#शब्द : ४४
बुझ बुझ पण्डित करहु विचारा, पुरुषा है कि नारी : १
ब्राह्मण के घर ब्राह्मणी होती, योगी के घर चेली : २
कलमा पढ़ी पढ़ी भई तुरुकनी, कलि में रहत अकेली : ३
वर नहिं वरे ब्याह नहिं करे, पुत्र जन्मावनहारी : ४
कारे मुंड को एकहु न छांड़ी, अजहूँ आदि कुमारी : ५
मैके रहे जाय नहिं ससुरे, सांई संग न सोवों : ६
कहैं कबीर मैं युग युग जीवो, जॉति पाँति कुल खोवो : ७
#शब्द_अर्थ :
ब्राह्मणी = ब्राह्मणपन, ब्राह्मणबाद , विदेशी यूरेशियन वैदिक ब्राह्मणधर्म ! चेली = शिष्य ! कलमा = मुस्लिम धर्म का मूल मंत्र ! तुरुकनी = मुसलमान स्त्री ! कलि = पाप बुद्धि ! बर = दूल्हा ! बरे = ब्याह करना ! कारे मुंड = युवा पुरुष ! आदि = शुरू से ! कुमारी = कुंआरी ! मैके = मां का घर , नैहर ! ससुरे = ससुराल , संसार ! सांई = स्वामी , चेतन राम ! युग युग = सदा के लिए !
#प्रज्ञा_बोध :
धर्मात्मा कबीर कहते हैं विदेशी यूरेशियन वैदिक ब्राह्मणधर्म , ब्राह्मणवाद जाति वर्णवाद , कुल गोत्र वाद उचनीच भेदाभेद अस्पृश्यता विषमता आदि अमानवीय विचार के लिये कुख्यात है ! वैसे ही हट योग के योगी अपने चरम अहंकार के लिये कुख्यात है ! मुस्लिमधर्म भी स्त्री पुरुष गैर बराबरी के लिये कुख्यात है और ये सभी स्त्री का शोषण करते है !
ये सभी बाहरी दिखावा करते है बाहरी पूजा पाठ नमाज भस्म माला आदि काई धर्म नहीं ! अंतरात्मा चेतन राम के साथ तदरूप होने के बजाय वो संसार में माया मोह इच्छा तृष्णा आदि में ही अटके पड़े हैं ! कबीर साहेब कहते है जो लोग जाति वर्णवाद में अटके पड़े है जो दूसरे को काफिर कहते है वे क्या धर्म जानेंगे ! धर्म ये नहीं जहां शील सदाचार भाईचारा समता मानवता अहिंसा आदि मानवीय मूल्यों पर आधारित सत्य सनातन पुरातन समतावादी मानवतावादी समाजवादी वैज्ञानिक सोच नहीं वो धर्म नहीं अधर्म और विकृति है ! यही भारत में अनादि काल से माना गया है ! आइए सब छोड़िए अपना सदधर्म मूलभारतीय हिन्दूधर्म का पालन कर सुख से संसार में रहिए यही सिख कबीर साहेब यहां देते है !
#धर्मविक्रमादित्य_कबीरसत्व_परमहंस
#दौलतराम
#जगतगुरू_नरसिंह_मूलभारती
#मूलभारतीय_हिन्दूधर्म_विश्वपीठ
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