#पवित्र_बीजक : #प्रज्ञा_बोध : #शब्द : ४२ : पण्डित शोधि कहो समझाई !
#शब्द : ४२
पण्डित शोधि कहो समझाई, जाते आवागमन नशाई : १
अर्थ धर्म औ काम मोक्ष कहु, कौन दिशा बसे भाई : २
उत्तर कि दक्षिन पूरब कि पश्चिम, स्वर्ग पाताल कि माहीं : ३
बिना गोपाल ठौर नहिं कतहूँ, नर्क जात धौं काहीं : ४
अनजाने को स्वर्ग नर्क है, हरि जाने को नाहीं : ५
जेहि डर से भव लोग डरतु हैं, सो डर हमारे नाहीं : ६
पाप पुण्य की शंका नाहीं, स्वर्ग नर्क नहिं जाहीं : ७
कहहिं कबीर सुनो हो संतों, जहाँ का पद तहाँ समाई : ८
#शब्द_अर्थ :
शोधि = खोज और परख कर लो ! माहीं = मध्य ! गोपाल = संसार का निर्माता , चेतन राम तत्व ! धौं = भला ! भव लोग = संसार के लोग ! पद = स्थान , स्वरूप !
#प्रज्ञा_बोध :
धर्मात्मा कबीर विदेशी यूरेशियन वैदिक ब्राह्मणधर्म के वेद मनुस्मृति आदि ब्राह्मणधर्म ग्रंथ की मान्यता चार आश्रम अर्थ धर्म काम और मोक्ष की कोरी कल्पना को कटाक्ष करते हुवे पूछते है हे ब्राह्मणों मुझे बताओ ये चार आश्रम किस दिशा में रहते है पूर्व पश्चिम उत्तर दक्षिण या ऊपर या नीचे या मध्य में उसी प्रकार विदेशी यूरेशियन वैदिक ब्राह्मणधर्म की बे मतलब की कल्पना स्वर्ग नरक को नकारते हुवे उन्हें इनका स्थान और पता पूछते है ! साफ है कबीर साहेब विदेशी यूरेशियन वैदिक ब्राह्मणधर्म के किसी भी धर्म ग्रंथ , मान्यता का नहीं मानते वे इनको हिंदू धर्म ग्रंथ और हिन्दू धर्म का चिंतन नहीं मानते यही नहीं कबीर साहेब ब्रह्मा को भी भगवान नहीं मानते ना वैदिक ब्राह्मणधर्म के लंपट लोगोंको ईश्वर और ईश्वर के अवतार !
कबीर साहेब बाहरी ईश्वर उसकी मूर्ति , उसके अवतार प्राण प्रतिष्ठा आदि को भ्रामक और कोरी कल्पना कह कर खारिज करते है और केवल एक चेतन राम जो संपूर्ण विश्व में घट घट में मानव में स्वयं जीव रूप में है उस चेतन राम तत्व को ही मानते है जो निराकार निर्गुण अविनाशी तत्व है ! और जीव अर्थात पृथ्वी के सांसारिक प्राणी केवल अपने कार्य के कारण कुशल या अकुशल अच्छे या बुरे मोह माया इच्छा ग्रस्त अधार्मिक कार्य के कारण यही जीवन में खुद सुख या दुख भोगता है यही शांति या अशांति की मानसिक स्थिति में जीता है और ना बाहर काई स्वर्ग है ना नर्क यही बात कबीर साहब यहां समझाते है और कहते है भाई विदेशी यूरेशियन वैदिक ब्राह्मणधर्म छोड़ो वो आपको सही धर्म सही सुखदाई धर्म नहीं बता रहे हैं क्यू की वो उसे जानते ही नहीं !
हमारा मूलभारतीय हिन्दूधर्म ढोंगी ब्राह्मण धर्म की स्वर्ग नर्क कल्पना को नहीं मानता जिस का वो डर दिखा कर सामान्य लोगोंको डराते है और मरणोत्तर स्वर्ग नर्क के डर के ऊपर अपनी झोली भरता है होम हवन पाठ पूजा कराकर मोटी रकम दक्षिणा के नाम से ऐंठता है !
कबीर साहेब जन्म मृत्यु का रूप समझाते हुवे कहते है भाई आप अमर तत्व चेतन राम हो केवल जुड़ना टूटना है से विविध रूप घट में आते जाते रहते हो ! वही से जन्म है और वही मृत्यु का स्थान ! जहां के वहां समाना यही है पर बीच जीवन में सुख और दुख का कारण मोह माया के कारण अधर्म ही है ! अधर्म त्यागो वहीं निर्वाण है !
कबीर साहेब लोगों को निडर होने की सिख देते है साथ साथ ये भी बताते है कि जैसा करोगे वैसा फल इसी जन्म में इसी धरती पर मिलेगा इस लिऐ माया मोह की अधार्मिकता त्याग कर मूलभारतीय हिन्दूधर्म का शील सदाचार भाईचारा समता शांति अहिंसा आदि मानवीय मूल्यों पर आधारित सत्य सनातन पुरातन समतावादी मानवतावादी समाजवादी वैज्ञानिक दृष्टि का अपना मूलभारतीय हिन्दूधर्म का पालन करो और सुख पावों , दुखो से मुक्ति पावों यही निर्वाण है !
#धर्मविक्रमादित्य_कबीरसत्व_परमहंस
₹दौलतराम
#जगतगुरू_नरसिंह_मूलभारती
#मूलभारतीय_हिंदूधर्म_विश्वपीठ
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