#पवित्र_बीजक : #प्रज्ञा_बोध : #ज्ञान_चौंतीसा : #त्र
#ज्ञान_चौंतीसा : #त्र
त्रत्रा निग्रह सनेहू , करो निरुवार संदेहू /
नहिं देखे नहिं भाजिया, परम सयानप येहू //
जहाँ न देखि तहाँ आपु भजाऊ, जहाँ नहीं तहाँ तन मन लाऊ /
जहाँ नहीं तहाँ सब कुछ जानी, जहाँ है तहाँ ले पहिचानी //
#शब्द_अर्थ :
निग्रह = निवारण , त्याग ! सनेहू = स्नेह . माया ! सयानप = बुद्धिमानी श्रेष्ठता ! आपु भजाऊ = स्वयं भाग जाना !
#प्रज्ञा_बोध :
धर्मात्मा और त्र अक्षर के माध्यम से उपदेश करते हुवे कहते है भाइयों मन कि चंचलता का संदेह का धर्म ओर निग्रह के साथ निवारण करो ! जो संसार में दिख रहा है उससे ना दूर भागों ना उसको अपने उपर हावी न होने दो !
सत्य क्या है समझो, विवेक का उपयोग करों और अंधविश्वास पर आधारित कोई काम ना करो !
संसार में लोग बड़े ठगी है , अधर्म को धर्म बताने है शोषण ओर विषमता को धर्म कहते है इनसे दूर रहो अधर्म का पालना कर काई सुखी नही हो सकता !
शील सदाचार भाईचारा समता शांति अहिंसा मानवता ही सच्चा धर्म है ! माया मोह इच्छा तृष्णा से दूर रहो ये आपके वहाँ ले जाते है जो अहितकारक है !
#धर्मविक्रमादित्य_कबीरसत्व_परमहंस
#दौलतराम
#जगतगुरु_नरसिंह_मूलभारती
#मूलभारतीय_हिन्दूधर्म_विश्वपीठ
No comments:
Post a Comment