Thursday, 31 October 2024

Pavitra Bijak : Pragya Bodh : Shabd : 48 : Pandit Karahu Vichaara !

#पवित्र_बीजक : #प्रज्ञा_बोध : #शब्द : ४८ : पण्डित देखहु वृदय विचारी !

#शब्द : ४८

पण्डित देखहु वृदय विचारी, को पुरुष को नारी : १
सहज समाना घट घट बोलै, वाके चरित अनुपा : २
वाको नाम काह कहि लीजै, न वाके वर्ण न रूपा : ३
तैं मैं क्या करसी नर बौरे, क्या मेरा क्या तेरा : ४
राम खुदाय शक्ति शिव एकै, कहु धौं काहि  निहोरा : ५
वेद पुराण कितेब कुराना, नाना भ्रांति बखाना : ६
हिन्दू तुरुक जैनि औ योगी, ये कल काहु न जाना : ७
छौ दर्शन में जो परवाना, तासु नाम मनमाना : ८
कहहिं कबीर हमहि पै बौरे, ई सब ख़लक सयाना : ९ 

#शब्द_अर्थ : 

सामना : प्रविष्ट ! चरित = स्वभाव ! अनुपा = विलक्षण ! वर्ण = रंग , वर्ग ! धौं = भला ! निहोरा = प्रार्थना !  छौ दर्शन : ब्राह्मण जैन बुद्ध मुस्लिम  ख्रिस्ती   पारसी धर्म विचार ! परवाना = प्रमाणित ! पै = परन्तु ! ख़लक = संसार के सारे लोग !  सयाना = होशियार ! ज्ञानी ! 

#प्रज्ञा_बोध : 

धर्मात्मा कबीर कहते हैं हे विदेशी यूरेशियन वैदिक ब्राह्मणधर्म के पाण्डे पुजारी पंडितों ब्राह्मणों जरा विचार कर के बात करो क्या परमात्मा जिसे तुम ब्रह्म कहते वो क्या पुरुष है या नारी  ? 

भाई जो घट घट में है वो चेतन तत्व ना पुरुष है ना स्त्री उसका कोई वर्ण रंग  रूप वर्ग जाती  नहीं है वो निराकार निर्गुण अविनाशी तत्व चेतन राम कोई पुरुष स्त्री नहीं है उसका वर्णन रूप नहीं बताया जा सकता , वो विलक्षण है ! 

ना वो तुम्हारा ब्रह्म , ब्रह्मा है न अल्ला , न शिव ना शक्ति उसे किसी नाम की जरूरत ही नहीं ना वो अवतार लेता है ना किसी मूर्ति में बसता है ना उसकी किसी मंत्र तंत्र पूजा उपासना अनुष्ठान होम हवन से प्राण प्रतिष्ठा की जा सकती है !  ना वो दशरथ का पुत्र राम है ना कृष्ण ना वो किसी को प्रेषित बना कर भेजता है इसलिए सभी तथाकथित धर्मो के धर्म ग्रंथ विचार तत्व सब मानव निर्मित ही है , वेद, मनुस्मृति , कुरान बाइबल और अन्य सभी आदेश मानव निर्मित है उसमे जो भी विकार है उसका जिम्मेदार भी मानव ही है ! इस लिये विकृत वर्ण जाति वाद , भेदभाव उचनिच अस्पृश्यता विषमता छुआछूत , ढोंग धतूरे अधर्म नैतिक आचरण और पतन के लिये मानव खुद जिम्मेदार है ! 

एक चेतन तत्व का निवास हम सब में है इस लिए तू तू मैं मै ना करो , झगड़े ना करो भाईचारे से रहो , समता ममता शांति अहिंसा सदाचार का व्यवहार करो , शील सदाचार का पालन कर विषमता को खत्म करो ! विश्व समाजवाद , विश्व बंधुत्व का धर्म मूलभारतीय हिन्दूधर्म का पालन करो ये धार्मिक के नाम पर अधार्मिक वर्तन और उन्माद बेकार है ! 

#धर्मविक्रमादित्य_कबीरसत्व_परमहंस 
#दौलतराम 
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#कल्याण, #अखंडहिंदुस्थान, #शिवसृष्टि

Wednesday, 30 October 2024

Pavitra Bijak : Pragya Bodh : Shabd : 47

#पवित्र_बीजक : #प्रज्ञा_बोध : #शब्द : ४७ : पाण्डे बुझी पियहु तुम पानी ! 

#शब्द : ४७

पाण्डे बुझी पियहु तुम पानी : १
जेहि मटिया के घर में बैठे, तामे सृष्टि समानी: २
छप्पन कोटि यादव जहैं भीजे, मुनि जन सहस अठासी : ३
पैग पैग पैगम्बर गाड़े, सो सब सरि भौ माटी : ४
मच्छ कच्छ घरियार बियाने, रुधिर नीर जल भरिया : ५
नदिया नीर नरक बहि आवै, पशु मानुष सब सरिया : ६
हाड़ झरी झरि गुद गली गलि, दूध कहाँ से आया : ७
सो ले पाण्डे जेवन बैठे, मटियहि छूति लगाया : ८ 
वेद कितेब छांडिन देहु पाण्डे, ई सब मन के भरमा : ९
कहहिं कबीर सुनो हो पाण्डे, ई सब तुम्हारो करमा : १० 

#शब्द_अर्थ : 

भीजे =  सड़ गये !  मच्छ = मछली  ! कच्छ = कछुए !   झरि = टूटना गिरना !  गुद =  मांस ! नरक = विष्ठा ! जेवन = भोजन , खाना , अन्न ! 

#प्रज्ञा_बोध : 

धर्मात्मा कबीर कहते हैं हे विदेशी यूरेशियन वैदिक ब्राह्मणधर्म के पाण्डे पुजारी ब्राह्मण सुनो तुम्हारे वेद , मनुस्मृति आदि अन्य किताबें सब नकली और मन गढ़ंत , झूठे है ! तुम जो छुआछूत  मानते हो , अस्पृश्यता  मानते हो  और अस्पृश्य के स्पर्श के बाद खुद को  पानी में डुबकी लगाकर शुद्ध करने कर ढोंग करते हो क्या तुम जानते हो उसी पानी में न जाने किस किस की विष्ठा ,  पोट्टी  मिली हो किस किस जानवर मानुष के मृत  देह सड़ गल कर मिले हो कितने के खून और हड्डी उसमें मिली हो ! 

मूर्खों उसी पानी के सींचने से अन्न उत्पन्न होता है और इसी मिट्टीमें करोड़ों करोड़ों मूलभारतीय न केवल जिए और मरे और दफनाए गये उस धरति पृथ्वी माटी पर तुम खड़े ओर छुवाछूत , अस्पृश्यता की बात करते हो ! 

अज्ञानीवो क्या तुम्हे पता है इस धरती पर कितने ज्ञानी मुनि प्रेषित साधु संत जन्मे ? कोई हिसाब नहीं यहाँ पग पग पर कदम कदम पर कितने ही विद्वान ज्ञानी लोग गड़े पड़े है कोई मिट्टी एक ढेला ऐसा नहीं जहां कोई जीव जन्तु नहीं मर कर माटी बन गया हो उस माटी को तुम छुआछूत का जरिया बनते हो लानत है तुम पर ! 

विदेशी यूरेशियन वैदिक ब्राह्मणधर्म के पाण्डे पुजारी ब्राह्मण ये वेद मनुस्मृति जैसे फालतू  बेवकूफी भरे तुम्हारे वैदिक ब्राह्मणधर्म के तथाकथित धर्मग्रंथ अपने पास ही रख्खो हमे उनकी कोई जरूरत नहीं ! हमारा मूलभारतीय हिन्दूधर्म लोकधर्म है सिंधु हिन्दू संस्कृति का धर्म है आद्य सनातन पुरातन आदिवासी मूलभारतीय समाज का धर्म है न हम अस्पृश्यता मानते है न विषमता न छुआछूत न वेद न मनुस्मृति ना तुम्हे हमारे हिन्दू धर्म के लोग मानते है ना इंसान ! इंसानियत नाम की काई चीज तुम में बाकी नही ! धरती के तुम बोझ हो जो छुआछूत करते हो !

#धर्मविक्रमादित्य_कबीरसत्व_परमहंस 
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Tuesday, 29 October 2024

Pavitra Bijak : Pragya Bodh : Shabd : 46 : Pandit Ek Acharaj

#पवित्र_बीजक : #प्रज्ञा_बोध : #शब्द : ४६ : पण्डित एक अचरज बड़ होई !

#शब्द : ४६ 

पण्डित एक अचरज बड़ होई : १
एक मरि मुये अन्न नहिं खाई, एक मरे सिजै रसोई : २
करि अस्नान देवन की पूजा, नौ गुण काँध जनेऊ : ३
हड़ीया हाड़ हाड़ धरिया मुख, अब षट कर्म बनेऊ : ४
धर्म करे जहाँ जीव बधतु हैं, अकर्म करे मोरे भाई : ५
जो तोहरा को ब्राह्मण कहिये, तो काको कहिये कसाई : ६
कहहिं कबीर सुनो हो संतों, भरम भूलि दुनियाई : ७
अपरम्पार पार पुरुषोत्तम, या गति बिरले पाई : ८

#शब्द_अर्थ :

अपरम्पार = असीम !  गति = स्थिति ! 

#प्रज्ञा_बोध : 

धर्मात्मा कबीर  जीव हत्या को पाप मानने है , दुष्कर्म मानते है यही विचार मूलभारतीय हिन्दू धर्म का रहा है और हिन्दू धर्म के पंथ बौद्ध धर्म , जैन धर्म ने भी इसी मूलभारतीय हिन्दूधर्म तत्व का प्रचार प्रसार किया है ! ये हमारा सनातन पुरातन धर्म है जीव हत्या पाप है ! 

पर विदेशी यूरेशियन वैदिक ब्राह्मणधर्म के लाग और उनका विदेशी वैदिक यूरेशियन ब्राह्मणधर्म शुरू से ही असभ्य , असंस्कृत , विकृत अधमी रहा है उन्होंने कभी भी प्राणी हत्या को पाप नहीं माना वे होम हवन में बड़े पैमाने पर गाय बैल घोड़े आदि प्राणी की बलि देते रहे है और बड़े चाव से हड्डी मांस रुधिर आदि अन्न बोल कर खाते रहे है ! प्राणी हत्या गाय बैल की होम हवन में बलि के बाद उनकी अंतड़ी को जनेऊ बनाकर पहनते थे !  उन्हें प्राणी हत्या का कोई अफसोस नहीं !  अब इनको ब्राह्मण कहे कि कसाई पूछते है कबीर ! 

विदेशी यूरेशियन वैदिक ब्राह्मणधर्म के पाण्डे पुजारी बाद में नकली बुद्धिस्ट जैनी साधु भिक्कू मुनि बने और स्नान , गंध, तिलक लगाकर अपने को ब्राह्मण ज्ञानी कहने लगे पर ये थोथे है इनका ज्ञान बस दान दक्षिणा तक ही सीमित है लोगोंको भ्रमित करने के लिए विविध पूजा अर्चना पाठ , सोंग धतूरे करते है पर इनका कोई धर्म नहीं विकृती ही इनका धर्म है ! मानव मानव में भेदाभेद , उचनिच अस्पृश्यता विषमता , छुआछूत को ये लोग धर्म कहते है इस से बड़ी मूर्खता और क्या होगी ! पर ये दुराचारी लोग खुद को देव , ईश्वर , भगवान समझते है और कहते है वे कुख्यात ब्रह्मा के वंशज है ! 

कबीर साहेब इन कसाई असभ्य विदेशी यूरेशियन वैदिक ब्राह्मणधर्म के पांडे पुजारी को इंसान बनाने को कहते है !  ये क्या जाने परमतत्व चेतन राम ! जो इंसान नहीं वो क्या होंगे देव ?

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Monday, 28 October 2024

Pavitra Bijak : Pragya Bodh : Shabd : 45 : Ko Na Muva Kaho Pandit

#पवित्र_बीजक : #प्रज्ञा_बोध : #शब्द : ४५ : को न मुवा कहो पण्डित जना ! 

#शब्द : ४५

को न मुवा कहो पण्डित जना, सो समुझाय कहो मोहि सना : १
मुये ब्रह्मा विष्णु महेशु, पार्वती सुत मुये गणेशू : २
मुये चन्द मुये रवि शेषा, मुये हनुमत जिन्ह बाँधल सेता : ३
मुये कृष्ण मुये कर्तारा, एक न मुवा जो सिर्जनहारा : ४
कहहिं कबीर मुवा नहिं सोई, जाको  आवागमन न होई : ५ 

#शब्द_अर्थ : 

को = कौन ! न = नहीं ! मुवा = मरा !  मोहि सना = मुझसे ! कर्तारा = विश्वकर्मा, प्रजापति ! सिर्जनहारा = चेतन तत्व , चेतन राम !  

#प्रज्ञा_बोध : 

धर्मात्मा कबीर कहते है हे विदेशी यूरेशियन वैदिक ब्राह्मणधर्म के पाण्डे पंडितों बतावो तुम्हारे वो वैदिक ब्राह्मण देव देवी देवता ब्रह्मा इंद्र रुद्र विष्णु गायत्री सावित्री इंद्राणी तुम्हारे गुरु मरे की नहीं ? जो देहधारी ब्राह्मण धर्म के अवतार मच्छ कच्छ वराह आदि मरे की नहीं ? क्यू प्राण प्रतिष्ठा के ढोंग करते हो ? क्यू झूठे नकली करोड़ों देव देवी बताकर लूटते हो ! 

वैदिक ब्राह्मणधर्म के ढोंग सोंग मे तुम्हने हमारे मूलभारतीय हिन्दूधर्मी के महापुरुष जो जन्मे और कुछ अच्छे काम कर मरे उनको भी तुम्हने अपने दान दक्षिणा के फायदे के लिऐ अवतार , भगवान बनकर और अमर है कह कर बेवकूफ बना रहे हो ! 

विदेशी यूरेशियन वैदिक ब्राह्मणों ये गलत धन्दे बंद करो , छोड़ दो अब सब लोग तुम्हारे ढोंग धतूरे , होम हवन, जनेऊ संस्कार के फालतू बातों को जान चुके है !  हम मानते है हमारे मूलभारतीय हिन्दूधर्मी शिव , गणेश, पार्वती , राम कृष्ण हनुमान नागराजा शेषनाग आदि भी देहधारी व्यक्ति ही थे मानव ही थे और जैसे कि सभी जन्म लेने मरते है वैसे ही मरे है ! 

मूलभारतीय हिन्दूधर्म ये मानता है कि जो जन्म लेता है वह मरता है बस एक। नहीं मरता जो अमर अजर सदा ले लिए है वो है चेतन तत्व राम !  चेतन तत्व राम का कोई जन्म मृत्यु नहीं , जो जीता मरता है वो है जीव , व्यक्ति,  प्राणी ! 

