक्ष से ना भटकों उसे आंख से ओझल ना होने दो ! भरा बुला का विवेक करो और जो अधर्म है उसे दूर रखो , जागृत रहो ! विवेक बुद्धि से जो खोया वह गुलाम हो जाता है, जो सोया वो खोया !
#धर्मवीक्रमादित्य_कबीरसत्व_परमहंस
#दौलतराम
#जगतगुरू_नरसिंह_मूलभारती
#मूलभारतीय_हिन्दूधर्म_विश्वपीठ
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