Tuesday, 30 September 2025

Pavitra Bijak : Pragya Bodh : Basant : 11 : 6

पवित्र  बीजक  : प्रग्या  बोध  :  बसंत  : 11 : 6

बसंत  : 11 : 6 

जो  जेहिँ  मन  से  रहल  आय , जिव  का  मरण  कहु कहाँ  समाय  ! 

शब्द  अर्थ  : 

जो  जेहि  = जो  जैसा  , अगर ! मन  मे  रहल  आय  = मन  चाहे  जैसा  हो  ! जीव  का  मरण  = सजीव  का  मृत्यू  ! कहु   कहाँ  समाय  = मृत्यू  कहाँ  रहता है  !

प्रग्या   बोध  : 

परमात्मा  कबीर  बसंत  के  इस  पद  मे  सजीव  का  शरीर  और  मन  को  स्पस्ट  करते  हुवे  बताते  है  भाईयों   इस  शृष्टी  का  निर्माता  रचियता  , परमपिता  चेतान  तत्व  राम  है  और  सारी  चर  अचर  दृष्य  अदृश्य  वस्तु  उसी  की  निर्मिती  है  और  उसी मे  समाहित  होती  है  विलिन  होती  है  उसी  से  उदय  और  उसी  मे  समापन  होता  रहता है  चेतन   तत्व  राम  निराकार  निर्गुण  अविनाशी   अमर अजर  सार्वभौम  है  ! मन  की  निर्मिती  भी  मानव  या  सजीव  के  ग्यानेन्द्रिय  से  ही  हुवी  है  जीव  का  मृत्यू  यानी  मन  का  भी  समापन  है  और  ग्यानन्द्रिय  से  मन  की  उत्पती  होने  के  कारण  मन   मे  जो  चाहत  इच्छा  मोह  माया  तृष्णा  का  निर्मांण  भी  मानव या  जीव   के  बस मे  होता  है  गलत  इच्छा  अधर्म  है  तो  अच्छी  इच्छा  धर्म  है  जो  शिल  सदाचार  है  इस  लिये  अच्छा  और  बुरे  का  चयन  और  उसके  परिनाम  यानी  फल  भी  जीव  ही  निर्धारित  करता   है  चाहे  वे  ततकाल  हो  य़ा  कालांतर  से  !  

जहाँ  चेतन  तत्व  परमात्मा  राम  जहाँ  काबिर साहीब  विराजमान  है  वह  मोक्ष  की  अवस्था  सब  के  लिये  संभव  है  और  वो  मार्ग  भी  कबीर  साहेब  स्वायम  उनकी  वाणी  पवित्र  बीजक  मे  बताते  है  जो  शिल  सदाचार  भाईचारा  समाता  ममाता  का  सत्य  धर्म  विचार  मुलभारतिय  हिन्दूधर्म  है  ! 

कबीर  साहेब  मन  के  उत्पन्न  विकार  से  दुर  रहने की  शिक्षा  देते  है  ! 

धर्मविक्रमादित्य   कबीरसत्व परमहंस 
दौलतरां
जगतगुरू   नरसिंह  मुलभारती 
मुलभारतिय  हिन्दूधर्म  विश्वपीठ 
कल्याण , अखण्ड  हिन्दुस्तान , शिवशृष्टी

Monday, 29 September 2025

Pavitra Bijak : Pragya Bodh : Basant : 11 : 5

पवित्र बीजक : प्रग्या  बोध  : बसंत  : 11 : 5

बसंत  : 11 : 5

हमरे  बलकवा  के  इहै  ग्यान  , तोहरा  को  समुझावै आन !

शब्द  अर्थ  : 

हमरे  बलकवा  = हमे  बालक  , बच्चा , नादान कहते है  !    इहै  ग्यान  = पंडित  का  ग्यान  ! तोहरा  = तुम्हे ! को  समुझावै  = को  समजाने ! आना  = आया  ! 