मूलभारतीय हिन्दूधर्म धर्मात्मा कबीर के इस धर्म विज्ञान को प्रज्ञा बोध को मानता है और यही अमर अजर निर्गुण निराकार अविनाशी परमतत्व परमात्मा चेतन राम के सानिध्य को प्राप्त करने के लिए सहज सरल शुद्ध निर्मल जीवन जीने की धर्म सिख देता है ताकि आपको निर्वाण मोक्ष की अवस्था का परम सुख शांति प्राप्त हो !

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Sunday, 27 October 2024

Pavitra Bijak : Pragya Bodh : Shabd : 44 : Buz Buz Pandit Karahu Vichaara !

#पवित्र_बीजक : #प्रज्ञा_बोध : #शब्द : ४४ : बुझ बुझ पण्डित करहु विचारा ! 

#शब्द : ४४

बुझ बुझ पण्डित करहु विचारा, पुरुषा है कि नारी : १
ब्राह्मण के घर ब्राह्मणी होती, योगी के घर चेली : २
कलमा पढ़ी पढ़ी भई तुरुकनी, कलि में रहत अकेली : ३
वर नहिं वरे ब्याह नहिं करे, पुत्र जन्मावनहारी : ४ 
कारे मुंड को एकहु न छांड़ी, अजहूँ आदि कुमारी : ५
मैके रहे जाय नहिं ससुरे, सांई संग न सोवों : ६
कहैं कबीर मैं युग युग जीवो, जॉति पाँति कुल खोवो : ७

#शब्द_अर्थ : 

ब्राह्मणी = ब्राह्मणपन, ब्राह्मणबाद , विदेशी यूरेशियन वैदिक ब्राह्मणधर्म ! चेली = शिष्य ! कलमा = मुस्लिम धर्म का मूल मंत्र ! तुरुकनी = मुसलमान स्त्री ! कलि = पाप बुद्धि ! बर = दूल्हा ! बरे = ब्याह करना ! कारे मुंड = युवा पुरुष ! आदि = शुरू से ! कुमारी = कुंआरी ! मैके = मां का घर , नैहर ! ससुरे = ससुराल , संसार ! सांई = स्वामी , चेतन राम ! युग युग = सदा के लिए ! 

#प्रज्ञा_बोध : 

धर्मात्मा कबीर कहते हैं विदेशी यूरेशियन वैदिक ब्राह्मणधर्म , ब्राह्मणवाद जाति वर्णवाद , कुल गोत्र वाद उचनीच भेदाभेद अस्पृश्यता विषमता आदि अमानवीय विचार के लिये कुख्यात है ! वैसे ही हट योग के योगी अपने चरम अहंकार के लिये कुख्यात है ! मुस्लिमधर्म भी स्त्री पुरुष गैर बराबरी के लिये कुख्यात है और ये सभी स्त्री का शोषण करते है ! 

ये सभी बाहरी दिखावा करते है बाहरी पूजा पाठ नमाज भस्म माला आदि काई धर्म नहीं ! अंतरात्मा चेतन राम के साथ तदरूप होने के बजाय वो संसार में माया मोह इच्छा तृष्णा आदि में ही अटके पड़े हैं ! कबीर साहेब कहते है जो लोग जाति वर्णवाद में अटके पड़े है जो दूसरे को काफिर कहते है वे क्या धर्म जानेंगे ! धर्म ये नहीं जहां शील सदाचार भाईचारा समता मानवता अहिंसा आदि मानवीय मूल्यों पर आधारित सत्य सनातन पुरातन समतावादी मानवतावादी समाजवादी वैज्ञानिक सोच नहीं वो धर्म नहीं अधर्म और विकृति है ! यही भारत में अनादि काल से माना गया है ! आइए सब छोड़िए अपना सदधर्म मूलभारतीय हिन्दूधर्म का पालन कर सुख से संसार में रहिए यही सिख कबीर साहेब यहां देते है ! 

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Saturday, 26 October 2024

Pavitra Bijak : Pragya Bodh : Shabd : 43

#पवित्र_बीजक : #प्रज्ञा_बोध : #शब्द : ४३ : 
पण्डित मिथ्या करहु विचारा  ! 

#शब्द : ४३ 

पण्डित मिथ्या करहु विचारा, ना वहाँ सृष्टि न सिरजन हारा : १
स्थूल अस्थूल पौन नहिं पावक, रवि शशि धरणि न नीरा : २
ज्योति स्वरूप काले नहिं जह्नवाँ, बचन न आहि शरीरा : ३
कर्म धर्म किछुवो नहिं जहाँवा, ना वहाँ मन्त्र न पूजा : ४
संजम सहित भाव नहिं जहाँवा, सो धौं एक कि दूजा : ५ 
गोरख राम एकौ नहिं उहाँवा, ना वहाँ वेद विचारा : ६ 
हरिहर ब्रह्मा नहिं शिव शक्ति, तीर्थउ नाहिं अचरा : ७ 
माय बाप गुरु जह्नवा नाहीं, सो धौं दूजा कि अकेला : ८
कहहिं कबीर जो अबकी बुझै, सोई गुरु हम चेला : ९

#शब्द_अर्थ : 

वहाँ = निर्वाण अवस्था, मोक्ष अवस्था !  थूल =  स्थूल ! अस्थूल = सूक्ष्म ! काल = समय की अवधि या अवधारणा ! संजम = संयम ! एक = अकेला,  असंग ! दूजा =  दूजा भाव , द्वैत , दूसरा ! 

#प्रज्ञा_बोध : 

धर्मात्मा कबीर विदेशी वैदिक यूरेशियन ब्राह्मणधर्म के लोगोंको उनके पण्डित , धर्म गुरु , पीठाधीश इनको पूछते है भाई आपके वेद और मनुस्मृति आदि ब्राह्मणधर्म ग्रंथ में जिसे आप ब्रह्मा  कहते हो वह कैसा है ?  जो तुम मानव रूप में तीन मुंडी चार मुंडी वाला ब्रह्मा कहते हो वो तो मानव लंपट निकला आपके अन्य देवी देवता भी ऐसे ही है !  भाई क्यू झूठ फैला रहे हो ?  कबीर साहेब देशी लोगोंके कुछ पंथ जैसे गोरख को बड़ा गुरु मानने वाले , रामानंदी पंथी , शिव शक्ति पंथी को भी कहते है भाई आप जो राम शिव शक्ति , योग, हट योग आदि को ईश्वर मानते हो वो भी झूठ है , ये भी मानव ही थे ईश्वर नहीं ! 

 कबीर साहेब कहते ईश्वर ऐसा नहीं है जैसा ब्राह्मण , मौलवी और अन्य पंथी मानते है दरअसल ऐसा कोई दृश्य वो सृष्टि निर्माता हैं ही नही ! 

कबीर साहेब सनातन पुरातन काल से चला आ रहा मूलभारतीय हिन्दूधर्म का अदभुत चिंतन , प्रज्ञा बोध को बताते हुवे कहते है भाईयों चेतन राम , वो परम तत्व चेतन निर्विकार निराकार निर्गुण अविनाशी एक ही अवस्था में है और वो अवस्था है मोक्ष की अवस्था , निर्वाण की अवस्था निरपेक्ष की अवस्था ! उस चेतना को न समय काल का बंधन है न जन्म मृत्यु  ! उस को कोई उपमा अलंकार नहीं दी जा सकती है न उसे सृष्टि कहां जा सकता है न सृष्टि निर्माता ना वे सूर्य चांद तारे है न हवा पानी न उसका कोई कर्म है न कारण न भाव न पाप न पुण्य न उसका काई धर्म पंथ ! न अनेक है न वो तीर्थ पूजा मंत्र होम हवन है न छूत अछूत है !  हरिहर ब्रह्मा शिव शक्ती के नाम भी उसके लिए बेकार है !  न रिस्ते नाते का वहां कोई अवचित है !  ऐसी निराकार निर्गुण अविनाशी स्थिति ही निर्वाण है , मोक्ष है यही विचार कबीर साहेब बताते है कि भाईयो तुम सब माया मोह इच्छा तृष्णा रिश्ते नाते समय काल के बंधन में फंसे हुए लोग हो ! तुम्हे उस चेतन तत्व राम की अवस्था की जरा भी कल्पना नहीं क्यू की तुम अधर्म को धर्म मान बैठे मर्त्य मानव को भगवान मान बैठे उसके पुतले को भगवान मान कर और पाषाण , पुतले , प्राण प्रतिष्ठा , पाणी अर्पण तर्पण होम हवन बलि मंत्र तंत्र  वैदिक पूजा पाठ इन फालतू बातों में फस कर सत्य चेतन स्वरूप को भूल बैठे और धर्म करने के बजाय अधर्म ही कर रहे हो !

भाइयों वो निराकार निर्गुण अविनाशी तत्व चेतन राम तुम्हारे साथ तुम्हारे भीतर ही है उसके स्वरूप को जाने उसकी निर्वाण अवस्था को पहचानो , जो ये जानता है उसे ही मै मेरा मानता हु वहीं सच्चा सदधर्म बताने वाला गुरु मानता हूं !

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Friday, 25 October 2024

Pavitra Bijak : Pragya Bodh : Shabd : 42

#पवित्र_बीजक : #प्रज्ञा_बोध : #शब्द : ४२ : पण्डित शोधि कहो समझाई ! 

#शब्द :  ४२

पण्डित शोधि कहो समझाई, जाते आवागमन नशाई : १
अर्थ धर्म औ काम मोक्ष कहु, कौन दिशा बसे भाई : २
उत्तर कि दक्षिन पूरब कि पश्चिम, स्वर्ग पाताल कि माहीं : ३
बिना गोपाल ठौर नहिं कतहूँ, नर्क जात धौं काहीं : ४
अनजाने को स्वर्ग नर्क है,  हरि जाने को नाहीं : ५
जेहि डर से भव लोग डरतु हैं, सो डर हमारे नाहीं : ६
पाप पुण्य की शंका नाहीं, स्वर्ग नर्क नहिं जाहीं : ७
कहहिं कबीर सुनो हो संतों, जहाँ का पद तहाँ समाई : ८ 

#शब्द_अर्थ : 

शोधि = खोज और परख कर लो ! माहीं = मध्य ! गोपाल = संसार का निर्माता , चेतन राम तत्व ! धौं = भला ! भव लोग = संसार के लोग ! पद = स्थान , स्वरूप ! 

#प्रज्ञा_बोध : 

धर्मात्मा कबीर विदेशी यूरेशियन वैदिक ब्राह्मणधर्म के वेद मनुस्मृति आदि ब्राह्मणधर्म ग्रंथ की मान्यता चार आश्रम अर्थ धर्म काम और मोक्ष की कोरी कल्पना को कटाक्ष करते हुवे पूछते है हे ब्राह्मणों मुझे बताओ ये चार आश्रम किस दिशा में रहते है पूर्व पश्चिम उत्तर दक्षिण या ऊपर या नीचे या मध्य में उसी प्रकार विदेशी यूरेशियन वैदिक ब्राह्मणधर्म की बे मतलब की कल्पना स्वर्ग नरक को नकारते हुवे उन्हें इनका स्थान और पता पूछते है ! साफ है कबीर साहेब विदेशी यूरेशियन वैदिक ब्राह्मणधर्म के किसी भी धर्म ग्रंथ , मान्यता का नहीं मानते वे इनको हिंदू धर्म ग्रंथ और हिन्दू धर्म का चिंतन नहीं मानते यही नहीं कबीर साहेब ब्रह्मा को भी भगवान नहीं मानते ना वैदिक ब्राह्मणधर्म के लंपट लोगोंको ईश्वर और ईश्वर के अवतार  !

कबीर साहेब बाहरी ईश्वर उसकी मूर्ति , उसके अवतार प्राण प्रतिष्ठा आदि को भ्रामक और कोरी कल्पना कह कर खारिज करते है और केवल एक चेतन राम जो संपूर्ण विश्व में घट घट में मानव में  स्वयं जीव रूप में  है उस चेतन राम तत्व को ही मानते है जो निराकार निर्गुण अविनाशी तत्व है ! और जीव अर्थात पृथ्वी के सांसारिक प्राणी केवल अपने कार्य के कारण कुशल या अकुशल  अच्छे या बुरे मोह माया इच्छा ग्रस्त अधार्मिक कार्य के कारण यही जीवन में खुद सुख या दुख भोगता है यही शांति या अशांति की मानसिक स्थिति में जीता है और ना बाहर काई स्वर्ग है ना नर्क  यही बात कबीर साहब यहां समझाते है और कहते है भाई विदेशी यूरेशियन वैदिक ब्राह्मणधर्म छोड़ो वो आपको सही धर्म सही सुखदाई धर्म नहीं बता रहे हैं क्यू की वो उसे जानते ही नहीं ! 

हमारा मूलभारतीय हिन्दूधर्म ढोंगी ब्राह्मण धर्म की स्वर्ग नर्क कल्पना को नहीं मानता जिस का वो डर दिखा कर सामान्य लोगोंको डराते है और मरणोत्तर स्वर्ग नर्क के डर के ऊपर अपनी झोली भरता है होम हवन पाठ पूजा कराकर मोटी रकम दक्षिणा के नाम से ऐंठता है ! 

कबीर साहेब जन्म मृत्यु का रूप समझाते हुवे कहते है भाई आप अमर तत्व चेतन राम हो केवल जुड़ना टूटना है से विविध रूप घट में आते जाते रहते हो !  वही से जन्म है और वही मृत्यु का स्थान ! जहां के वहां समाना यही है पर बीच जीवन में सुख और दुख का कारण मोह माया के कारण अधर्म ही है ! अधर्म त्यागो वहीं निर्वाण है ! 

कबीर साहेब लोगों को निडर होने की सिख देते है साथ साथ ये भी बताते है कि जैसा करोगे वैसा फल इसी जन्म में इसी धरती पर मिलेगा इस लिऐ माया मोह की अधार्मिकता त्याग कर मूलभारतीय हिन्दूधर्म का शील सदाचार भाईचारा समता शांति अहिंसा आदि मानवीय मूल्यों पर आधारित सत्य सनातन पुरातन समतावादी मानवतावादी समाजवादी वैज्ञानिक दृष्टि का अपना मूलभारतीय हिन्दूधर्म का पालन करो और सुख पावों , दुखो से मुक्ति पावों यही निर्वाण है !

#धर्मविक्रमादित्य_कबीरसत्व_परमहंस 
₹दौलतराम 
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#कल्याण, #अखंडहिंदुस्थान, #शिवसृष्टि

Thursday, 24 October 2024

Pavitra Bijak : Pragya Bodh ; Shabd : 41 : Pandit Dekhau Man Me Jani !

#पवित्र_बीजक : #प्रज्ञा_बोध : #शब्द : ४१ : पण्डित देखहु मन में जानी ! 

