Wednesday, 9 October 2024

Pavitra Bijak : Pragya Bodh : Shabd : 26 : Bhai Re Bahot Bahot Kya Kahiye !

#पवित्र_बीजक : #प्रज्ञा_बोध : #शब्दों : २६ : भाई रे बहोत बहोत क्या कहिये ! 

#शब्द : २६

भाई रे बहोत बहोत क्या कहिये, कोई बिरले दोस्त हमारे : १
गढ़न भंजन सँवारन आपै, ज्यों राम रखे त्यों रहिये : २
आसन पवन योग श्रृति सुमृति, ज्योतिष पढ़ी बैलाना : ३
छौं दर्शन पाखण्ड छियान्नबे, ये कल काहू न जाना : ४
आलम दुनिया सकल फिरि आये, ये कल उहै न आना : ५
तजि करिगह जगत्र उचाये, मन मौ मन न समाना : ६
कहहिं कबीर योगी औ जंगम, फीकी उनकी आशा : ७
रामहिं नाम रटे ज्यों चातक, निश्चय भक्ति निवासा : ८

#शब्द_अर्थ : 

गढ़न = उत्पत्ति ! भंजन = संहार ! संवारान = पालन ! बैलाना = मूर्खता , निर्बुद्ध ! छौ दर्शन = उस समय के छ विचार योगी, जंगम, सेवड़ा, संन्यासी, दरवेश और ब्राह्मण ! पाखंड छियानवे = छौ दर्शन के उप भाग ! कल = शांति ! आलम = संसार ! करिगह = करधा अर्थात संसारी जीव ! उचाये = उठाये , सर पर लेना ! 

#प्रज्ञा_बोध : 

धर्मात्मा कबीर कहते है भाइयों मेरे विचार से बहुत कम लोग सहमत है , वो विरले लोग ही मुझे दोस्त जैसे नजर आते है जो मेरे भजन दोहे शब्द रमैनी आदि काव्य और उनमें बताये सत्य धर्म विचार , मूलभारतीय सनातन पुरातन आदि काल से चला आ रहा आदिवासी मूलभारतीय हिन्दूधर्म कोई ठिक से समझाता है ! ऐसे लोग मेरे दोस्त है जो बार बार मुझसे मिलने धर्म ज्ञान पर चर्चा करने आते है तो मुझे बड़ी खुशी होती है ! 

कबीर साहेब कहते है मैं एक मुसाफिर की तरह घुमक्कड़ की तरह अनेक जगह गया हूं संसार के अनेक धर्म विचार , लोग उनके खानपान पेहराव , तीज त्यौहार उपासना पद्धति आदि का गहराई से अवलोकन किया है उनके सुख दुख के कारण का विशेषण किया है संसार की उतपत्ति , प्रलय, संवर्धन , ईश्वर पर लोगो के विचार आदी का गहन अध्ययन किया है और तब मैं इस नतीजे पर पहुंचा है जो आज छ धार्मिक विचार संसार में लोग ग्रहण कर उसपर चलते है वो धर्म जैसे हट योगी गोरख के धंधे , घरबार त्याग कर बने संन्यासी भिक्षु, जंगम जैन , तुर्की धर्म और उसके फकीर दरवेश मुल्ला मौलवी ओर विदेशी यूरेशियन वैदिक ब्राह्मणधर्म के ढोंगी ब्राह्मण को मै सिरे से नकारता हूं ! इन सब के धर्म विचार को मै मूर्खता कहता हूं ! ये धर्म नहीं है , अधर्म है ! 

इन छ धर्म विचार के साथ कई प्रकार के पाखण्ड जुड़े है जैसे हट योग , स्वास , प्राणायम , स्वास को रोकना आदि , मनुस्मृति और वेद , ज्योतिष , जन्म पत्री , गण , गोत्र , मुहूर्त , ग्रह दोष आदि का वैदिक ब्राह्मण धन्दा इन सब को वैदिक ब्राह्मणधर्म का पाखंड मान कर कबीर ने कड़ी निंदा की है और इसे मूर्खता कहा है और इनको सर पर बिठाया है ये मूर्खता है कहा है ! 

कबीर साहेब कोरा नाम स्मरण , भक्ति का धींगाना हरे कृष्ण हरे राम वालो को नाच गाना को पहले है सोंग धतूरा कह चुके है इसे तोते की तरह रट्टा लगाना कहते है ! 

कबीर साहेब उसी धर्म मार्ग और उपासना पद्धति को ठीक मानते है जो शील सदाचार का आचरण का धर्म है ढोंग धतूरे होम हवन जनेऊ गाय घोड़े की बलि झूठे रोजे उपवास बेवकूफ बनाने के गोरख धंधे , संसार से भागने वाले भगोड़े और निर्थक नाम की रट लगाने वाले हिलने डुलने वाले लोग जो नीतिमत्ता शिलआचरण नहीं करते और बुतपरस्ती, अवतारवाद , उचनिच भेदाभेद के कारण अन्य मानव का शोषण करते है ऐसे सभी धर्म विचार को कबीर साहेब अधर्म बताते है और त्याज्य मानते हैं ! अन्त में कबीर साहेब मूलभारतीय हिन्दूधर्म जो शील सदाचार भाईचारा समता शांति अहिंसा आदि मानवीय मूल्यों पर आधारित है और मानव सुखकारक हैं वहीं धर्म पालन करने के लिये कहते है ! 

#धर्मविक्रमादित्य_कबीरसत्व_परमहंस 
#दौलतराम 
#जगतगुरू_नरसिंह_मूलभारती 
#मूलभारतीय_हिन्दूधर्म_विश्वपीठ 
कल्याण, #अखण्डहिंदुस्थान , #शिवसृष्टि

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