#पवित्र_बीजक : #प्रज्ञा_बोध : #शब्द : ४३ :
पण्डित मिथ्या करहु विचारा !
#शब्द : ४३
पण्डित मिथ्या करहु विचारा, ना वहाँ सृष्टि न सिरजन हारा : १
स्थूल अस्थूल पौन नहिं पावक, रवि शशि धरणि न नीरा : २
ज्योति स्वरूप काले नहिं जह्नवाँ, बचन न आहि शरीरा : ३
कर्म धर्म किछुवो नहिं जहाँवा, ना वहाँ मन्त्र न पूजा : ४
संजम सहित भाव नहिं जहाँवा, सो धौं एक कि दूजा : ५
गोरख राम एकौ नहिं उहाँवा, ना वहाँ वेद विचारा : ६
हरिहर ब्रह्मा नहिं शिव शक्ति, तीर्थउ नाहिं अचरा : ७
माय बाप गुरु जह्नवा नाहीं, सो धौं दूजा कि अकेला : ८
कहहिं कबीर जो अबकी बुझै, सोई गुरु हम चेला : ९
#शब्द_अर्थ :
वहाँ = निर्वाण अवस्था, मोक्ष अवस्था ! थूल = स्थूल ! अस्थूल = सूक्ष्म ! काल = समय की अवधि या अवधारणा ! संजम = संयम ! एक = अकेला, असंग ! दूजा = दूजा भाव , द्वैत , दूसरा !
#प्रज्ञा_बोध :
धर्मात्मा कबीर विदेशी वैदिक यूरेशियन ब्राह्मणधर्म के लोगोंको उनके पण्डित , धर्म गुरु , पीठाधीश इनको पूछते है भाई आपके वेद और मनुस्मृति आदि ब्राह्मणधर्म ग्रंथ में जिसे आप ब्रह्मा कहते हो वह कैसा है ? जो तुम मानव रूप में तीन मुंडी चार मुंडी वाला ब्रह्मा कहते हो वो तो मानव लंपट निकला आपके अन्य देवी देवता भी ऐसे ही है ! भाई क्यू झूठ फैला रहे हो ? कबीर साहेब देशी लोगोंके कुछ पंथ जैसे गोरख को बड़ा गुरु मानने वाले , रामानंदी पंथी , शिव शक्ति पंथी को भी कहते है भाई आप जो राम शिव शक्ति , योग, हट योग आदि को ईश्वर मानते हो वो भी झूठ है , ये भी मानव ही थे ईश्वर नहीं !
कबीर साहेब कहते ईश्वर ऐसा नहीं है जैसा ब्राह्मण , मौलवी और अन्य पंथी मानते है दरअसल ऐसा कोई दृश्य वो सृष्टि निर्माता हैं ही नही !
कबीर साहेब सनातन पुरातन काल से चला आ रहा मूलभारतीय हिन्दूधर्म का अदभुत चिंतन , प्रज्ञा बोध को बताते हुवे कहते है भाईयों चेतन राम , वो परम तत्व चेतन निर्विकार निराकार निर्गुण अविनाशी एक ही अवस्था में है और वो अवस्था है मोक्ष की अवस्था , निर्वाण की अवस्था निरपेक्ष की अवस्था ! उस चेतना को न समय काल का बंधन है न जन्म मृत्यु ! उस को कोई उपमा अलंकार नहीं दी जा सकती है न उसे सृष्टि कहां जा सकता है न सृष्टि निर्माता ना वे सूर्य चांद तारे है न हवा पानी न उसका कोई कर्म है न कारण न भाव न पाप न पुण्य न उसका काई धर्म पंथ ! न अनेक है न वो तीर्थ पूजा मंत्र होम हवन है न छूत अछूत है ! हरिहर ब्रह्मा शिव शक्ती के नाम भी उसके लिए बेकार है ! न रिस्ते नाते का वहां कोई अवचित है ! ऐसी निराकार निर्गुण अविनाशी स्थिति ही निर्वाण है , मोक्ष है यही विचार कबीर साहेब बताते है कि भाईयो तुम सब माया मोह इच्छा तृष्णा रिश्ते नाते समय काल के बंधन में फंसे हुए लोग हो ! तुम्हे उस चेतन तत्व राम की अवस्था की जरा भी कल्पना नहीं क्यू की तुम अधर्म को धर्म मान बैठे मर्त्य मानव को भगवान मान बैठे उसके पुतले को भगवान मान कर और पाषाण , पुतले , प्राण प्रतिष्ठा , पाणी अर्पण तर्पण होम हवन बलि मंत्र तंत्र वैदिक पूजा पाठ इन फालतू बातों में फस कर सत्य चेतन स्वरूप को भूल बैठे और धर्म करने के बजाय अधर्म ही कर रहे हो !
भाइयों वो निराकार निर्गुण अविनाशी तत्व चेतन राम तुम्हारे साथ तुम्हारे भीतर ही है उसके स्वरूप को जाने उसकी निर्वाण अवस्था को पहचानो , जो ये जानता है उसे ही मै मेरा मानता हु वहीं सच्चा सदधर्म बताने वाला गुरु मानता हूं !
#धर्मविक्रमादित्य_कबीरसत्व_परमहंस
#दौलतराम
#जगतगुरू_नरसिंह_मूलभारती
#मूलभारतीय_हिन्दूधर्म_विश्वपीठ
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