#शब्द : ४१ 

पण्डित देखहु मन में जानी : १
कहु ध्यौं छूति कहाँ से उपजी, तब ही छूति तुम मानी : २
नांदे बिंदे रुधिर के संगे, घटही में घट सपचै : ३
अष्टकँवल होय पुहुमी आया, छुति कहाँ ते उपजै : ४
लख चौरासी नाना बहु बासन, सो सब सरि भौं माटी : ५
एकै पाट सकल बैठाये, छूति लेत द्यों काकी : ६ 
छूतिहिं जेंवन छूतिहिं अंचवन, छूतिहिं जगत उपाया : ७
कहहिं कबीर ते छूति विवर्जित, जाके संग न माया : ८

#शब्द_अर्थ : 

धौं = भला ! छूति = छुआछूत , अस्पृश्यता !  नादे = प्राणवायु ! बिन्दे = वीर्य ! रुधिर = रक्त !  घटही में  = मां के गर्भ में ! घट = शरीर !  सपचै = एकता !  अष्टकँवल = कमल जैसा बेदाग शुद्ध !  पुहुमी = पृथ्वी , धरती ! बासन = बर्तन ,  शरीर ! पाट = जगह !  जेंवन = भोजन ! अंचवन = पानी! उपाया = उत्पन्न ! माया = विषय  मोह आसक्त ! 

#प्रज्ञा_बोध : 

धर्मात्मा कबीर कहते हैं भाईयो विदेशी यूरेशियन वैदिक ब्राह्मणधर्म के लोग उनके देश यूरेशिया से हिंदुस्तान में उनका विदेशी यूरेशियन वैदिक ब्राह्मणधर्म ले आये , वर्णवाद , जातिवाद , उचनिच, भेदाभेद,अस्पृश्यता विषमता , छुआछूत  आदि अमानवीय विचार ले आये ! ना इन्हें धर्म कहा जा सकता है न संस्कृति ! कबीर साहेब इस को अधर्म और विकृति पागलपन मानते है और विदेशी यूरेशियन वैदिक ब्राह्मणधर्म के पाण्डे पुजारी , उनके धर्माचार्य , शंकराचार्य मठाधीश आदि से पूछते है हे पंडितों ब्राह्मणों छुआछूत का जन्म उदय कैसा हुआ बतावो ? 

कबीर साहेब कहते हैं जब सभी मानव का जन्म एक जैसे ही मां के पेट से होता है , एक जैसे बाप के वीर्य से होता है , एक जैसे मां के गर्भ में पलते है और सब में एक जैसा शरीर मांस हाड़ मज्जा रक्त है और एक जैसा स्वास लेते है एक ही प्राण वायु सब के सांस में जीवन बनकर बहता ही भोजन और पानी भी सभी एक जैसे ही करते है पीते है और तो और मृत्यु पर सब इसी धरती की मिट्टी में मिल जाते है और उसी मिट्टी से सभी जीव जन्तु प्राणी पक्षी वृक्ष वेली लाखों  तरह की योनियां से और जीवन मृत्यु के फेरे से गुजरने के बाद बड़े सौभाग्य से मानव जन्म लेता है और मां के पेट से   कमल जैसा खिलता है तब बतावो ब्राह्मणों वो अशुद्ध , अस्पृश्य कैसे हो गया ?

कबीर साहेब विदेशी यूरेशियन वैदिक ब्राह्मणधर्म और मूलभारतीय हिन्दूधर्म को अलग अलग मानते है ! मूलभारतीय हिन्दूधर्म में ना वर्ण है ना जाति ना वर्ण जाति वाद , ना उचनिच ना विषमता ना कोई ब्राह्मण ना कोई शुद्र अस्पृश्य सब समान एक जैसे मानव ! 

फिर ये छुआछूत अस्पृश्यता विषमता विदेशी वैदिक यूरेशियन ब्राह्मणधर्म के पांडे पुजारी क्यू फैला रहे है उसका कारण भी बताते है , कबीर साहेब कहते है इन ब्राह्मणों का उद्देश अपने को श्रेष्ठ बताना है सब का मालिक बनना है सब सत्ता धन संपत्ति दौलत बटोरना है ये लोग मोह माया इच्छा तृष्णा ग्रस्त है , अधमी विकृत है यही समाज और राष्ट्र से दूर रखने के लायक है क्यू की ये असभ्य , असंस्कृत लालची प्रवृत्ति के लोग मानवता के शत्रु है , पृथ्वी के भार है ! 

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Wednesday, 23 October 2024

Pavitra Bijak : Pragya Bodh : Shabd : 40 : Pandit Baad Bade So Zutha !

#पवित्र_बीजक : #प्रज्ञा_बोध : #शब्द : ४० : पण्डित बाद बदे सो झूठा !

#शब्द : ४०

पण्डित बाद बदे सो झूठा : १
राम के कहै जगत गति पावै, खांड कहै मुख मीठा : २
पावक कहै पांव जो डाहै, जल कहै तृषा बुझाई : ३
भोजन कहै भूख जो भाजै, तो दुनिया तरि जाई : ४
नर के संग सुवा हरि बोलै, हरि परताप न जानै : ५
जो कबहिं उड़ि जाय जंगल में, तो हरि सुरति न आनै : ६
बिनु देखे बिनु अर्स पर्स बिनु, नाम लिये क्या होई : ७
धन के कहै धनिक जो होवै, निर्धन रहे न कोई : ८
साँची प्रीति विषय माया सो, हरि भक्तन की फाँसी : ९
कहहिं कबीर एक राम बजे बिनु, बाँधे यमपुर जासी : १० 

#शब्द_अर्थ : 

बाद = विवाद , झगड़ा , बहस ! बदे = कथन, वेद , स्मृति ! गति = मुक्ति ! खांड = मीठा शक्कर ! डाहै = जला ! भाजै = दूर होना ! सुवा = तोता ! यमपुरी = दुखद स्थिति ! 

#प्रज्ञा_बोध : 

धर्मात्मा कबीर कहते है भाईयो चेतन राम जो तुम्हारे भीतर है उसे विभिन्न नाम की ना जरूरत है ना वो किसी का अवतार है ना अवतारी पुरुष भगवान है जैसे ये वैदिक ब्राह्मणधर्म के लोग बताते है ना वो ब्रह्मा है ना विष्णु ना इंद्र ना सोम या अन्य , ये लोग वेद और मनु स्मृति आदि के कथन का हवाला देते हुवे कहते है वही सच है जो वो कहते है वह ईश्वरीय विधान है इस लिए सच है और बहस करने पर झगड़ा करते है ! 

कबीर साहेब कहते है भाइयों चेतन राम निराकार निर्गुण अविनाशी तत्व चेतन है जिसे किसी नाम की जरूरत नहीं हरि भी ये ऐसा ही नाम है जो प्रत्यारोपों है तो चेतन को किसी मानव नाम से जोड़ कर अनेक नाम दिए गए और उन नामोकी रट तोते के जैसे लोग लगाते रहते है कोई कहता है राम नाम १ लाख बार बोला तो कोई कहता है हरि नाम दस लाख बार बोला , आज कल चिट्ठी पर कागज पर नाम लिखने का भूत भी सवार है कोई नाम से माला फेर रहा है तो कोई रट रहा है तो कोई लिख रहा है पर भाईयो ये सब बेकार है इसका धर्म से कोई लेना देना नहीं क्यू कि धर्म आचरण की चीज है दिखावे की नहीं या नाम रट्टू तोते की नहीं ! 

कबीर साहेब कहते है भाई क्या खांड कहने मात्र से आप की बन रही रोटी , चाय मीठी हो जायेगी ? क्या भोजन इस शब्द की रट लगाने से पेट भर जाएगा, या पानी कहने मात्र से प्यास बुझ जाएगी ? ऐसे कितने है उदाहरण देकर कबीर साहेब नाम रट्टू लोगोंको बताते है भाईयो तोते जैसे नाम रटने से मुक्ति नहीं मिलेगी ना कोई वैदिक मंत्र कहने से मुक्ति मिलेगा ना होम हवन के पूजा से ना सत्य नारायण पूजा से भला होगा ! 

धर्म आचरण से ही मुक्ति , सुख, शांति मिलेगी ओर वहीं मार्ग कबीर साहेब उनकी वाणी पवित्र बीजक में बताते है , यही मूलभारतीय हिन्दूधर्म है ! 

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Tuesday, 22 October 2024

Pavitra Bijak : Pragya Bodh : Shabd : 39 : Eso Hari So Jagat Laratu Hai !

#पवित्र_बीजक : #प्रज्ञा_बोध : #शब्द : ३९ : ऐसो हरि सो जगत लरतु है !

#शब्द : ३९ 

ऐसो हरि सो जगत लरतु है, पाण्डुर कतहु गरुड़ धरतु है : १
मूस बिलाई कैसन हेतु, जंबुक करै केहरि सौं खेतु : २
अचरज एक देखो संसारा, स्वनहा खेदें कुंजर असवारा : ३
कहहिं कबीर सुनो सन्तों भाई, इहै संधि काहु बिरलै पाई : ४

#शब्द_अर्थ : 

हरि = स्वज्ञानी ! पाण्डुर = पानी का सांप ! गरुड़ = पक्षी ! खेतू = खदेडना , भगाना ! स्वनहा = कुत्ता! कुँजर = हाथी ! संधि = भेद , रहस्य ! 

#प्रज्ञा_बोध : 

धर्मात्मा कबीर कहते है भाईयो चेतन राम  को लोग समझ नहीं रहे और गलत क्रियाकर्म, मानव अवतार को भगवान , ईश्वर मानकर खुद ही खुद में बसे राम से लड़ रहे है ! क्या कोई पानी का सांप गरूड़ को जीत सकता, क्या हाथी पर कुत्ता भारी पड़ सकता है , क्या  कोई बंदर , सियार किसी सिंह को हरा सकता है , क्या चूहा बिल्ली को मात दे सकता है ? नहीं ना  ! तो मनगढ़ंत हरि मानव के भीतर के चेतन राम को कैसे जीत सकते है ?  मनगढ़ंत हरि , राम कृष्ण आदी मानव और उनके अवतार पुतले वास्तविक सत्य ,  सच के चेतन राम जो तुम्हारे भीतर है , घट घट में है सारे सृष्टि का निर्माता स्वयं निराकार निर्गुण अविनाशी तत्व चेतन राम है वो इन छोटी मोटी बकवास कल्पना से कैसे जीता जा सकता है या प्रसन्न किया जा सकता है ? 

कबीर साहेब मन के इन भ्रम से बाहर आने की बात करते है कि राम किसी मंदिर मूर्ति , अवतार , प्राण प्रतिष्ठा,  होम हवन नाम स्मरण जोग  हटयोग ,  झूठे मंत्र तप तपस्या , बलि आदि में नहीं है तो वो इन बातोंसे हासिल नहीं हो सकता है ! 

मालिक राम राजा चेतन राम आपके अंदर ही है उसको झूठे काल्पनिक  ईश्वर राम से नहीं हराया जा सकता ना झूठे की पूजा से सच सत्य मिल सकता है ! सच की उपासना आराधना करो और वो उपासना आराधना का मार्ग शील सदाचार का बेदाग जीवन जीना ही है , निर्मल मन अंतकरण ही है सहज स्वरूप समाधी है ! यही मूलभारतीय हिन्दूधर्म है ! 

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Pavitra Bijak : Pragya Bodh : Shabd : 38 : Hari Binu Dharm Bigurchani Gndaa !

#पवित्र_बीजक : #प्रज्ञा_बोध : #शब्द : ३८ : हरि बिनु धर्म बिगुर्चनि गन्दा ! 

#शब्द : ३८

हरि बिनु भर्म बिगुर्चनि गन्दा, तेहि फंद बहु फंदा : १
योगी कहैं योग है नीका, दुतिया और न भाई : २
नुंचित मुंडित मौनि जटाधारी, तिन कहु कहाँ सिधि पाई : ३
ज्ञानी गुणी सुर कवि दाता, ई जो कहैं बड़ हमहीं : ४
जहाँ से उपजे तहाँ समाने, छूटि गये सब तबहीं : ५
बायें दहिने तजू बिकारा, निजू कै हरिपद गहिया : ६
कहैं कबीर गूंगे गुर खाया, पूछे सो क्या कहिया : ७

#शब्द_अर्थ : 

बिगुरचनि = उलझन , असमंजस ! गंदा = बुरा ! अपनपौ = अपनापन, स्वरूप ! नूंचित = नोचना ! मुंडित = मुण्डन ! बाये दहिने = सब तरफ ! 

#प्रज्ञा_बोध : 

धर्मात्मा कबीर कहते हैं भाईयो लोगोंने हरि, राम आदि नाम के बड़े उलझने , भ्रम पाल रखे है ! अंतरात्मा चेतन राम जो स्वरूप है चेतन तत्व है उसे छोड़ कर बाहर राम कृष्ण हरि शिव आदि मानव को परमतत्व परमात्मा मान कर उनकी पत्थर मूर्ति पूजा , नाम जप आदि और अन्य अवांछित कर्मकांड, प्राणी हत्या , होमहवन अर्पण तर्पण इत्यादि बेहूदे मंत्र जाप योग , तप आदि से धर्म को गंदा और दूषित कर दिया है ! 

कुछ लोग योगी बन गये योग को ही मुक्ति का अंतिम मार्ग मानते है तो कुछ जटाधारी साधु बने फिर रहे है तो कुछ लोगों ने सर के बाल नोच नोच कर सर गंजा कर दिया तो किसी ने बाल अस्तुरे से मुंडा कर भिक्षु बन गये है तो कुछ ने आधा सर मूंडाकर आधे इधर के आधे उधर के ब्राह्मण बने है ! ये सब लोग अपने को बड़े धर्म ज्ञानी मानते है और भी कुछ लोग है पंडित है कवि , लेखक तत्वज्ञ है सब बड़ी बड़ी बात करते है और अपने विचार उनके मार्ग उनके ज्ञान को ही अंतिम मानते हैं ! पर ये सभी लोग जन्मे और मरे भी पर वो आत्म बोध , प्रज्ञा बोध को नहीं पा सके क्यू की वो बाहरी दिखावा , छलावा में फस कर उलझकर रह गये ! राम खोजने बाहर भटकते रहे अपने अंतरमन में बसे राम को पहचान न सके ! 

भाइयों चेतना को दिये सारे बाहरी नाम बेकार है , मानव में जन्मे नाम से किसी की पूजा अर्चना प्रार्थना करना भी बेकार है ये नाम धारी भी चेतन तत्व नहीं, जन्मे खपे इंसान है ईश्वर अवतार कुछ नहीं क्यू की चेतन तत्व जिसे हम राम कहते है वह दशरथ नंदन राम नहीं ना दस अवतार का काई देवता ना ३३ करोड़ों वैदिक गप्पि भगवान ! वो केवल एक है निराकार निर्गुण अविनाशी तत्व चेतन राम जो घट घट में है तुम्हारे पास है ! 

