#पवित्र_बीजक : #प्रज्ञा_बोध : #शब्द : ३५ : हरि मोर पिउ मैं राम की बहुरिया !
#शब्द : ३५
हरी मोर पिउ मैं राम की बहुरिया, राम बड़ों मैं तन की लहुरिया : १
हरि मोर रहैंटा मैं रतन पिउरिया, हरि का नाम लै कतति बहुरिया : २
छौ मास तागा बरस दिन कुकुरी, लोग कहैं भल कातल बपुरि : ३
कहहिं कबीर सूत भल काता, चरखा न होय मुक्ति का दाता : ४
#शब्द_अर्थ :
बहुरिया = दुलहिन , पत्नी ! राम बड़ों = चेतन राम , समस्त संसार व्यापी ! तन की लहुरिया = एक छोटा अंश ! रहटा = चरखा ! रतन पिउरिया = शुद्ध विचार, पाणी देने वाली ! कुकुरि = आंटी , सुत का लच्छा ! बपुरी = बेचारी ! सूत = नाम !
#प्रज्ञा_बोध :
धर्मात्मा कबीर कहते हैं हरि अर्थात चेतन राम , हर अर्थात कल्याणकारी शिव सर्वत्र है और हम मानव उस समस्त संसार के एक छोटे से अंश है यह बात सच है उस हरि भक्ति के पिछे ज्यादा तर लोग लगे हुवे है और नाम के भक्ति में अपना जीवन दिन रात लगा देते है , राम नाम की रट और अन्य नाम चरखे की तरह दिन रात चलने या रट ने से नाम का धागा , सुत , पुगलिया , पिंडली ओर कपड़ा भी बुन लोगे पर ये नाम की केवल रट आप को जन्म फेरे से मुक्ति नहीं दे सकते , ना राम नाम की रट या अन्य देवी देवता के नाम की रट से निर्वाण प्राप्त होगा , जीवन को शुद्ध आचार विचार दिये बैगर सब व्यर्थ है , राम नाम का चरखा कितना भी चलावो बिना शुद्ध निर्मल जीवन मुक्ति मिलती नहीं !
नाम स्मरण के आगे बढ़ना होगा केवल खुद को सूफी संत , वारकरी जैसे नाम का कीर्तन गजर करने से ईश्वर प्राप्ति नहीं होती ना कोई भगवान खुश होता है , वो खुश तब होता है जब तुम जानते हो तुम भी उस सर्व व्यापी राम के एक अंश हो और अपने भीतर के राम को पहचान कर निर्मल सरल जीवन से जीते हो ! शरीर है पर शुद्ध कार्य नहीं तो क्या फायदा ? शरीर चरखे जैसा है , कपड़ा बेदाग होना चाहिए ! केवल चरखा मिला और और शुद्ध बेदाग कपड़ा ना बुना तो उस कपड़े की जीवन की क्या कीमत ?
#धर्मविक्रमादित्य_कबीरसत्व_परमहंस
#दौलतराम
₹जगतगुरू_नरसिंह_मूलभारती
#मूलभारतीय_हिन्दूधर्म_विश्वपीठ
कल्याण, #अखंडहिंदुस्थान, #शिवसृष्टि
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