#पवित्र_बीजक : #प्रज्ञा_बोध : #शब्द : ३१ : हंसा संशय छूरी कुहिया !
#शब्द : ३१
हंसा संशय छूरी कुहिया, गइया पीवै बछरुवै दुहिया : १
घर घर सावज खेले अहेरा, पारथ ओटा लेई : २
पानी माहि तलफि गई भौंभरी, धुरि हिलोरा देई : ३
धरती बरसे बादर भीजे, भीट भये पौराऊ : ४
हंस उड़ाने ताल सुखाने, चहले बिंदा पाऊ : ५
जौलौं कर डोले पगु चालै, तोंलौं आश न कीजै : ६
कहहिं कबीर जेहि चलत न दिसे, तासु बचन का लीजै : ७
#शब्द_अर्थ :
हंसा = जीव, हंस ! कुहिया = कत्ल ! गइया = गाय , माया ! बछरुवै = बछड़ा, जीव ! घर घर = घट घट ! सावज = पशु ! पारथ = पारधी, शिकारी ! ओटा = परदा ! पानी = जल ! भौंभरी =पानी का बवंडर ! धूरि = धूल, सोच ! धरती = बुद्धि ! बादर = बादल ! भीट = टीला ! पौराऊ = तैरने वाला ! हंस = जीव ! ताल = तालाब , शरीर ! चहले = कीचड़ , माया ! बिंदा = फसाना ! पाऊ = पैर !
#प्रज्ञा_बोध :
कबीर साहेब कहते है भाइयों आप वो चेतन राम हो जो परम शुद्ध हो जैसे हंस बेदाग होता है , हर मानव में चेतन राम है जो परख कर सकता है जिसे हम नीर क्षीर की पहचान कहते है , मोती चुगना कहते है ! इस हंस रूपी मानव को संशय में मत उलझने दो उसके विवेक करने की जन्म जात प्रवृत्ति का ग़ला मत घोटो , बुद्धि का उपयोग करो ! जीव और माया जैसे गाय और बछड़ा है , गाय बछड़े का दोहन करे तो उसे आप क्या कहोगे ? ये तो उल्टी रीत हुई ! जिसका शिकार करना चाहिए वहीं अगर शिकारी का शिकार करे तो क्या कहोगे ? ये तो उल्टी रीत हुई ! पानी में पानी चक्र बनाता है और उसका लहर किनारे आती है पर क्या आपने किनारे की लहर से बीच तालाब में पानी का बवंडर बनते देखा है ? नहीं ना यहाँ सब उल्टा हो रहा है ! बारिश आकाश से जमीन पर बरसती है , आकाश की तरफ उल्टी दिशा में नहीं होती पर यहां तो उल्टा हो रहा है !
कबीर साहेब कहते है भाइयों जीव से माया की उत्पत्ति हुई है जीव यानी चेतन राम परमात्मा उसका बाप है , पिता है जैसे मानव ही माया का पिता है पर दुर्भाग्य देखिए अज्ञान के कारण माया ही अपने निर्माता का शोषण कर रही है , तैराकी राम ही माया की कीचड़ में फंस फस गया है !
कबीर साहेब कहते है भाइयों इस सृष्टि को चेतन राम को जीव को समझो उसके लिए पांच इंद्रिय और छटा ज्ञान इंद्रिय विवेक दिया है उसका उपयोग करो विदेशी यूरेशियन वैदिक ब्राह्मणधर्म और तुर्की धर्म के सुनी सुनाई अति रंजीत बातों में ना आवो , अपना मूलभारतीय हिन्दूधर्म अनादि काल से परख करो, विवेक करो कि शिक्षा देता रहा है ! मानव को सद्बुद्धि प्रज्ञा बोध की शक्ति दी है उसका उपयोग जब तक शरीर काम कर रहा है हाथ पर चल रहे है , इंद्रिय काम कर रहे है उसका विवेक से ईस्तेमाल करो , फालतू वैदिक ब्राह्मणधर्म का कोरा ज्ञान अधर्म विकृति से बचो अपने मालिक आप हो , विवेक भी आप को ही करना चाहिए यह प्रज्ञा बोध कबीर साहेब यहां देते हैं !
#धर्मविक्रमादित्य_कबीरसत्व_परमहंस
#दौलतराम
#जगतगुरू_नरसिंह_मूलभारती
#मूलभारतीय_हिन्दूधर्म_विश्वपीठ
No comments:
Post a Comment