Thursday, 24 October 2024

Pavitra Bijak : Pragya Bodh ; Shabd : 41 : Pandit Dekhau Man Me Jani !

#पवित्र_बीजक : #प्रज्ञा_बोध : #शब्द : ४१ : पण्डित देखहु मन में जानी ! 

#शब्द : ४१ 

पण्डित देखहु मन में जानी : १
कहु ध्यौं छूति कहाँ से उपजी, तब ही छूति तुम मानी : २
नांदे बिंदे रुधिर के संगे, घटही में घट सपचै : ३
अष्टकँवल होय पुहुमी आया, छुति कहाँ ते उपजै : ४
लख चौरासी नाना बहु बासन, सो सब सरि भौं माटी : ५
एकै पाट सकल बैठाये, छूति लेत द्यों काकी : ६ 
छूतिहिं जेंवन छूतिहिं अंचवन, छूतिहिं जगत उपाया : ७
कहहिं कबीर ते छूति विवर्जित, जाके संग न माया : ८

#शब्द_अर्थ : 

धौं = भला ! छूति = छुआछूत , अस्पृश्यता !  नादे = प्राणवायु ! बिन्दे = वीर्य ! रुधिर = रक्त !  घटही में  = मां के गर्भ में ! घट = शरीर !  सपचै = एकता !  अष्टकँवल = कमल जैसा बेदाग शुद्ध !  पुहुमी = पृथ्वी , धरती ! बासन = बर्तन ,  शरीर ! पाट = जगह !  जेंवन = भोजन ! अंचवन = पानी! उपाया = उत्पन्न ! माया = विषय  मोह आसक्त ! 

#प्रज्ञा_बोध : 

धर्मात्मा कबीर कहते हैं भाईयो विदेशी यूरेशियन वैदिक ब्राह्मणधर्म के लोग उनके देश यूरेशिया से हिंदुस्तान में उनका विदेशी यूरेशियन वैदिक ब्राह्मणधर्म ले आये , वर्णवाद , जातिवाद , उचनिच, भेदाभेद,अस्पृश्यता विषमता , छुआछूत  आदि अमानवीय विचार ले आये ! ना इन्हें धर्म कहा जा सकता है न संस्कृति ! कबीर साहेब इस को अधर्म और विकृति पागलपन मानते है और विदेशी यूरेशियन वैदिक ब्राह्मणधर्म के पाण्डे पुजारी , उनके धर्माचार्य , शंकराचार्य मठाधीश आदि से पूछते है हे पंडितों ब्राह्मणों छुआछूत का जन्म उदय कैसा हुआ बतावो ? 

कबीर साहेब कहते हैं जब सभी मानव का जन्म एक जैसे ही मां के पेट से होता है , एक जैसे बाप के वीर्य से होता है , एक जैसे मां के गर्भ में पलते है और सब में एक जैसा शरीर मांस हाड़ मज्जा रक्त है और एक जैसा स्वास लेते है एक ही प्राण वायु सब के सांस में जीवन बनकर बहता ही भोजन और पानी भी सभी एक जैसे ही करते है पीते है और तो और मृत्यु पर सब इसी धरती की मिट्टी में मिल जाते है और उसी मिट्टी से सभी जीव जन्तु प्राणी पक्षी वृक्ष वेली लाखों  तरह की योनियां से और जीवन मृत्यु के फेरे से गुजरने के बाद बड़े सौभाग्य से मानव जन्म लेता है और मां के पेट से   कमल जैसा खिलता है तब बतावो ब्राह्मणों वो अशुद्ध , अस्पृश्य कैसे हो गया ?

कबीर साहेब विदेशी यूरेशियन वैदिक ब्राह्मणधर्म और मूलभारतीय हिन्दूधर्म को अलग अलग मानते है ! मूलभारतीय हिन्दूधर्म में ना वर्ण है ना जाति ना वर्ण जाति वाद , ना उचनिच ना विषमता ना कोई ब्राह्मण ना कोई शुद्र अस्पृश्य सब समान एक जैसे मानव ! 

फिर ये छुआछूत अस्पृश्यता विषमता विदेशी वैदिक यूरेशियन ब्राह्मणधर्म के पांडे पुजारी क्यू फैला रहे है उसका कारण भी बताते है , कबीर साहेब कहते है इन ब्राह्मणों का उद्देश अपने को श्रेष्ठ बताना है सब का मालिक बनना है सब सत्ता धन संपत्ति दौलत बटोरना है ये लोग मोह माया इच्छा तृष्णा ग्रस्त है , अधमी विकृत है यही समाज और राष्ट्र से दूर रखने के लायक है क्यू की ये असभ्य , असंस्कृत लालची प्रवृत्ति के लोग मानवता के शत्रु है , पृथ्वी के भार है ! 

#धर्मविक्रमादित्य_कबीरसत्व_परमहंस 
#दौलतराम 
#जगतगुरू_नरसिंह_मूलभारती 
#मूलभारतीय_हिन्दूधर्म_विश्वपीठ 
#कल्याण, #अखंडहिंदुस्थान, #शिवसृष्टि

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