#पवित्र_बीजक : #प्रज्ञा_बोध : #शब्द : ३४ : हरिजन हंस दशा लिये डोले !
#शब्द : ३४
हरिजन हंस दशा लिये डोले, निर्मल नाम चुनी चुनि बोले : १
मुक्ताहल लिये चोंच लोभावै, मौन रहे कि हरि यश गावै : २
मान सरोवर तट के बासी, राम चरण चित अन्त उदासी : ३
कागा कुबुधि निकट नहिं आवै, प्रतिदिन हंसा दर्शन पावै : ४
नीर क्षीर का करे निबेरा, कहहिं कबीर सोई जन मेरा : ५
#शब्द_अर्थ :
हरिजन = हरजन यानी कल्याणकारी शिव के उपासक , मूलभारतीय राजा राम और कृष्ण , भगवान बुद्ध आदि को पूज्यनीय मानने वाले मूलभारतीय हिन्दू धर्मी , तृष्णा , विकार का हरण करने में लगे लोग ! हर ये आदिवासी मूलभारतीय समाज में भगवान शिव अर्थात शिव शंकर महादेव को कहा जाता है , हर हर महादेव यानी जय जय तृष्णा मोह माया रहित शिव , चेतन राम ! हंस = शुद्ध निर्मल जीव , चेतन राम की अवस्था , हरि की अवस्था ! नीर क्षीर = विवेक ! मुक्ताहल = मोती ! चोंच = मुख ! मानसरोवर = हिमालय का निर्मल सरोवर , मानव का निर्मल मन ! अन्त : अंतकरण ! प्रतिदिन = निरंतर ! निबेरा = निर्णय , न्याय !
#प्रज्ञा_बोध :
धर्मात्मा कबीर मूलभारतीय हिन्दूधर्मी समाज के लोगोंको हरिजन कहते है यानी निर्मल मन के कल्याणकारी लोग जो मूलभारतीय महापुरुष शिव राम कृष्ण बुद्ध आदि की उपासना करते हैं उनके मार्ग पर चलते है और मुक्ति , मोक्ष निर्वाण गामी है ! हरिजन का मतलब है मोह माया इच्छा अधर्म को हरने वाले लोग ! कबीर साहेब के अनुयाई महात्मा गांधी भी इसी अर्थ से गैर ब्राह्मण को हरिजन संबोधित करते हुए कहते है ये लोग विष रहित है वैष्णव है तिरस्कार रहित है सब को प्रेम करने वाले भाईचारा मानवता शील सदाचार अहिंसा को मानने वाले मूलभारतीय हिन्दूधर्मी लोग है !
हरिजनों की अवस्था को कबीर हिमालय के मानसरोवर में विचरण करने वाले बेदाग हंस से करते है जिसकी मान्यता है कि वे विवेकी होते है अच्छे बुरे में भेद कर सकते है उनकी बुद्धि आदत कौवे जैसी नहीं होती है जो भक्ष अभक्ष सब खा लेता है कर्कश बोलता है , अप्रिय हरकते करता है !
कबीर साहेब मूलभारतीय हिन्दूधर्मी समाज को हंस कहते है हरिजन रामजन शिवजन हरजन कहते है और विदेशी यूरेशियन वैदिक ब्राह्मणधर्म के लोगोंको पाण्डे पुजारी को कर्कश आवाज में वैदिक मंत्रोच्चार करने वाले होम हवन में गाय बैल घोड़े आदि प्राणी की बलि देकर सोमरस मांस मदिरा गोस्त नाच गाना का धींगाना करने वाले लंपट लोगोंको कौवे गिद्ध बताते है ! ये भोगी लोग है त्यागी नहीं ब्रह्मा इंद्र रुद्र पंथी है जो लंपट जीवन के लिये कुख्यात रहे है !
कबीर साहेब अच्छे जीने के मार्ग पर चलो कहते है वैदिक ब्राह्मणधर्म को अधर्म और विकृति मार्ग मानते है और कौवे का जीवन मार्ग छोड़ो और हंस बनो कहते है !
#धर्मविक्रमादित्य_कबीरसत्व_परमहंस
#दौलतराम
#जगतगुरू_नरसिंह_मूलभारती
#मूलभारतीय_हिन्दूधर्म_विश्वपीठ
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