Saturday, 12 October 2024

Pavitra Bijak : Pragya Bodh : Shabd : 28 : Bhai Re Gaiyya Ek Viranchi

#पवित्र_बीजक : #प्रज्ञा_बोध : #शब्दों : २८ : भाई रे गइया एक बिरंचि दियो है !

#शब्द : २८

भारत रे गइया एक बिरंचि दियो है , गइया भार अभार भी भारी : १
नौ नारी को पानि पियतु है, तृषा तेउ न बुझाई : २
कोठा बहतर औ लौ लावे, ब्रज कँवार लगाई : ३
खूंटा गाडि दवरि दृढ़ बाँधेउ, तैयो तीर पराई : ४
चारि वृक्ष छौं शाखा वाले, पत्र अठारहु भाई : ५
एतिक ले ग़म किहिसि गइया, गइया अति रे हरहाई : ६
ई सातों औरों हैं सातों, नौ औ चौदह भाई : ७ 
एतिक ले ग़इया खाय बढ़ायो, गइया तैयो न अघाई : ८
पुरता में राती है गइया, सेत सींगि है भाई : ९
अवरण वरण किछउ नहिं वाके, खद्य अखद्य खाई : १०
ब्रह्मा विष्णु खोजि ले आये, शिव सनकादिक भाई : ११
सिद्ध अनन्त वाके खोज परे हैं, गइया किनहुँ न पाई : १२
कहहिं कबीर सुनो हो संतो, जो यह पद अर्थावै : १३
जो यह पद को गाय विचारै, आगे होय निर्बहैं : १४

#शब्द_अर्थ : 

गइया = गाय , मानव जानवर मनोवृत्ति ! बिरंचि = विचित्र ! 

#प्रज्ञा_बोध : 

धर्मात्मा कबीर यहां मानव प्रवृत्ति को गाय की उपमा देते हुवे कहते है प्रकृति ने मानव निर्मिती के साथ साथ उसमें एक विचित्र प्रवृत्ति भी भर दी जिसका नाम है अतृप्ति जिस प्रकार गाय चरते चरते ही रहती है वैसे ही मानव प्रवृत्ति है उसका कभी समाधान नहीं होता ! 

मानव ने इस गाय रूपी मानव लोभ लालच को काबू में रखने के लिये बड़े प्रयास किए ! उसको योग , हट योग , प्राणायम से जोड़ दिया , ब्रह्मा विष्णु की उपासना से जोड़ दिया जिस लिए वेद शास्त्र साधु सन्यासी जैसे शिव सनक सनंदन आदि बाल संन्यासी तक गढ़ डाले ! 

वेद और वेदांग , स्मृति पुराण के बंधन से मानव जीवन में लोभ लालच में कोई कमी नहीं आई उल्टे उनके नाम से आम जनता का शोषण बढ़ गया ! 

मन की लालची प्रवृत्ति को नहीं विद्या , विधान रोक पाई क्यू की इन सभी बातोंमें ऊपरी मलमपट्टी ही बताई गई जैसे पत्थर को अवतार देव मानकर पूजा करो , होम हवन करो , गाय घोड़े की बलि दो , अनुष्ठान की पूजा करो ब्राह्मण को दान दक्षिणा दो हट योग से देह दंड दो आदि आदि पर मानव मन की अतृप्त प्रवृत्ति को कोई धर्म विधान क्रिया कर्म नहीं रोक सका क्यू की लालची प्रवृत्ति मानव मन में है और लोग खुद के मन में झांकने की बजाय उसका समाधान अपने अंतकरण में खोजने की बजाय बाहरी मलमपट्टी बाहरी उपाय में खोजते रहे है ! 

कबीर साहेब कहते है भाईयो तुम्हारा मन गाय की तरह लालच में जब तक भटकता रहेगा कोई शांति सुख मिलेगा नहीं ! चेतन राम के स्वरूप को समझो वह मोह माया तृष्णा लालच से दूर है तभी तो संतुष्ट है ! संतुष्टि के स्वास को महसूस करों वही सुख है यह जो जानता है वही मेरे बात को ठीक से समझ सकता है ! मैं संतुष्टी का धर्म मूलभारतीय हिन्दूधर्म बताता हूं , वैदिक बाहरी दिखावा , ढोंग , धतूरे होम हवन जनेऊ संस्कार , बुत परस्ती कोई सुख का मार्ग नहीं वो छल है उससे दूर रहो !

#धर्मविक्रमादित्य_कबीरसत्व_परमहंस 
#दौलतराम 
#जगतगुरू_नरसिंह_मूलभारती 
#मूलभारतीय_हिन्दूधर्म_विश्वपीठ 
कल्याण , #अखण्डहिंदुस्थान , #शिवसृष्टि

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