#पवित्र_बीजक : #प्रज्ञा_बोध : #शब्द : ४६ : पण्डित एक अचरज बड़ होई !
#शब्द : ४६
पण्डित एक अचरज बड़ होई : १
एक मरि मुये अन्न नहिं खाई, एक मरे सिजै रसोई : २
करि अस्नान देवन की पूजा, नौ गुण काँध जनेऊ : ३
हड़ीया हाड़ हाड़ धरिया मुख, अब षट कर्म बनेऊ : ४
धर्म करे जहाँ जीव बधतु हैं, अकर्म करे मोरे भाई : ५
जो तोहरा को ब्राह्मण कहिये, तो काको कहिये कसाई : ६
कहहिं कबीर सुनो हो संतों, भरम भूलि दुनियाई : ७
अपरम्पार पार पुरुषोत्तम, या गति बिरले पाई : ८
#शब्द_अर्थ :
अपरम्पार = असीम ! गति = स्थिति !
#प्रज्ञा_बोध :
धर्मात्मा कबीर जीव हत्या को पाप मानने है , दुष्कर्म मानते है यही विचार मूलभारतीय हिन्दू धर्म का रहा है और हिन्दू धर्म के पंथ बौद्ध धर्म , जैन धर्म ने भी इसी मूलभारतीय हिन्दूधर्म तत्व का प्रचार प्रसार किया है ! ये हमारा सनातन पुरातन धर्म है जीव हत्या पाप है !
पर विदेशी यूरेशियन वैदिक ब्राह्मणधर्म के लाग और उनका विदेशी वैदिक यूरेशियन ब्राह्मणधर्म शुरू से ही असभ्य , असंस्कृत , विकृत अधमी रहा है उन्होंने कभी भी प्राणी हत्या को पाप नहीं माना वे होम हवन में बड़े पैमाने पर गाय बैल घोड़े आदि प्राणी की बलि देते रहे है और बड़े चाव से हड्डी मांस रुधिर आदि अन्न बोल कर खाते रहे है ! प्राणी हत्या गाय बैल की होम हवन में बलि के बाद उनकी अंतड़ी को जनेऊ बनाकर पहनते थे ! उन्हें प्राणी हत्या का कोई अफसोस नहीं ! अब इनको ब्राह्मण कहे कि कसाई पूछते है कबीर !
विदेशी यूरेशियन वैदिक ब्राह्मणधर्म के पाण्डे पुजारी बाद में नकली बुद्धिस्ट जैनी साधु भिक्कू मुनि बने और स्नान , गंध, तिलक लगाकर अपने को ब्राह्मण ज्ञानी कहने लगे पर ये थोथे है इनका ज्ञान बस दान दक्षिणा तक ही सीमित है लोगोंको भ्रमित करने के लिए विविध पूजा अर्चना पाठ , सोंग धतूरे करते है पर इनका कोई धर्म नहीं विकृती ही इनका धर्म है ! मानव मानव में भेदाभेद , उचनिच अस्पृश्यता विषमता , छुआछूत को ये लोग धर्म कहते है इस से बड़ी मूर्खता और क्या होगी ! पर ये दुराचारी लोग खुद को देव , ईश्वर , भगवान समझते है और कहते है वे कुख्यात ब्रह्मा के वंशज है !
कबीर साहेब इन कसाई असभ्य विदेशी यूरेशियन वैदिक ब्राह्मणधर्म के पांडे पुजारी को इंसान बनाने को कहते है ! ये क्या जाने परमतत्व चेतन राम ! जो इंसान नहीं वो क्या होंगे देव ?
#धर्मविक्रमादित्य_कबीरसत्व_परमहंस
#दौलतराम
#जगतगुरू_नरसिंह_मूलभारती
#मूलभारतीय_हिन्दूधर्म_विश्वपीठ
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