#पवित्र_बीजक : #प्रज्ञा_बोध : #ज्ञान_चौंतीसा : #ग
#ज्ञान_चौंतीसा : #ग
गगा गुरु के बचनहिं मान, दूसर शब्द करो नहिं कान /
तहाँ बिहंगम कबहुँ न जाई, औगह गहि के गगन रहाई //
#शब्द_अर्थ :
बिहंगम = विहंगम, पक्षी , मन! गगन = आकाश
#प्रज्ञा_बोध :
धर्मात्मा कबीर ज्ञान चौंतीसा के ग वर्ण की विशेषता बताते हुवे कहते भाइयों अपने स्वदेशी मूलभारतीय हिन्दूधर्म के सदगुरु की बाते मानो अन्य अधर्मी विचार जो विदेशी यूरेशियन वैदिक ब्राह्मणधर्म के पाण्डे पुजारी ब्राह्मण बताते हैं उन्हें ना सुनो ना विदेशी तुर्की धर्म के बेतुके बातों में आवो !
अपना सनातन पुरातन समतावादी मानवतावादी समाजवादी वैज्ञानिक दृष्टि रखने वाला आदिवादी आद्यधर्म मूलभारतीय हिन्दूधर्म ही सर्व श्रेष्ठ है जो वर्ण जाति वेवस्था उचनीच भेदाभेद अस्पृश्यता विषमता आदि अमानवीय विचार को छोड़ कर अपने स्वदेशी मूलभारतीय हिन्दूधर्म का पालन करने की सिख देता है इसी से ही सुख शांति मिलेगी, गुलामी दूर होंगी !
#धर्मविक्रमादित्य_कबीरसत्व_परमहंस
#दौलतराम
#जगतगुरू_नरसिंह_मूलभारती
#मूलभारतीय_हिन्दूधर्म_विश्वपीठ,
#कल्याण, #अखंडहिंदुस्थान, #शिवश्रृष्टि
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