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Sunday, 20 October 2024

Pavitra Bijak : Pragya Bodh : Shabd : 37 : Hari Thag Thagat Sakal

#पवित्र_बीजक : #प्रज्ञा_बोध : #शब्द : ३७ : हरि ठग ठगत सकल जग डोलै !

#शब्द : ३७

हरी ठग ठगत सकल जग डोलै, गौन करत मोसे मुखहु न बोलै : १
बालापन के मीत हमारे, हमहिं तजि कहाँ चलेउ सकारे : २
तुमहिं पुरुष मैं नारि तुम्हारी, तुम्हरी चाल पाहनहु ते भारी : ३
माटि को देह पवन को शरीरा, हरि ठग ठगत सौं डरें कबीरा : ४

#शब्द_अर्थ : 

पाहनहु = पत्थर ! माटी = स्थूल ! पवन = सूक्ष्म ! पुरुष = चेतन राम 

#प्रज्ञा_बोध : 

धर्मात्मा कबीर कहते भाई इस संसार में हरि के नाम से ठगोंकी फौज तैयार हो गई है , बड़े बड़े गुरुघंटाल पैदा हो गये है इस हरि नाम ठगी से सामान्य लोग बड़े परेशान है  वैदिक पाण्डे पुजारी ब्राह्मण का धंधा जोरो पर है वो उस हरि को कभी पति कभी बाप बना देते है पर घट घट में बसे चेतन राम जो तुम्हारे अंदर है उसकी बात नहीं करते ! 

ये शरीर मिट्टी से बना स्थूल रूप है और हवा सूक्ष्म रूप है पर चेतन राम सदैव रहा है चाहे मानव गर्भ में हो बालपन में हो वह निराकार निर्गुण अविनाशी चेतन तत्व का विचार करो वैसे मां बाप भाई बहन पिता पुत्र पति पत्नी आदि निर्थक शब्द के साथ जोड़ कर और उसे बाहरी मानकर पूजा उपासना करने से कुछ हासिल नहीं होगा , खुद को सुधारो , खुद निर्लेप निर्दोष बेदाग बनो तो दुख ना हो !  पर संसार में हरि राम कृष्ण शिव आदि लाखों नाम से जो ठगी चल रही है उस झांसे में ना आवो !

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Saturday, 19 October 2024

Pavitra Bijak : Pragya Bodh : Shabd : 36 : Hari Thag Thagat Thagouri Lai !

#पवित्र_बीजक : #प्रज्ञा_बोध : #शब्द ; ३६ : हरि ठग ठगत ठगौरी लाई !

#शब्द : ३६

हरि ठग ठगत ठगौरी लाई, हरि के वियोग कैसे जियहु रे भाई : १
को काको पुरुष कौन काकी नारी, अकथ कथा यम दृष्टि पसारी : २
को काको पुत्र कौन काको बाप, को रे मरैं का सहै संताप : ३
ठगि ठगि मूल सबन का लीन्हा, राम  ठगौरी काहु न चीन्हा : ४
कहहिं कबीर ठग सो मन माना, गई ठगौरी जब ठग पहिचाना : ५

#शब्द_अर्थ : 

हरि = चेतन राम  ! ठग = लुटेरा ! वियोग = अलग होना , बिछुड़ना ! यम = मृत्यु ! 

#प्रज्ञा_बोध : 

धर्मात्मा कबीर कहते हैं भाईयो चेतन राम जिसे कुछ लोग भगवान परमात्मा भी कहते है उसने यह सृष्टि बनाई वह संसार के कण कण में है  वही है , वही है और कुछ नही ! वह निराकार निर्गुण अविनाशी प्रत्यक्ष सर्वव्यापी सार्वभौम है ! वह सत्य है शिव है यानी कल्याणकारी है और सुंदर अर्थात इस संसार में राम ही राम है तो कोई असुंदर हो नहीं सकता ! इस लिये उसे पहचानो वो तुम खुद भी हो !  

उसका न कोई जन्म है न मृत्यु केवल जूडना टूटना और फिर नई निर्मिति यही निरंतर प्रकृति चल रही है टूटना वियोग है जिसे लोग मृत्यु भी कहते है साथ साथ वही जुड़ना भी है उसे लोग जन्म कहते है ! 

राम ही राम सर्वत्र है तो क्या बेटा क्या बाप क्या पति क्या पत्नी किसकी मृत्यु किस का वियोग ? किस बात का संताप किस बात का दुख ?  सब हमारे मन का भ्रम है जिसे हमने माया मोह इच्छा रिश्ते नाते के कारण बनाए है , इस से मुक्त होकर जरा अपने राम स्वरुप को पहचानो तो सारे मोह माया के बंधन छूट जायेंगे ! पर ये करने के बजाय हमने न केवल रिश्ते नाते के बंधन में अपने को बंद कर दिया है खुद चेतन राम को अपने से अलग मान कर उसके पुतले मन मोहि विचित्र चित्र बनाए रखे है , उसको अवतार बना दिया , फिर मूर्ति में प्राण प्रतिष्ठा कर दिया और ये सारी ठगी कर उसी ठगी से अपने मुक्ति की गुहार प्रार्थना , पूजा अर्चना कर रहे हो यह तो बहुत बड़ी , बहुत भारी ठगौरी उसी राम के नाम से हो रही और तुम राम खुद ही ठग ठगौरी बन गए !  

कबीर साहेब कहते है ठग तुम्ह ही हो , ठगी भी तुम्हारे साथ तुम्ही ने कि है जरा इस मन कि उलझन से बाहर आवो तो चेतन राम के दर्शन हो और तुम्हे मुक्ति मिले ! 

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Friday, 18 October 2024

Pavitra Bijak : Pragya Bodh : Shabd : 35 : Hari Mor Piu Mai Ram Ki Bahuriya !

#पवित्र_बीजक : #प्रज्ञा_बोध : #शब्द : ३५ : हरि मोर पिउ मैं राम की बहुरिया !

#शब्द : ३५ 

हरी मोर पिउ मैं राम की बहुरिया, राम बड़ों मैं तन की लहुरिया : १
हरि मोर रहैंटा मैं रतन पिउरिया, हरि का नाम लै कतति बहुरिया : २
छौ मास तागा बरस दिन कुकुरी, लोग कहैं भल कातल बपुरि : ३
कहहिं कबीर सूत भल काता, चरखा  न होय मुक्ति का दाता : ४

#शब्द_अर्थ : 

बहुरिया = दुलहिन , पत्नी ! राम बड़ों = चेतन राम , समस्त संसार व्यापी ! तन की लहुरिया = एक छोटा अंश ! रहटा = चरखा !  रतन पिउरिया = शुद्ध  विचार, पाणी देने वाली ! कुकुरि = आंटी , सुत का लच्छा ! बपुरी = बेचारी ! सूत = नाम !

#प्रज्ञा_बोध : 

धर्मात्मा कबीर कहते हैं हरि अर्थात चेतन राम , हर अर्थात कल्याणकारी शिव सर्वत्र है और हम मानव उस समस्त संसार के एक छोटे से अंश है यह बात सच है उस हरि भक्ति के पिछे ज्यादा तर लोग लगे हुवे है और नाम के भक्ति में अपना जीवन दिन रात लगा देते है , राम नाम की रट और अन्य नाम चरखे की तरह दिन रात चलने या रट ने से नाम का धागा , सुत , पुगलिया , पिंडली ओर कपड़ा भी बुन लोगे पर ये  नाम की केवल रट आप को जन्म फेरे से मुक्ति नहीं दे सकते , ना राम नाम की रट या अन्य देवी देवता के नाम की रट से निर्वाण प्राप्त होगा , जीवन को शुद्ध आचार विचार  दिये बैगर सब व्यर्थ है , राम नाम का चरखा कितना भी चलावो बिना शुद्ध निर्मल जीवन मुक्ति मिलती नहीं ! 

नाम स्मरण के आगे बढ़ना होगा केवल खुद को सूफी संत , वारकरी जैसे नाम का कीर्तन गजर करने से ईश्वर प्राप्ति नहीं होती ना कोई भगवान खुश होता है , वो खुश तब होता है जब तुम जानते हो तुम भी उस सर्व व्यापी राम के एक अंश हो और अपने भीतर के राम को पहचान कर निर्मल सरल जीवन से जीते हो ! शरीर है पर शुद्ध कार्य नहीं तो क्या फायदा ? शरीर चरखे जैसा है , कपड़ा बेदाग होना चाहिए ! केवल चरखा मिला और और शुद्ध बेदाग कपड़ा ना बुना तो उस कपड़े की जीवन की क्या कीमत ? 

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₹जगतगुरू_नरसिंह_मूलभारती 
#मूलभारतीय_हिन्दूधर्म_विश्वपीठ 
कल्याण, #अखंडहिंदुस्थान, #शिवसृष्टि

Elections in Maharashtra

#महाराष्ट्र_में_विधान_सभा_चुनाव ! #मुलभारतिय_हिन्दूधर्म_की_जीत_हो ! 

#दौलतराम 

महाराष्ट्र मे ऑक्तोबर - नोवेंबर 2024 मे विधान सभा के चुनाव होने जा रहे है मै मुलभारतिय हिन्दूधर्मी भाईयोंसे अनुरोध करता हूँ की मुलभारतिय हिन्दूधर्म के कबीरवाणी पवित्र बीजक को ही हिन्दूधर्म का एकमात्र धर्मग्रंथ मानने वाले प्रात्यशी कोही आपना अमुल्य व्होट देकर ज़ितवाये ! 

नेटीविज्म और नेटीव हिन्दुत्व को ज़ितवाये ! 

#धर्मविक्रमादित्य_कबीरसत्व_परमहंस 
#दौलतराम 
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#मुलभारतिय_हिन्दूधर्म_विश्वपीठ  
कल्यान , #अखण्डहिन्दुस्तान , #शिवशृष्टी

Thursday, 17 October 2024

Pavitra Bijak : Pragya Bodh : Shabd : 34 :Harijan Hans Disha Liye Dole !

#पवित्र_बीजक : #प्रज्ञा_बोध : #शब्द : ३४ :  हरिजन हंस दशा लिये डोले ! 

#शब्द : ३४ 

हरिजन हंस दशा लिये डोले, निर्मल नाम चुनी चुनि बोले : १
मुक्ताहल लिये चोंच लोभावै, मौन रहे कि हरि यश गावै : २
मान सरोवर तट के बासी, राम चरण चित अन्त उदासी : ३
कागा कुबुधि निकट नहिं आवै, प्रतिदिन हंसा दर्शन पावै : ४
नीर क्षीर का करे निबेरा, कहहिं कबीर सोई जन मेरा : ५

#शब्द_अर्थ : 

हरिजन = हरजन यानी कल्याणकारी शिव के उपासक , मूलभारतीय राजा राम और कृष्ण , भगवान बुद्ध आदि को पूज्यनीय मानने वाले मूलभारतीय हिन्दू धर्मी , तृष्णा , विकार का हरण करने में लगे लोग !  हर ये आदिवासी मूलभारतीय समाज में भगवान शिव अर्थात शिव शंकर महादेव को कहा जाता है , हर हर महादेव यानी जय जय तृष्णा मोह माया रहित शिव , चेतन राम ! हंस = शुद्ध निर्मल जीव , चेतन राम की अवस्था , हरि की अवस्था ! नीर क्षीर = विवेक ! मुक्ताहल = मोती ! चोंच = मुख ! मानसरोवर = हिमालय का निर्मल सरोवर , मानव का निर्मल मन ! अन्त : अंतकरण ! प्रतिदिन = निरंतर ! निबेरा = निर्णय , न्याय ! 

#प्रज्ञा_बोध : 

धर्मात्मा कबीर मूलभारतीय हिन्दूधर्मी समाज के लोगोंको हरिजन कहते है यानी निर्मल मन के कल्याणकारी लोग जो मूलभारतीय महापुरुष शिव राम कृष्ण बुद्ध आदि की उपासना करते हैं उनके मार्ग पर चलते है और मुक्ति , मोक्ष निर्वाण गामी है ! हरिजन का मतलब है मोह माया इच्छा अधर्म को हरने वाले लोग ! कबीर साहेब के अनुयाई महात्मा गांधी भी इसी अर्थ से गैर ब्राह्मण को हरिजन संबोधित करते हुए कहते है ये लोग विष रहित है वैष्णव है तिरस्कार रहित है सब को प्रेम करने वाले भाईचारा मानवता शील सदाचार अहिंसा को मानने वाले मूलभारतीय हिन्दूधर्मी लोग है ! 

हरिजनों की अवस्था को कबीर  हिमालय के मानसरोवर में विचरण करने वाले बेदाग हंस से करते है जिसकी मान्यता है कि वे विवेकी होते है अच्छे बुरे में भेद कर सकते है उनकी बुद्धि आदत कौवे जैसी नहीं होती है जो भक्ष अभक्ष सब खा लेता है कर्कश बोलता है , अप्रिय हरकते करता है ! 

कबीर साहेब मूलभारतीय हिन्दूधर्मी समाज को हंस कहते है हरिजन रामजन शिवजन हरजन कहते है और विदेशी यूरेशियन वैदिक ब्राह्मणधर्म के लोगोंको पाण्डे पुजारी को कर्कश आवाज में वैदिक मंत्रोच्चार करने वाले होम हवन में गाय बैल घोड़े आदि प्राणी की बलि देकर सोमरस मांस मदिरा गोस्त नाच गाना का धींगाना करने वाले लंपट लोगोंको कौवे गिद्ध बताते है ! ये भोगी लोग है त्यागी नहीं ब्रह्मा इंद्र रुद्र पंथी है जो लंपट जीवन के लिये कुख्यात रहे है !

कबीर साहेब अच्छे जीने के मार्ग पर चलो कहते है वैदिक ब्राह्मणधर्म को अधर्म और विकृति मार्ग मानते है और कौवे का जीवन मार्ग  छोड़ो और हंस बनो कहते है ! 

#धर्मविक्रमादित्य_कबीरसत्व_परमहंस 
#दौलतराम 
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#मूलभारतीय_हिन्दूधर्म_विश्वपीठ 
कल्याण, #अखंडहिंदुस्थान, #शिवसृष्टि

Wednesday, 16 October 2024

Mulbhartiya Hindhudharm Satvik Bhojan !

#मुलभारतिय_हिन्दूधर्म_सात्विक_भोजन ! 

मुलभारतिय हिन्दूधर्म धर्मात्मा कबीर की वाणी पवित्र बीजक को मुलभारतिय हिन्दूधर्म का एकमात्र धर्मग्रंथ मानता है ! 

कबीर साहेब ने मानव भोजन मे हत्या वर्ज माना है और मानव को सूपाच्च आहार लेने की सिख दी है ! कबीर साहेब कहते है जो जो भावे त्यो त्यो खावे ! कोई भोजन शरीर हानी कारक ना हो , पचाने मे कठीण ना हो और शारीरिक व्याधी बीमारी निर्मांण करने वाले पदार्थ ना हो ! 

