#शब्द :
ये तत्तू राम जपो हो प्रानी, तुम बुझहु अकथ कहानी : १
जाके भाव होत हरि ऊपर, जगत रैनि बिहानी : २
डाइनि डारे स्वनहा डोर, सिंह रहै बन घेरे : ३
पाँच कुटुम मिली जूझन लागे, बाजन बाजु घनेरे : ४
रेहु मृगा संशय बन हाँके, पारथ बाणा मेलै : ५
सायर जरे सकल बन डाहे, मच्छ अहेरा खेलै : ६
कहहिं कबीर सुनो हो संतो, जो यह पद अर्थावै : ७
जो यह पद को गाय विचारे, आप तरे औ तारै : ८
#शब्द_अर्थ :
तत्तू राम = राम तत्व , चेतन राम स्वरूपत ! हरि = निर्विकार राम , आत्मस्वरुप ! बिहानी = सबेरा , दिन , अंत ! डाइन = माया ! डारे = छोड़े ! स्वनहा = श्वान , कुत्ता ! डोरे = बंधन ! सिंह = मन ! पाँच कुटुम = पंच इंद्रिय ! रेहू = मानसिक विकार , चरने वाले , खाने वाले ! पारथ = पारधी , शिकारी ! सायर = समुद्र ,संसार ! बन = संसार ! मच्छ = मछली , मन !
#प्रज्ञा_बोध :
धर्मात्मा कबीर कहते हैं भाईयो सुनो अपने आप को पहचानो अपने भीतर के चेतन राम को जानो ! दिन रात उसका स्मरण करो उसके निराकार निर्गुण अविनाशी तत्व को देखो समझो ! मन में बसे उस चेतन राम सिंह को किसी का क्या डर , माया मोह के स्वानंदी कुत्ते सीयर उसे क्या डराएंगे !
पांच इंद्रिय से इस शरीर की इच्छाएं की जाती है और उन्हें पूरा करने हमे दिन रात परिश्रम करते है और उस चक्कर में मन के बादशाह शेर को इन इच्छा का गुलाम बना देते है , शिकारी खुद शिकार हो जाता है ! हमे मन के विकार तृष्णा मोह माया का शिकार करना है उसका शिकार नहीं होना है ! मन मछ्ली ना बनो किसी लालच लोभ में ना आवो नहीं तो उसके तरह लालच लोभ मोह माया में यह जीवन गवा दोगे !
कबीर साहेब कहते है भाई जो मेरी बात समझ गए जो मैं मूलभारतीय हिन्दूधर्म बता रहा हूं उसका पालन करेंगे और विदेशी यूरेशियन वैदिक ब्राह्मणधर्म के मोह माया अंधविश्वास से बचेंगे वे सुखी होंगे अन्यथा उनकी हालत जाल में फंसी मछली जैसे होगी जो प्राण के लिए और मुक्ति के लिए छटपटाती है पर मुक्त होती नहीं , इसलिए सावधान रहो ब्राह्मण के बातों में न फंसे !
#धर्मविक्रमादित्य_कबीरसत्व_परमहंस
#दौलतराम
#जगतगुरू_नरसिंह_मूलभारती
#मूलभारतीय_हिन्दूधर्म_विश्वपीठ
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