#पवित्र_बीजक : #प्रज्ञा_बोध : #ज्ञान_चौंतीसा : #घ
#ज्ञान_चौंतीसा : #घ
घघा घट बिनसै घट होई, घटहि में घट राखु समोई /
जो घट घटई घट फिरि आवै, घट ही में फिर घटहि समावै //
#शब्द_अर्थ :
घट = शरीर ! समोई = शमन ! घटई = देह आसक्ति ! समावै = प्रविष्ट होना !
#प्रज्ञा_बोध :
धर्मात्मा कबीर ज्ञान चौंतीसा के वर्ण घ का तात्पर्य समझाते हुवे कहते है भाईयो यह संसार जुड़ना टूटना का खेल है ! चेतन राम तत्व जुड़ते रहते है टूटते रहते है उसी की क्रिया प्रतिक्रिया नित नव निर्मिति है और इस प्रकार नव निर्मिति के लिये जन्म मृत्यु होता रहता है!
मानव जीवन भी इस जुड़ना टूटना प्रक्रिया पर चलता रहता है जब तक धर्म यानी सकारात्मक तत्व काम करते रहते है शांति सुख से जीवन आगे बढ़ता रहता है जैसे ही अधर्म , विकार , माया मोह, लालच , अहमभाव बढ़ता है शरीर का सुख शांति घटने लगता है और शरीर टूटकर बिखरना लगता है ! यह प्रक्रिया बहुत नाजुक होती है और अदृश्य रूप से सदैव चलती रहती है !
कबीर साहेब इसी लिये कहते है जो सांसारिक धर्म आप का सुख चैन छीन ले वो धर्म नहीं अधर्म है विदेशी यूरेशियन वैदिक ब्राह्मणधर्म पूरी तरह अधर्म और विकृति है उसे छोड़ोगे तभी सुख शांति मिलेगी अन्यथा जन्म मृत्यु के फेरे में दुख ही दुख भोगते रहोगे !
#धर्मवीक्रमादित्य_कविरसत्व_परमहंस
#दौलतराम
#जगतगुरू_नरसिंह_मूलभारती
#मूलभारतीय_हिन्दूधर्म_विश्वपीठ
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