भारतिय भोजन जो दाल चवाल साग सब्जी दही मठ्ठा हालवा पुरी खिर गुड चना और देशी अनाज और मौसमी फल को कबीर साहेब उत्तम मानते है , शाम को खिचडी मठ्ठा जैसे हलके भोजन किये जा सकते है और मजदुर वर्ग किसान सैनिक अपनी जादा ऊर्जा जरूरत के लिये अधिक आहार , बारम्बार आहार और तैलिय पदार्थ घी दुध और बिना स्वयम हत्या किये मांस मछली अंडे आदी का भी प्रयोग कर सकते है पर इसे ज़िभ्या के चोचले ना होने दे ! 

वैसे कबीर साहेब घट घट मे चेतन राम के अस्तित्व को मानते है और जीव जन्तु , वृक्ष वेली पत्ते तक मे जान और प्राण मानते है यहां तक की कण कण मे चेतन स्वयम जुडता तुटता रहाता है यहां सब सजीव सब है मृत कोई नही ! राम का मतलब ही है ज्यो मरा नही ! राम नाम सत्य है और नित्य है बस एक दुसरे मे विलिन और वियोग यह प्रक्रिया निरंतर चालू है इस लिये जो दुख से ना कहराये , कटने मरने से बचाने के लिये तडपे भागे उसका दुख दर्द जाने और एसे हत्या कर्म से बचे इनको आपने आहार करने से बचे यह सिख कबीर साहेब देते है ! मुलभारतिय हिन्दूधर्म का यही सात्विक आहार भोजन है ! 

हमे ये नही भूलाना चाहिये हम हिस्त्र प्राणी जैसे सिधे किसी ज़िवंत प्राणी की चमडी अपने दांत से उधेड कर कच्चा गोस्त नही खा सकते ! हम अपना हाजमा गोस्त खा कर ठिक नही कर सकते पर शेर भी अपना हाजमा ठिक करने घास और पत्ते खा लेते है ! 

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Pavitra Bijak : Pragya Bodh : Shabd : 33 : Hansa Pyaare Sarwar Taji

#पवित्र_बीजक : #प्रज्ञा_बोध : #शब्द : ३३ : हंसा प्यारे सरवर तजि कहाँ जाय ! 

#शब्द : ३३ 

हंसा प्यारे सरवर तजि कहाँ जाय : १
जेहि सरवर बिच मोतिया चुगत होते, बहु विधि केलि कराय : २
सूखे ताल पुरइनि जल छोड़े, कमल गये कुम्हिलाय : ३
कहहिं कबीर जो अबकी बिछुरे, बहुरि मिलो कब आय : ४

#शब्द_अर्थ : 

हंस = जीव ! सरवर = शरीर ! कमल = मुख ! मोतिया = मोती ! विषय = भोग ! केलि = क्रीड़ा , जीवन जीना ! 

#प्रज्ञा_बोध : 

धर्मात्मा कबीर कहते है भाइयों जीव चेतन राम के साथ इस धरती पर आया , सोचा बहुत सुंदर यह संसार होगा , दो दिन का मेहमान बड़ा सज धज कर आया ! और धरती के जीवन में ऐसा उलझ गया , मोह माया में ऐसा फंस गया जो करना था उन अच्छे कर्म को छोड़ कर , मोती ग्रहण करने के बजाय विषय वासना , लालच, जीभ के चोंचले को पूरा करने खाद्य अखाद्य खाने लगा ! 

कबीर साहेब कहते हैं जो सरवर रूपी शरीर है वो तो एक दिन सुखना ही था , मुख कमल भी मुर्झा जाना ही था उस सत्य को अनदेखा कर ये शरीर अब चेतन राम के लिए बोझ हो गया है तो उसे तो यह शरीर छोड़ना ही होगा ! 

कबीर साहेब कहते हैं भाईयो बड़ा अद्भुत संयोग है जीव को शिव मिलता है , चेतन राम मिलता है उस शरीर का दुष्कर्म में गलत उपयोग ना करो , न जाने कब फिर मानव जन्म प्राप्त हो ! मानव जन्म दुर्लभ हैं , जन्म जन्म के फेरे में मानव जीवन दुर्लभ है यही मौका है चेतन राम को पाने का वो खो दिए तो भव सागर में , जीवन मृत्यु के चक्र में सुख दुख के माया जाल में भटकते ही रहोगे !

कबीर साहेब ने इसी माया चक्र से बाहर आने का रास्ता उनकी वाणी पवित्र बीजक में मूलभारतीय हिन्दूधर्म के रूप में बताया है ! भाईयो जीवन व्यर्थ ना जाने दो , सदधर्म का पालन करो अधर्म छोड़ो , मानव जन्म बार बार इतनी आसानी से नहीं मिलता उसका सद उपयोग करो ! 

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Tuesday, 15 October 2024

Pavitra Bijak : Pragya Bodh : Shabd : 32 : Hansa Ho Chethu Chit Sakaara !

#पवित्र_बीजक : #प्रज्ञा_बोध : #शब्द : ३२ : हंसा हो चित चेतु सकेरा ! 

#शब्द : 

हंसा हो चित चेतु सकेरा, इन्ह परपंच कैल बहुतेरा : १
पाखण्ड रूप रचो इन्ह तिरगुण, तेहि पाखंड भुलल संसारा : २
घर के खसम बधिक वै राजा, परजा क्या धौं करै विचारा : ३
भक्ति न जाने भक्त कहावै, तजि अमृत विष कैलिन सारा : ४
आगे बड़े ऐसेहि बूडे, तिनहुँ न मानल कहा हमारा : ५
कहा हमार गाँठि दृढ़ बाँधो, निशि बासर रहियो हुशियारा : ६ 
ये कलि गुरु बड़े परपंची, डारि ठगौरी सब जग मारा : ७
वेद कितेब दोउ फंद पसारा, तेहि फंदे परू आप बिचारा : ८
कहहिं कबीर ते हंस न बिसरे, जेहिमा मिले छुडावनहारा : ९ 

#शब्द_अर्थ : 

सकेरा = जल्दी ! इन्ह = भ्रामक गुरु ! पाखण्ड = छल , कपट ! खसम = मालिक ! धौं = भला ! बिसरे = भूले !

#प्रज्ञा_बोध : 

धर्मात्मा कबीर कहते हैं भाईयो आप वो चेतन राम हो जो सब कुछ समझ सकते हो , विवेकी हो ! तब भी मुझे यह कहते हुवे दुख होता है आप जैसे हंस , ज्ञानी लोग भी विदेशी यूरेशियन वैदिक ब्राह्मणधर्म के विकृत अधर्म के झूठ पाखंड के जाल में फंस गये है ! 

विदेशी यूरेशियन वैदिक ब्राह्मणधर्म के पाण्डे पुजारी ब्राह्मण ने त्रिगुण, त्रिदेव जैसे झूठे फरेबी आख्यान रच कर ब्रह्मा , विष्णु जैसे लंपट को हमारे आदिवासी मूलभारतीय हिन्दूधर्म के भगवान शिव को मिलाकर त्रिदेव की बकवास कथा रच डाली ! मनुष्य को त्रि गुण होते है ऐसे झूठे मक्कार विचार से खुद को श्रेष्ठ और मूलभारतीय को नीच शुद्र अस्पृश्य तक कह डाला चार वर्ण , गुणकर्म आदि के बाद जाती और उसमें जातिवाद उचनिच आदि बंधन से आप जैसे ज्ञानी को गुलाम बनाकर खुद मालिक बन बैठे ! 

देवी देवता , होम हवन जनेऊ संस्कार , प्राण प्रतिष्ठा , अवतार आदि मनगधन्त बाते बनाई और इस काल को कलंकी अवतार का काल कह कर लोगोंको डराया , भूत प्रेत , शुभ अशुभ , स्वर्ग नरक आदि से पहले विदेशी यूरेशियन वैदिक ब्राह्मणधर्म के लोग डराते रहे वैसे ही तुर्की धर्म के मुल्ला मौलवी डराने लगे , इनका वेद मनुस्मृति और उनका कुरान और फतवे से लोग परेशान है गये और अपने देश का खुद का उत्तम धर्म मूलभारतीय हिन्दूधर्म छोड़ कर इनके पीछे जा कर मानव का श्रेष्ठ विवेकी जीवन बर्बाद करने लगे ! 

कबीर साहेब कहते हैं भाईयो तुम्हारा अपना मूलभारतीय हिन्दूधर्म ही उत्तम है होशियार हो जावो उसका ही पालन करो इसमें ना जाति है ना वर्ण ना उचनिच ना भेदाभेद , न होम हवन , जनेउ ना पंडा पुजारी लुटारु न ब्राह्मण कसाई न लंपट ब्रह्मा विष्णु न उसके अवतार , न प्राण प्रतिष्ठा न बुत परस्ती ! सहज सरल जीवन मार्ग है शील सदाचार भाईचारा समता शांति अहिंसा आदि मानवीय मूल्यों पर आधारित आदिधर्म सनातन पुरातन समतावादी मानवतावादी समाजवादी वैज्ञानिक मूलभारतीय हिन्दूधर्म !

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Brahmino ka Hindu ke Jivan me Pravesh!

#मुलभारतिय_हिन्दू_के_जीवन_में_विदेशी_यूरेशियन_वैदिक_ब्राह्मणधर्मी_का_प्रवेश !

जैसे की हम सब जानते है इस देश में आये सभी विदेशी धर्म के लोग अल्प संख्यांक है जैसे खिस्ती , पारसी , य़हुदी मुस्लिम वैसे ही विदेशी यूरेशियन वैदिक ब्राह्मण धर्मी भी अल्प संख्यांक है ! 

मुलभारतिय हिन्दूधर्म के पंथ जैन ,सिख और बौद्ध भी अल्प संख्यांक है पर वे मुलभारतिय लोग है पर बाहर से आये धर्म जैसे धर्म के लोग आश्रय के लिये आये उनमे और आक्रमणकारी मे भेद है ! पारसी धर्म के लोग आश्रय के लिये आये थे शांती से अपना धर्म पालन करते रहे ऊँहोने न यहा के मुलभारतिय हिन्दू धर्मी लोगोंका आपने पारसी धर्म मे धर्म परीवर्तन किया ना हिन्दू धर्म मे ज़िवन पद्धती मे हस्थक्षेप किया ! 

खिस्ती , मुस्लिम धर्म के लोग पहले संत ,व्यापरी बनकर आये फिर आक्रमण किया फिर सत्ताधिष हुवे ,फिर धर्म परीवर्तन हुवे ! 

विदेशी यूरेशियन वैदिक एक वर्ण सवर्ण ब्राह्मण पहले आक्रामण , विधवंसक बनकर आये ऊँहोने यहां के लोगोंका सिधा धर्मांतर कर ऊँहे ब्राहमण नही बनाया क्यू की वो भले ही शुरू मे असभ्य विधवंसक लोग थे यहां के सभ्यता और विशालता के सामने अल्पसंख्य विदेशी यूरेशियन सवर्ण ब्राहमीण मुलभारतिय हिन्दूधर्मी .लोगो पर अपनी उपजीविका के लिये निर्भर थे ,जल्दी ही ऊँहे यहां के मुलभारतिय हिन्दूधर्मी लोगो को घर घर जा कर भीक मांगना पडा ! 

भीक्षा दिजिये कह ते हुवे वो झोली घर घर जाते थे ! घर के बाहर की ओटली पर बैठ कर जो दिया वो खाते थे !

बाहर ओटली पर बैठे बैठे घर के अन्दर के लोगोंकी बाते सुनते थे ! ऊनके ध्यान मे एक बात आ गयी की हर घर में कुछ ना कुछ परेशानी होती है ! खेती बाडी व्यापार स्वास्थ अती वृष्टी , सुखा और अन्य नैसर्गिक आपत्ती इनको पहले हिन्दू समाज वैग्यानिक दृष्टी से देखता था पर विदेशी ब्राहमिनो ने इसे अपने उदर निर्वाह का औजार बना दिया इन समश्या को आकाश के देवी देवता , तारे नक्षत्र शुभ अशुभ समय और जन्म पत्री गोत्र , गण आदी की एक बडी मशीन ज्योतीश विद्दया और बुरे वक्त को दुर करने के विविध अनुष्ठान आदी मन गढ़न्त अंधश्रद्धा के उपाय विदेशी यूरेशियन वैदिक ब्राह्मण मुलभारतिय हिन्दूधर्मी लोगोंको ऊनके घर में भीक मांगते हुवे ओटली पर बैठे बैठे सुझाते गये और दुरभाग्य से मुलभारतिय हिन्दूधर्मी लोग इनके चक्कर मे फस गये इन्होने ये नही सोचा की ये विदेशी वैदिक ब्राह्मण के लोग इन सारे उपाय कर खुद क्यू नही दुख मुक्त हो जाते क्यू घर घर जाकर भीक मांगते है क्यू दान दक्षिणा मांगते है ? 

पर य़ही ओटली थी ज़िस पर विदेशी यूरेशियन वैदिक ब्राह्मण को बैठने दिया और वो हमारे लोगोंको अंध विस्वास मे फसा कर हमारे मुलभारतिय हिन्दू के जीवन मे घूस गया और एक जोक की तरह हमारा खुन , खुन पसीने की कमाई बैलाना ज्योतिष के चक्कर मे और आकाश के देवी देवाता ऊनके झूठे अवतार , बुत परस्ती को कबीर बैलाना कहते है , मूर्खता कहते है ! 

संसार मे कोई आदमी ,ज़िव जन्तु नही है ज़िसे जीवन की समश्या को झूजना नही पडता ! कबीर साहेब कहते है विवेक से जुझो ! बैलाना ज्योतिष विद्दया से नही , विदेशी वैदिक धर्म के झूठे वैदिक मन्त्र ,झूठे देवी देवता अवतार आदी पर विस्वास मत करो !

जीवन की समश्या हर किसी को है , ब्राह्मण भी इनसे अछुते नही ! हमे मुलभारतिय हिन्दूधर्म के मानव विवेकी शक्ती पर भरोसा करना चाहिये ! 

विदेशी ब्राहमिनोने घर के ओटली पर बैठ कर मुलभारतिय हिन्दू के जीवन इस प्रकार चंचु प्रवेश किया और फिर वर्ण जाती अस्पृष्यता ऊचनिच भेदाभेद का मकाड़ी जाल बुन डाला ! इस मकड़ी जाल को धर्मात्मा कबीर ने अपनी वाणी पवित्र बीजक मे इसे तोड कर बाहर निकलने का उपाय बताया वही मार्ग मुलभारतिय हिन्दूधर्म विश्वपीठ ,कल्यान बता रहा है ! 

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Monday, 14 October 2024

Pavitra Bijak : Pragya Bodh : Shabd : 31 : Hansa Snshay

#पवित्र_बीजक : #प्रज्ञा_बोध : #शब्द : ३१ : हंसा संशय छूरी कुहिया !

#शब्द  : ३१ 

हंसा संशय छूरी कुहिया, गइया पीवै बछरुवै दुहिया : १
घर घर सावज खेले अहेरा, पारथ ओटा लेई : २
पानी माहि तलफि गई भौंभरी, धुरि  हिलोरा देई : ३
धरती बरसे बादर भीजे, भीट भये पौराऊ : ४
हंस उड़ाने ताल सुखाने, चहले बिंदा  पाऊ : ५
जौलौं कर डोले पगु चालै, तोंलौं आश न कीजै : ६
कहहिं कबीर जेहि चलत न दिसे, तासु बचन का लीजै : ७

#शब्द_अर्थ : 

हंसा = जीव,  हंस ! कुहिया = कत्ल  ! गइया = गाय , माया !  बछरुवै = बछड़ा, जीव !  घर घर = घट घट ! सावज = पशु  ! पारथ = पारधी, शिकारी ! ओटा = परदा ! पानी = जल  ! भौंभरी =पानी  का बवंडर !  धूरि = धूल, सोच ! धरती = बुद्धि ! बादर = बादल ! भीट = टीला ! पौराऊ = तैरने वाला !  हंस = जीव ! ताल = तालाब , शरीर !  चहले = कीचड़ ,  माया ! बिंदा = फसाना ! पाऊ = पैर ! 

#प्रज्ञा_बोध : 

कबीर साहेब कहते है भाइयों आप वो चेतन राम हो जो परम शुद्ध हो जैसे हंस बेदाग होता है , हर मानव में चेतन राम है जो परख कर सकता है जिसे हम नीर क्षीर की पहचान कहते है , मोती चुगना कहते है !  इस हंस रूपी मानव को संशय में मत उलझने दो उसके विवेक करने की जन्म जात प्रवृत्ति का ग़ला मत घोटो , बुद्धि का उपयोग करो !  जीव और माया जैसे गाय और बछड़ा है ,  गाय बछड़े का दोहन करे तो उसे आप क्या कहोगे ? ये तो उल्टी रीत हुई ! जिसका शिकार करना चाहिए वहीं अगर शिकारी का शिकार करे तो क्या कहोगे ? ये तो उल्टी रीत हुई !  पानी में  पानी चक्र बनाता है और उसका लहर किनारे आती है पर क्या आपने  किनारे की लहर से बीच तालाब में पानी का बवंडर बनते देखा है ? नहीं ना यहाँ सब उल्टा हो रहा है ! बारिश आकाश से जमीन पर बरसती है , आकाश की तरफ उल्टी दिशा में नहीं होती पर यहां तो उल्टा हो रहा है ! 

कबीर साहेब कहते है भाइयों जीव से माया की उत्पत्ति हुई है जीव यानी चेतन राम परमात्मा उसका बाप है , पिता है जैसे मानव ही माया का पिता है पर दुर्भाग्य देखिए अज्ञान के कारण माया ही अपने निर्माता का शोषण कर रही है , तैराकी राम ही माया की कीचड़ में फंस फस गया है ! 

कबीर साहेब कहते है भाइयों इस सृष्टि को चेतन राम को जीव को समझो उसके लिए पांच इंद्रिय और छटा ज्ञान इंद्रिय विवेक दिया है उसका उपयोग करो  विदेशी यूरेशियन वैदिक ब्राह्मणधर्म और तुर्की धर्म के सुनी सुनाई अति रंजीत बातों में ना आवो , अपना मूलभारतीय हिन्दूधर्म अनादि काल से परख करो,   विवेक करो कि शिक्षा देता रहा है !  मानव को सद्बुद्धि प्रज्ञा बोध की शक्ति दी है उसका उपयोग जब तक शरीर काम कर रहा है हाथ पर चल रहे है , इंद्रिय काम कर रहे है उसका विवेक से ईस्तेमाल करो , फालतू वैदिक ब्राह्मणधर्म का कोरा ज्ञान अधर्म विकृति से बचो  अपने मालिक आप हो , विवेक भी आप को ही करना चाहिए यह प्रज्ञा बोध कबीर साहेब यहां देते हैं ! 

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Sunday, 13 October 2024

Pavitra Bijak : Pragya Bodh : Shabd : 30 : Bhai Re Dui Jagadish Kahaan Te Aaya !

#पवित्र_बीजक : #प्रज्ञा_बोध : #शब्द : ३० : भाई रे दुइ जगदीश कहाँ ते आया ! 

#शब्द : ३० 

भाई रे दुइ जगदीश कहाँ ते आया, कहु कौने बौराया : १
अल्लाह राम करिमा केशव, हरि हजरत नाम धराया : २
गहना एक कनक ते गहना, यामें भाव न दूजा : ३
कहन सुनन को दुइ कर थापे, एक निमाज एक पूजा : ४
वोही महादेव वोही महम्मद, ब्रह्मा आदम कहिये : ५
को हिन्दू को तुरुक कहावै, एक जिमी पर रहिये : ६
वेद कितेब पढ़ें तै कुतबा, वै मौलना वै पाँडे : ७
बेगर बेगर नाम धराये, एक मिट्टी के भाँडें : ८ 
कहहिं कबीर वै दूनों भूले, रामहि किनहु पाया : ९
ये खसी वै गाय कटावैं, बादिहि जन्म ग़माया : १०

#शब्द_अर्थ : 

हजरत = स्वामी , मालिक ! कितेब = कुरान ! कुतबा = पुस्तके ! बेगर बेगर = अलग अलग ! भाँडें = बर्तन ! बादिहि = व्यर्थ विवाद ! 

#प्रज्ञा_बोध : 

धर्मात्मा कबीर कहते है भाइयों विदेशी यूरेशियन वैदिक ब्राह्मणधर्म के लोगोने इस जमी पर जबरन कब्जा कर अपने वैदिक ब्राह्मणधर्म को वो कभी वैदिक कभी ब्राह्मण कभी स्मृति कभी आर्य आदि नाम से पुकारते है और लोगोंको गुमराह करने के लिये कभी भारतके के मूलभारतीय हिन्दूधर्म का नाम भी अपने विदेशी यूरेशियन वैदिक ब्राह्मणधर्म के साथ जोड़ते है कभी सनातन पुरातन शब्द भी अपने आप को लगाते है मकसद केवल एक ही है अपने आप को हिन्दू बताने की कोशिश करते है पर सच्चाई ये है कि ना वो हिन्दू है ना हिंदुस्तानी ! 

विदेशी यूरेशियन वैदिक ब्राह्मणधरमी खुद को झूठ ही हिन्दू कहते है इन झूठे ब्राह्मण को पंडित को और विदेशी तुर्की धर्मी लोगोंको कबीर साहेब बताते हुवे कहते है मूलभारतीय हिन्दूधर्म के परमपिता चेतन तत्व राम को ये लोग मानते नहीं और तुर्की मुहम्मद को मानते है और ब्राह्मण ब्रह्मा को ! उनके धर्म ग्रंथ वेद और कुरान है कहते है वे नहीं कहते दिनों के परमात्मा चेतन राम है ! वे निराकार निर्गुण अविनाशी तत्व चेतन राम को एकमात्र पूज्यनीय नहीं मानते ना वो चेतन राम को घट घट में मानते है वे मानव को एक और एक ही जमीन पर रहने वाले भाई भाई नही मानते और एक दूसरे को मारने के लिये दौड़ते है, ये अपने आप को एक परमात्मा चेतन राम की औलादें नहीं मानते और एक होम हवन में गाय घोड़े की बलि देता है तो दूसरा कुर्बानी देता है , इन पांडे ब्राह्मण पुजारी जो विदेशी यूरेशियन वैदिक ब्राह्मणधर्म के है और दूसरे तुर्की मुस्लिमधर्म के मौलवी है दिनों अपने आपको श्रेष्ठ, पढ़ें लिखे ज्ञानी बताते है और वेद मनुस्मृत कुरान आदि को ईश्वरी किताब , आदेश कह कर यहां के मूलभारतीय हिन्दूधर्म के आदिवासी हिन्दू समाज को अपने अपने धर्म में धर्मांतरित कर आम जनता को हमारे धर्म का है कह कर वास्तविक शील सदाचार भाईचारा समता शांति अहिंसा आदि मानवीय मूल्यों पर आधारित मानवधर्म मूलभारतीय हिन्दूधर्म को मिटाना चाहते है वही बात कबीर साहेब यहां बताते हैं ! 

न विदेशी ब्राह्मण हिन्दू है नाहीं तुर्की मुस्लिम हिन्दू है ! केवल कुछ लोगोंको ब्राह्मणोंने धर्मांतरित कर दूसरे तीसरे दर्जे के विदेशी वैदिक यूरेशियन ब्राह्मणधर्मी बना दिये और उनको सवर्ण कह कर क्षेत्री , वाणी कहने लगे पर वो कभी पंडित पुजारि ब्राह्मण नहीं बन सकते ये लोग पहले के मूलभारतीय हिन्दूधर्मी है वैसे ही कुछ लोग तुर्की धर्म में धर्मांतरित हुवे वे लोग भी मूलभारतीय हिन्दूधर्म के ही लोग है इन्हें चेताते हुवे कबीर साहेब कहते है भाईयो दुइ यानी दो परमात्मा कहासे आये ? विदेशी तुर्की और विदेशी ब्राह्मण के बातों में ना आवो तुम हिंदुस्तानी आदिवासी मूलभारतीय हो मूलभारतीय हिन्दूधर्मी हो और संसार का एक ही निर्माता है वो है परमात्मा चेतन तत्व चेतन राम ! विवाद में ना पड़ो ! बेवकूफी भरी पंडित मौलवी की झूठी बातो में ना फंसो , कोई किताब ईश्वरी नहीं सब झूठ है , मानवधर्म मूलभारतीय हिन्दूधर्म का पालन करो नहीं तो जीवन व्यर्थ जायेगा !

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Saturday, 12 October 2024

Pavitra Bijak : Pragya Bodh : Shabd : 29 : Bhai Re Nayan Rasik Jo Lage !

#पवित्र_बीजक : #प्रज्ञा_बोध : #शब्द : २९ : भाई रे नयन रसिक जो जागे ! 

#शब्द : २९

भाई रे नयन रसिक जो जागे : १
पारब्रह्म अविगति अविनाशी, कैसहु कै मन लागे : २
अमली लोग खुमारी तृष्णा, कतहुँ संतोष न पावै : ३
काम क्रोध दोनों मतवाले, माया भरि भरि आवै : ४
ब्रह्म कुलाल चढ़ाइनि भाठी, लै इंद्री रस चाहै : ५
संगहि पोच हैं ज्ञान पुकारे, चतुरा होय सो पावै : ६ 
संकट सोच पोच यह कलिमा, बहुतक व्याधि शरीरा : ७
जहाँ धीर गम्भीर अति निश्चल, तहाँ उठि मिलहु कबीरा : ८

#शब्द_अर्थ : 

नयन रसिक = रूप के प्रेमी , लंपट ! पारब्रह्म = विदेशी यूरेशियन वैदिक ब्राह्मणधर्म का ब्रह्मा , मूलभारतीय हिन्दूधर्म के चेतन राम ! अविगति = अज्ञात ! कैसेहु कै = किस प्रकार ! अमली = व्यसनी , अफीमची ! खुमारी = नशा की मद भरी मायावी अवस्था ! कुलाल = मदिरा का विक्रेता ! भाटी = शराब की भट्टी ! पोच = बुराई ! कलिमा = आज का बुरा समय ! 

#प्रज्ञा_बोध : 

धर्मात्मा कबीर कहते हैं भाईयो आज कल लोग कहते है धर्म एक नशा है , अफीम है , गांजा है , दारू की नशा है पर ये सच नहीं धर्म और अधर्म में भेद नहीं कर पा रहे लोग इस प्रकार बचकानी बात करते है और गरीबी शोषण के लिए धर्म को जिम्मेदार मानते है पर कितने लोग धर्म और अधर्म में फर्क जानते है करते है ? पूछते है धर्मात्मा कबीर ! 

कबीर साहेब कहते हैं भाईयो विदेशी यूरेशियन वैदिक ब्राह्मणधर्म ये अधर्म है विकृति है उसके विचार आचार ही अधर्म है तो उससे अच्छे कर्म और फल की कैसी आशा की जा सकती है ! 

गरीबी , शोषण के लिये धर्म नहीं ब्राह्मणों की नशेड़ी गंजेडी दारूबाज संस्कृति , लंपट भगवान और उनकी पूजा , अंध विश्वास और बुत परस्ती न जाने क्या क्या गलत मान्यता को लोगों ने धर्म मान कर धर्म को बदनाम किया है ! माया मोह तृष्णा लालच झूठ मक्कारी ये मानव मन के विकार है उसे धर्म कैसे कह सकते है !

भाइयों ब्रह्मा कोई परमात्मा परमतत्व नहीं एक बलात्कारी लंपट व्यक्ति उसे भगवान सृष्टि का निर्माता मानोगे तो धर्म हानि और मानव की बुद्धि हीनता का परिचय होगा ! कोई समय काल अपने आप में बुरा नहीं होता ना कोई कलियुग है लोग ही विवेकहीन अधार्मिक मद माया लोभ में व्यस्त है उसी में रस ढूंढ रहे है , झूठ बोल कर धन संपत्ति बटोरने में लगे है ! शरीर में अनेक व्याधि भी इसी गलत खान पान रहन सहन और व्यसनों का परिणाम है ! भाईयो धर्म को दोष ना दो धर्म अधर्म में फर्क करो और निश्चय करो कि मूलभारतीय हिन्दूधर्मी का पालन करोगे , अधर्म विदेशी यूरेशियन वैदिक ब्राह्मणधर्म को नजदीक फटकने नही दोगे तो वही तुम्हे परमतत्व चेतन राम परमात्मा और मेरे दर्शन होगे और सुख शांति दुख मुक्ति मिलेगी !

#धर्मविक्रमादित्य_कबीरसत्व_परमहंस 
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Pavitra Bijak : Pragya Bodh : Shabd : 28 : Bhai Re Gaiyya Ek Viranchi

#पवित्र_बीजक : #प्रज्ञा_बोध : #शब्दों : २८ : भाई रे गइया एक बिरंचि दियो है !

#शब्द : २८

भारत रे गइया एक बिरंचि दियो है , गइया भार अभार भी भारी : १
नौ नारी को पानि पियतु है, तृषा तेउ न बुझाई : २
कोठा बहतर औ लौ लावे, ब्रज कँवार लगाई : ३
खूंटा गाडि दवरि दृढ़ बाँधेउ, तैयो तीर पराई : ४
चारि वृक्ष छौं शाखा वाले, पत्र अठारहु भाई : ५
एतिक ले ग़म किहिसि गइया, गइया अति रे हरहाई : ६
ई सातों औरों हैं सातों, नौ औ चौदह भाई : ७ 
एतिक ले ग़इया खाय बढ़ायो, गइया तैयो न अघाई : ८
पुरता में राती है गइया, सेत सींगि है भाई : ९
अवरण वरण किछउ नहिं वाके, खद्य अखद्य खाई : १०
ब्रह्मा विष्णु खोजि ले आये, शिव सनकादिक भाई : ११
सिद्ध अनन्त वाके खोज परे हैं, गइया किनहुँ न पाई : १२
कहहिं कबीर सुनो हो संतो, जो यह पद अर्थावै : १३
जो यह पद को गाय विचारै, आगे होय निर्बहैं : १४

#शब्द_अर्थ : 

गइया = गाय , मानव जानवर मनोवृत्ति ! बिरंचि = विचित्र ! 

#प्रज्ञा_बोध : 

धर्मात्मा कबीर यहां मानव प्रवृत्ति को गाय की उपमा देते हुवे कहते है प्रकृति ने मानव निर्मिती के साथ साथ उसमें एक विचित्र प्रवृत्ति भी भर दी जिसका नाम है अतृप्ति जिस प्रकार गाय चरते चरते ही रहती है वैसे ही मानव प्रवृत्ति है उसका कभी समाधान नहीं होता ! 

मानव ने इस गाय रूपी मानव लोभ लालच को काबू में रखने के लिये बड़े प्रयास किए ! उसको योग , हट योग , प्राणायम से जोड़ दिया , ब्रह्मा विष्णु की उपासना से जोड़ दिया जिस लिए वेद शास्त्र साधु सन्यासी जैसे शिव सनक सनंदन आदि बाल संन्यासी तक गढ़ डाले ! 

वेद और वेदांग , स्मृति पुराण के बंधन से मानव जीवन में लोभ लालच में कोई कमी नहीं आई उल्टे उनके नाम से आम जनता का शोषण बढ़ गया ! 

मन की लालची प्रवृत्ति को नहीं विद्या , विधान रोक पाई क्यू की इन सभी बातोंमें ऊपरी मलमपट्टी ही बताई गई जैसे पत्थर को अवतार देव मानकर पूजा करो , होम हवन करो , गाय घोड़े की बलि दो , अनुष्ठान की पूजा करो ब्राह्मण को दान दक्षिणा दो हट योग से देह दंड दो आदि आदि पर मानव मन की अतृप्त प्रवृत्ति को कोई धर्म विधान क्रिया कर्म नहीं रोक सका क्यू की लालची प्रवृत्ति मानव मन में है और लोग खुद के मन में झांकने की बजाय उसका समाधान अपने अंतकरण में खोजने की बजाय बाहरी मलमपट्टी बाहरी उपाय में खोजते रहे है ! 

कबीर साहेब कहते है भाईयो तुम्हारा मन गाय की तरह लालच में जब तक भटकता रहेगा कोई शांति सुख मिलेगा नहीं ! चेतन राम के स्वरूप को समझो वह मोह माया तृष्णा लालच से दूर है तभी तो संतुष्ट है ! संतुष्टि के स्वास को महसूस करों वही सुख है यह जो जानता है वही मेरे बात को ठीक से समझ सकता है ! मैं संतुष्टी का धर्म मूलभारतीय हिन्दूधर्म बताता हूं , वैदिक बाहरी दिखावा , ढोंग , धतूरे होम हवन जनेऊ संस्कार , बुत परस्ती कोई सुख का मार्ग नहीं वो छल है उससे दूर रहो !

#धर्मविक्रमादित्य_कबीरसत्व_परमहंस 
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#जगतगुरू_नरसिंह_मूलभारती 
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कल्याण , #अखण्डहिंदुस्थान , #शिवसृष्टि

Thursday, 10 October 2024

Bodhisatv Viddyavachaspati Bhimrao Gote !

#बोधिसत्व_विद्दयावाचस्पति_प्रा_भीमराव_गोटे : एक जीवन परिचय !

उच्च विद्दया विभूषित प्रा .भीमराव गोटे यांचा जन्म विदर्भतिल वर्धा ज़िल्हयात तिल एका लहान खेड्यात गरीब शेतकरी मुलभारतिय हिन्दू धर्मात झाला . त्यांनी प्राथमिक शिक्षण मराठी मातृभाषा मधे आणी ज़िल्हा परिषद शालेतुन घेतले आणी उच्च शिक्षण नागपुर विश्वविद्दयालय मधुन अर्थ शास्त्र या विषयात घेतले काहि वर्ष त्यांनी ट्रेडमार्क विभाग मुंबई मधे नौकारी केली व पूढे पुस्तक वेवस्थापन यात स्नातक पदवी मुंबई विद्दयापिठ मधुन मिलविली पूढे शिक्षणशास्त्र यात स्नातक व पदवीत्तर मास्टर ऑफ एज्युकेशन पदवी घेवुन पूढे शिक्षणशास्त्र महाविद्दयालयात उल्हासनगर येथे प्राध्यापक म्हणुन सेवा दिली आणी पूढे शिक्षण शास्त्रात पी एचडी अर्थात विद्दयावाचस्पति ही उच्चतम पदवी घेवुंन ते नागपुर विद्दयापिठात शिक्षण शास्त्र विभाग प्रामुख आणी बाबा साहेब आम्बेडकर विचार ,नागपुर विद्दयापीठ , महात्मा गांधी आंतर राष्ट्रिय हिंदी विद्दयापीठ , वर्धा आणी अनेक खाजगी संस्था चे शिक्षण मार्गदर्षक अशी बहुविध सेवा शिक्षण क्षेत्राला देवुन प्रत्यक्ष निवृत झाले असले तरि वाचन लिखान अविरत शुरूच आहे ! 

प्रा .गोटे साहेब चिकित्सक वृत्ती चे अभ्यासू समिक्षक आहेत ते साहित्तिक आहेत आणी कवी सुद्धा आहेत !

नेटीव रूल मुव्हमेंट ची स्थापना जरी 1 जानेवारी , 1970 ला पवनी ,भंडारा ज़िल्हा , महाराष्ट्र येथे झाली असली तरी या मुव्हमेंट च्या वैचारिक जडन घडन मधे प्रा . डॉ. गोटे साहीबांचे अत्यंत मोलाचे मार्ग दर्शन आणी सन 1986 पासुन प्रत्यक्ष सहभाग आणी कार्य सिद्धी साठी त्यांचे फार मोठे योगदान आहे ! मुलभारतिय विचार मंच , नेटीव पिपल्स पार्टी अश्या जोखिम च्या वैचारिक आणी राजकिय संस्थेत ते प्राध्यापक असुन स्थापना प्रक्रियेत शामिल झाले ! एकाध्या नौकारी वर असणार्या प्राध्यापकाने आपल्या घरी पक्षाचे रजिस्टर्ड मुख्यालय ठेवावे त्या पक्षाच्या प्रमुख महामंत्री पदाची जबाबदारी घ्यावी या साठी किती प्रचण्ड मानसिक शक्ति या माणसात असावी याची कल्पना करूँन पहा ! खरच ते नेटीव पिपल्स पार्टी चे संस्थापक आहेत !

मुलभारतिय विचार मंच च्या मंचा वरूँन देश्याच्या अर्थसंकल्प वर बोलताना कोंग्रेस आणी डॉ. मनमोहन सिंह यांच्या खा ऊ जा धोरणावर साडकुन टिका करणारे प्रा . गोटे सर हेच पहिले ठरतिल !  

गोटे साहेब कल्याण पूर्व ला एका लहानश्या चालवजा घरात आपले कुटुम्ब सौ वंदाना ताई गोटे , दोन लहान मुले , दोन शिकलेले लहान बेरोगार भाऊ आणी म्हतारे आई वडील असे भरगच्च परीवारात एकमात्र कमावती व्यक्ति पूढे त्यांनी प्रिंटींग प्रेस टाकली, प्राध्यापक ची नौकारी करून घरी आले की प्रेस चे मालक कामगार !

घरि नेटीविस्ट डीडी , के जी पाटिल आदि आमच्या सारखे लोक आले की एका मागुन एक काला चहा आणी समाज , राजकारण , धर्म आदि वर न संपनारया गप्पा असे हे नित्य कार्य क्रम 1968 शुरू झाले त्या पूर्वी गोटे साहेब नागसेन मण्डल मधे सकिय पदाधिकारी सचिव होते , हे कल्याण पूर्व चे खूप जुने सामाजिक मण्डल , सार्वजानिक आम्बेड़कर जयंती जोरात साजरी करित असे ! 

प्रा . गोटे सरांचा पिंड तसा धार्मिकच पाली भाषेवर त्यांचा दाण्डगा अभ्यास आणी म्हणुन त्यांनी त्यांचे एक नाते स्नेही श्री पी टी धनविजय साहेब सोबत एक पाली प्रचार समिती स्थापन केली या संस्थेने पुधे सम्राट शाला काढ़ली . प्रा . गोटे सर कल्याण पूर्व च्या जागृती मंडल चे सुद्धा सभासद होते या संस्थे चे नालंदा विद्दयालय आहे तर श्री देवचन्द आम्बादे साहेब ची संस्था आणी समता विद्दयालय ला सुद्धा मार्गदर्शन करित होते ! 

पूढे त्यांनी त्यांचे दोन ही भाऊ योग्य मार्गी लावून ते नागपुर ला प्रपाठक म्हणुन गेले थोडे स्थिर स्थावर झाले दोंनही मुले उच्च शिक्षित इंजीनीअर झाले आपला स्वतंत्र व्यवसाय करित आपला संसार निट करित आहेत त्यांना एक नातु आहे .सौ वंदना ताई सुद्धा पालित एम फिल झाल्या व एक प्री स्कुल चालवितात त्या संस्थे चे प्रा गोटे संस्थापक आहेत ! 

प्रा , डॉ. गोटे सरांचे काम इथेच थांबले नाही तर एक सेवन स्टार कंपनी चे डायरेक्टर आहेत आणी बौद्ध विहार समन्वय समिती चे कार्याध्यक्ष आहेत !

त्यांनी काही वर्षा पासुन शाम होटल , नागपुर जीथे बाबा साहेब आम्बेडकर थांबले होते आणी तीथे ही काही लोकांना बाबा साहेबनी बुद्ध धम्म दीक्षा दिली होती ते शाम होटेल आता धम्म दीक्षा स्मृति भवन व्हावे य़ा साठी अहोरात्र परिश्रम करित आहेत तिथे ही दर वर्षी न चुकता ते धम्म दीक्षा दिनी दिवस भर त्रिशरण पंचशिल पूजा घेत असतात ! 

गोटे साहेबानी पत्रकारिता क्षेत्रात पाक्षिक काढल संपादक मुद्रक प्रकाशक होते , सहकारी क्षेत्रात काम केल , कामगार क्षेत्रात काम केल रेशन उपभोक्ता संघ , ब्लू व्हिल क्रास अश्या संगटन मधे स्वयम संस्थापक सेवक होते !

गोटे साहेबांचे शिक्षण मोठे आहे , त्यांचे सामाजिक , शैक्षणिक कार्य मोठे आहे त्यांचे राजकिय विचार आणी कार्य मोठे आहे जवल जवल सर्व राजकिय विचार अगदी गांधीवाद मार्क्सवाद समाजवाद , मुलभारतियवाद , फूले आम्बेकरवाद , ब्राह्मण - मनु वाद या सर्व राजकिय सामाजिक विचारावर त्यांचा दांडगा अभ्यास आहे ,ते कल्याण ला 2002 साली भरलेल्या प्रथम राष्ट्रिय गांधी साहित्य सम्मेलनाचे अध्यक्ष सुद्धा राहिले आहेत त्या संम्मेलनाला माहत्मा गांधी चे पणतु तुषार गांधी आदि अनेक गांधीवादी मान्यवर पाहुणे वक्ते उपस्थित होते , एवढेच नव्हे तर ते एका काटे वजन कारागीर ट्रेड युनियन चे संस्थापक सुद्धा राहिले आहेत आणी त्या साठी त्यांना भ्रस्टाचारी वेवस्थेने अतोनात त्रास सुद्धा दिला आहे ! नेटीव पीपल्स पार्टी चालविताना पक्षाचे माजी आमदार पप्पु कलानी यांना आपनास या पुढे पक्ष टिकिट देणार नाही असे सांगण्याची धाडसी वृत्ती त्यांच्या कडे आहे म्हणुन ही आम्ही त्यांना बोधिसत्व आहेत असे म्हणत नाही तर त्यांना बुद्ध धम्म समजला म्हणुनु ते बोधिसत्व आहेत असे नव्हे तर ते ज़िवनात प्रत्यक्ष आचरून आज़च्या बुद्धिस्ट समाजाला एक ज़िवंत एक व्यक्ति संस्था बोधिसत्व आम्बेडकर चेअर ( पीठ ) यास सुयोग्य व्यक्ति आज हयात आहेत त्यांचा समाज एकता राजकिय दिशानिर्देश हेवे दावे कमी करून अहंभाव अहंकार त्यागुन समाजाच्या नेत्यानी निदान बोधिसत्व ही ज़िवंत वेवस्था स्विकारावी आणी समाजाचा थांबलेला टूटलेला रथ मार्गी लावत रहावा म्हणुन नेटीव रूल मुव्हमेंट ने सूचवली अशी एक योजना आहे ! 

समाजात अजून बरेच विचारवंत , साहित्तिक , बौद्ध भीक्कु असतील पण प्रा. डॉ. भीमराव गोटे निछितच या बोधिसत्व पद , चेअर साठी सुयोग्य व्यक्ति आहेत !

काही लोकाना असे वाटणे शक्य आहे की त्यांचे कार्य बाबा साहेब सारखे मोठे आहे काय ? मी म्हणेन आहे आणी नाही कारण समाज गतिशिल राहिला पाहीजे क्रांती चे चक्र मग ते धार्मिक सामाजिक आर्थिक वा राजकिय सांसकृतिक असो त्यास फिरती ठेवणारी निर्गर्वी व्यक्तिस समाजाने पूढे रेटले पाहीजे इच्छेने की अनिच्छे पण समाजातिल व्यक्ति आहे वादातीत नाही तर पूढे करा !

अमबेडकरी नेत्यानो तुम्ही त्यांच्या घरी जावून एकते साठी बसू शकता , अहंकार एक ज़िवंत व्यक्ति पद निर्मांण करा जसे विदेशी यूरेशियन वैदिक ब्राह्मण चार चार पीठाचे शंकाराचार्य अनेक आचार्य महामण्डलेस्वर अनेक आखाड़े लाखो संस्था , हजारो सहकारी संस्था ,सर्व पक्षात शिरकाव वगीरे .युद्ध तंत्र वापरून ब्राहमानी सत्ता टीकवूण ठेवतात कुठला ब्राम्हण अश्या वेवस्थितिल नेमणुका निवाद पद वर चुकुन ही एक नकारार्थी शब्द काढ़त नही ती निती आपण समजून घ्या तर आज प्रा डॉ भीमराव गोटे हे शिव धानुष्य म्हणा हव तर धम्म चक्र म्हणा ते निच्छित पेलू शकतात !

बुद्ध धम्म धार्मिक मान्यतेत संसारी व्यक्ती लोकोत्तर धम्म कार्य करित असेल तर समाज त्यास बोधिसत्व म्हणत असे जसे बोधिसत्व तारा ,बोधीसत्व पद्मपाणी आदि ! एकाला त्याच्या कार्या मुले बोधिसत्व बोलले गेले असेल तर दुसरया ला देवू नये असे म्हणने योग्य ठरणार नाही बुद्धाने सुद्धा सांगितले आहे अत्त दीप भव ! एक बुद्धिस्ट म्हणुन प्रा. डॉ. भीमराव गोटे त्याच मार्गावर आहेत म्हणुन नेटीव रूल मुव्हमेंट ने त्यांना 2023 लाच बोधिसत्व विद्दयावाचस्पति प्रा .भीमराव गोटे संभोधुन गौरव केला आहे !

#नेटीवीस्ट_डीडी_राऊत

Wednesday, 9 October 2024

Pavitra Bijak : Pragya Bodh : Shabd : 26 : Bhai Re Bahot Bahot Kya Kahiye !

#पवित्र_बीजक : #प्रज्ञा_बोध : #शब्दों : २६ : भाई रे बहोत बहोत क्या कहिये ! 

#शब्द : २६

भाई रे बहोत बहोत क्या कहिये, कोई बिरले दोस्त हमारे : १
गढ़न भंजन सँवारन आपै, ज्यों राम रखे त्यों रहिये : २
आसन पवन योग श्रृति सुमृति, ज्योतिष पढ़ी बैलाना : ३
छौं दर्शन पाखण्ड छियान्नबे, ये कल काहू न जाना : ४
आलम दुनिया सकल फिरि आये, ये कल उहै न आना : ५
तजि करिगह जगत्र उचाये, मन मौ मन न समाना : ६
कहहिं कबीर योगी औ जंगम, फीकी उनकी आशा : ७
रामहिं नाम रटे ज्यों चातक, निश्चय भक्ति निवासा : ८

#शब्द_अर्थ : 

गढ़न = उत्पत्ति ! भंजन = संहार ! संवारान = पालन ! बैलाना = मूर्खता , निर्बुद्ध ! छौ दर्शन = उस समय के छ विचार योगी, जंगम, सेवड़ा, संन्यासी, दरवेश और ब्राह्मण ! पाखंड छियानवे = छौ दर्शन के उप भाग ! कल = शांति ! आलम = संसार ! करिगह = करधा अर्थात संसारी जीव ! उचाये = उठाये , सर पर लेना ! 

#प्रज्ञा_बोध : 

धर्मात्मा कबीर कहते है भाइयों मेरे विचार से बहुत कम लोग सहमत है , वो विरले लोग ही मुझे दोस्त जैसे नजर आते है जो मेरे भजन दोहे शब्द रमैनी आदि काव्य और उनमें बताये सत्य धर्म विचार , मूलभारतीय सनातन पुरातन आदि काल से चला आ रहा आदिवासी मूलभारतीय हिन्दूधर्म कोई ठिक से समझाता है ! ऐसे लोग मेरे दोस्त है जो बार बार मुझसे मिलने धर्म ज्ञान पर चर्चा करने आते है तो मुझे बड़ी खुशी होती है ! 

कबीर साहेब कहते है मैं एक मुसाफिर की तरह घुमक्कड़ की तरह अनेक जगह गया हूं संसार के अनेक धर्म विचार , लोग उनके खानपान पेहराव , तीज त्यौहार उपासना पद्धति आदि का गहराई से अवलोकन किया है उनके सुख दुख के कारण का विशेषण किया है संसार की उतपत्ति , प्रलय, संवर्धन , ईश्वर पर लोगो के विचार आदी का गहन अध्ययन किया है और तब मैं इस नतीजे पर पहुंचा है जो आज छ धार्मिक विचार संसार में लोग ग्रहण कर उसपर चलते है वो धर्म जैसे हट योगी गोरख के धंधे , घरबार त्याग कर बने संन्यासी भिक्षु, जंगम जैन , तुर्की धर्म और उसके फकीर दरवेश मुल्ला मौलवी ओर विदेशी यूरेशियन वैदिक ब्राह्मणधर्म के ढोंगी ब्राह्मण को मै सिरे से नकारता हूं ! इन सब के धर्म विचार को मै मूर्खता कहता हूं ! ये धर्म नहीं है , अधर्म है ! 

इन छ धर्म विचार के साथ कई प्रकार के पाखण्ड जुड़े है जैसे हट योग , स्वास , प्राणायम , स्वास को रोकना आदि , मनुस्मृति और वेद , ज्योतिष , जन्म पत्री , गण , गोत्र , मुहूर्त , ग्रह दोष आदि का वैदिक ब्राह्मण धन्दा इन सब को वैदिक ब्राह्मणधर्म का पाखंड मान कर कबीर ने कड़ी निंदा की है और इसे मूर्खता कहा है और इनको सर पर बिठाया है ये मूर्खता है कहा है ! 

कबीर साहेब कोरा नाम स्मरण , भक्ति का धींगाना हरे कृष्ण हरे राम वालो को नाच गाना को पहले है सोंग धतूरा कह चुके है इसे तोते की तरह रट्टा लगाना कहते है ! 

कबीर साहेब उसी धर्म मार्ग और उपासना पद्धति को ठीक मानते है जो शील सदाचार का आचरण का धर्म है ढोंग धतूरे होम हवन जनेऊ गाय घोड़े की बलि झूठे रोजे उपवास बेवकूफ बनाने के गोरख धंधे , संसार से भागने वाले भगोड़े और निर्थक नाम की रट लगाने वाले हिलने डुलने वाले लोग जो नीतिमत्ता शिलआचरण नहीं करते और बुतपरस्ती, अवतारवाद , उचनिच भेदाभेद के कारण अन्य मानव का शोषण करते है ऐसे सभी धर्म विचार को कबीर साहेब अधर्म बताते है और त्याज्य मानते हैं ! अन्त में कबीर साहेब मूलभारतीय हिन्दूधर्म जो शील सदाचार भाईचारा समता शांति अहिंसा आदि मानवीय मूल्यों पर आधारित है और मानव सुखकारक हैं वहीं धर्म पालन करने के लिये कहते है ! 

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#जगतगुरू_नरसिंह_मूलभारती 
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Tuesday, 8 October 2024

Pavitra Bijak : Pragya Bodh : Shabd : 25 : Avadhu Vo Tattu Rawal Rata !

#पवित्र_बीजक : #प्रज्ञा_बोध : #शब्द : २५ : अवधू वो तत्तू रावल राता !

#शब्द : २५ : 

अवधू वो तत्तू रावल राता, नाचै बाजन बाजु बराता : १
मौर के माथे दुलहा दीन्हा, अकथ जोरि कहाता : २
मंडये के चारन समधी दीन्हा, पुत्र ब्याहिल माता : ३
दुलहिन लीपि चौक बैठारी, निर्भय पद परकाशा : ४
भातै उलटि बरातिहि खायो, भली बनी कुशलाता : ५
पाणिग्रहण भयो भौ मंडन, सुषमनि सुरति समानी : ६
कहहिं कबीर सुनो हो संतो, बूझो पण्डित ज्ञानी : ७

#शब्द_अर्थ : 

वो तत्तू  = ज्योति या नाद ! रावल = सैनिक , जीव ! राता = राजा , मालिक, योगी , जीव ! बाजन = इंद्रिय ! बराता = प्रकृति ! मौर  = मोर  मुकुट , ज्योति ! दुलहा = जीव ! अकथ = कहने अयोग्य ! चारन = आचरण ! समधी  = सम बुद्धि  ! पुत्र = जीव ! माता = माया , अविद्या ! दुलहिन = वृत्ति ! लिपि = लयबद्ध ! चौक = अंतकरण !  बैठारी = बिठाया , स्थिर किया ! भातै = स्वास , पका चावल , फेफड़े में हवा !  बरातिही  = शरीर के अन्य अवयव ! पाणिग्रहण = बंधन , विवाह !  भौ = भवसागर  , संसार ! मंडन = श्रृंगार ! सुषमनि = नाड़ी ! सुरति = लक्ष ! 

#प्रज्ञा_बोध : 

धर्मात्मा कबीर  हट योग को हटधर्मीता उल्टा विचार और आचार मानते हुवे उसे बेजोड़ विवाह की उपमा देकर समझाते है की हट योग मायावी है माया पर विजय नहीं ! जीव को कष्टप्रद है सुख कारक नहीं ! प्राण वायु को रोक देने आदि हट के कारण फेफड़े आदि के साथ अन्य शरीर अवयव को हानी पहुंचती है ! योगी केवल ऊंची आवाज में योग योग कहकर उसकी कितनी भी तारीफ प्रचार क्यू ना कर ले मन के मैल और विकार को साफ किये कोई चेतन राम के दर्शन नहीं कर सकता ! 

योग से शरीर और मन दोनों दुर्बल होते है क्यू की हटीता में सहजता नहीं , ये एक जबरदस्ती से किया गया ब्याह है जो स्वेच्छा से निर्मल जीवन जीने के लिये तैयार नहीं और उसे जबरदस्ती से योग के दिखावे भरे मंडप में चौका सजावट कर भले ही सर पर दूल्हे का ताज रख दे उस से न ये शरीर खुश है न अवयव ना जीव तो परमात्मा चेतन राम क्या खाक खुश होगा ! 

कबीर साहेब यही बात यहां बताते है भाइयों योग हट योग , होम हवन  आदि दिखावे पर मत जावो उसमें वास्तविकता नहीं बस प्रचार है , प्रचार को मत भूलो , उसमे ना फासो ये शांति और सुख कारक मार्ग नहीं , शरीर को इस प्रकार उल्टे सीधे काम कर दुख ना दो मन के विकार माया मोह अहंकार को छोड़ो तो सुख मिले , गलत रास्ते से जावोगे तो लक्ष से भटक जावोगे , अंतिम लक्ष नहीं पावोगे ! 

#धर्मविक्रमादित्य_कबीरसत्व_परमहंस 
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कल्याण , #अखंडहिंदुस्थान , #शिवसृष्टि

Sanatan Mulbhartiya Hindhudharm !

#हिन्दुस्थानी_लोग_और_धर्म !

हिन्दुस्तान, हिन्द , अल-हिन्द , होडू नामों से जाना है इंडिया ! इन सब मे सब से पुराना नाम है हिन्द ! विदेशी लोग सही उच्चारण नही करते थे इस लिये होडू भी कहते थे अरबी ईराणी लोग अल हिन्द कहते थे और यूनानि लोग यानी ग्रिक लोग हींडो इंडो कहते थे !

अशोक और मौर्य सामराज्य के सभी राजा को किंग ऑफ हींडो कहाँ गया , बुद्ध के समय भी ईस देश नाम हींडो ही था पर बुद्ध धर्म मे प्रयुक्त शब्द अरिय य़ानी श्रेष्ठ यह शब्द प्रचालित हुवा और देश को आर्य वर्त य़ानी श्रेष्ठ लोगोका देश कहने जाने लगा ! 

गोंण्डवाणा नागभूमि ये शब्द बृहाद य़ानी अनेक देशो के खण्ड को कहाँ गया ज़िसे हम आज आशिया खण्ड कहते है ! नाग संस्कृती का विस्तार आज के आफ्रीका , अमेरिका , आष्ट्रेलिया खण्ड मे भी देखे जा सकते है , मिश्र के धर्म संस्कृती पर नाग संस्कृती की छाप दिखाई देती है जो विग्यानिक और समतावादी नजर आते है वही यूरेशियां से निकले लोग शुद्ध रक्त और वर्ण वादी नजर आते है जो असभ्य मालुम पडते है ! इसरायेल , पारसी और ब्रहमान इनका धर्म विचार इस वर्ग मे आता है !  

बुद्ध ने अपना धर्म बताया तब महाविर भी अपना धर्म बता रहे थे वे महाविर के पूर्वजोंको जीन कहते थे और बुद्ध अपने पूर्वज को बुद्ध कहते थे ईसलिये दोनोके धर्म को जीनधर्म , बुद्धधर्म कहा गया और वही नाम आगे प्रचालित हुवे ! 

फिर बुद्ध को अपने धर्म को येच धर्म सनातनो क्यू कहना पडा ? क्यू आज भी जैन धर्मी अपने हिन्दू मानते है ? क्यू नया धर्म सिख धर्म के लोगोंको खुद को हिन्दू कहने मे कोई संकोच नही होता ? इसका कारण जीन और बुद्ध शब्द मोह माया मद मत्सर आदि विकार पर विजय पाने वाले ज़ितेन्द्र और ग्यानी इस गुण वाचकता दर्शाने वाले है जब की उनके पूर्वजोंका धर्म हींडो का धर्म हिन्द धर्म य़ा हिन्दूधर्म था ! मुलभारतीय हिन्दुस्थानी नेटीव आदिवाशी का धर्म हिन्दूधर्म था ईसलिये हींडो इंडो संस्कृती के मुलभारतिय हिन्दूधर्मी लोगोने इस देश पर पहले आक्रमण कारी यूरेशियन असभ्य वैदिक ब्राहण और उनका विषमातावादी रक्त शुद्धीवादी वर्णवादी विचार को ईस के पुरातन सनातन आद्य लोकधर्म मुलभारतिय हिन्दूधर्म को ना सिख धर्म के संस्थापक नानकदेव ना बुद्धधर्म के संस्थापक गौतम बुद्ध ना जैन धर्म के आखरी तिर्थन्कर महाविर भूल पाये ! इसलिये सभी लोग मुलभारतिय हिन्दूधर्म को अपना पूर्वज पितामह येच धर्म सनातन कहते है इन सभी धर्म का आधार समता भाईचार है जब की शांति अहींसा आत्मा परमात्मा आदि पर कुछ कुछ थोडे अधिक मतभेद हो सकते है जैसे जैनी ईश्वर को नही मानते वो कहते है नर करणी करे तो नारायण हो जाये , भगवान बुद्ध ईश्वर पर चुप रहे और शिल आचरण करो तो ईश्वर है य़ा नही खुद जान जावोगे इस विचार के रहे जब की नानकदेव कबीर का विचार आगे ले गये जो निराकार निर्गुण अविनाशी चेतन राम को मानने वाला है पर कबीर जैसी अहींसा को नही मानते !

तात्पर्य ये है की जैन सिख बुद्ध धर्म मुलभारतिय हिन्दूधर्म सनातनधर्म मानते है और उससे वे निकले है यह सत्य स्विकार करते है ! हम सभी सनातन समतावादी धर्म है और विदेशी यूरेशियन वैदिक ब्राह्मणधर्म धर्म नही सनातन गंदगी , विकृती अधर्म है जैसा इस सृष्टी मे देखा जाता है धर्म की अधर्म और अधमी लोगोंसे सदा ही लधाई ,संघर्ष रहा है ! 

#नेटीवीस्ट_डीडी_राऊत दौलतराम 
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