प्रग्या  बोध  : 

परमात्मा  कबीर  बसंत  के  इस  पद  में  कहते  की  बिदेशी  यूरेशियन  वैदिक  ब्राह्मणधर्म   के  पांडे  पूजारी , संकारचार्य खुद  को  बडे  और  श्रेष्ठ  बताते  ग्यानी  बताते  है  और  दुसारोंको  बच्चे  बच्चे  कहते  है  , नादान  मूर्ख  अग्यानी  कहते  है  पर  मै  कहता  हूँ  ब्राह्मण  पांडे  पूजारी  संकारचार्य  आदी  वैदिक  ब्राह्मण  धर्म  के  पांडे  खुद  मूर्ख  अग्यानी  और  नादान  है  निच  है  क्यू  की  वे  वेद  और  भेद  मनुस्मृती   ,जाती  वर्ण  ऊचनीच  भेदाभेद  अस्पृष्यता  विषमता  छुवाछुत  आदी  अधर्म  और  विकृती  का  पालन  करते  है  ! कबीर  साहेब  कहते  है  हम  नही  वो  विदेशी  यूरेशियन  वैदिक  ब्राह्मण  लोग  मूर्ख  अग्यानी  निच  है  ! हमारा  धर्म  मुलभारतिय  हिन्दूधर्म  तो  शिल  सदाचार  भाईचारा  समाता  ममता  विश्व  बंधुत्व  और  मानव  कल्याण  का  सनातान  पुरातन  आदिवाशी आद्य   धर्म  है  जो  सिंधु  हिन्दू  संस्कृती  का  निर्माता  है  विश्व  का  प्रथम  नागरी  लोकधर्म  है  ! हमे  इस  पर  गर्व  है  क्यू की  यही  सत्यधर्म  है  ! 

धर्मविक्रमादित्य कबीरसत्व परमहंस 
दौलतरां 
जगतगुरू  नरसिंह मुलभारती 
मुलभारतिय  हिन्दूधर्म  विश्वपीठ 
कल्याण  ,अखण्ड  हिन्दुस्तान  , शिवशृष्टी

Sunday, 28 September 2025

Shikka !

#शिक्का_मोर्तब 

गांडूँगिरी  वर  शिक्कामोर्तब  झाले 
जेव्हा  #खैरलांजी  महाराष्ट्री   घडले 
नग्नधिंड  शीवीगाल  मारहाण  झाले  
बलात्कार गुप्तांगात  डांडू   घूसडले  !

अरे  काय  ही  गांडूँगिरी   भावांनो 
साजरी  करता  ही  दसरा  दिवाली 
फेकल्या तुकड्या  वर  जीणे  तुमचे
आहे  का  आज  समाजास   वाली   ? 

#जनसेनानी

Pavitra Bijak : Pragya Bodh : Basant : 11 : 4

पवित्र  बीजक  : प्रग्या  बोध : बसंत  : 11 :  4

बसंत  : 11 :  4

बहु  विधि  परजा  लोग  तोर , तेहि  कारण  चित  ढीठ मोर  ! 

शब्द  अर्थ  : 

बहु  विधि   = बहुत  प्रकार  के  ! परजा  लोग  = प्रजा  , राजा  ! तोर  = तेरे  संसार  में  ! तेहि  कारण  = उस  कारण , इस  लिये  !  चित  =  मन  ! ढीठ मोर  =  ज्यादा लालची  ! 

प्रग्या  बोध  : 

परमात्मा  कबीर  बसंत  के  इस  पद  में  संसार  की  विविधता  विविध  प्रकार  के  लोग  धन्धा  व्यवसाय  राज्यकर्ते  इनके  स्वाभव  से  देखा  जाता  है  की  सभी  लोग  अधिक  अधिक  श्रीमंत  रइस  होना  चाहते  है   ! वर्ण  जाती  मे  बटा  समाज  एक  दुसारे को कमजोर करने  मे  लगा  है  और सत्य हिन्दू धर्म को  भूल  गया  है   और  उनका  चंचल  मन  बहुत  हटी  और  मेरी  ही  मानो  प्रवृत्ती  का बन  गया  है  ! विदेशी  यूरेशियन  वैदिक  ब्राह्मण  धर्म  के  कुसंगत  में  और  पंडे  पंडित  ब्राह्मण  के  लालची   वृत्ती  ने  समाज  को  अधर्मी  बना  दिया  लूट  और  झूठ  इसे  ही  लोग  ज़िने  का  सही  मार्ग  और  धर्म  समझ  रहे  है  !  इस  को  देख  कर  मेरा  मन  बडा कठौर  और  संवेदनाशिल  बन  गया  है  इसे  दुरुस्त  करना  अत्यावश्यक  है  हमे  फिर  से  अपना  मुलभारतिय  हिन्दूधर्म  जो  शिल  सदाचार  भाईचारा  samata ममता  का  धर्म  है  उसे  पुनर  प्रस्थापित  करना  होगा  ! मुलभारतिय  हिन्दूधर्म  और  विदेशी  यूरेशियन  वैदिक  ब्राह्मणधर्म  अलग  अलग  है  !

धर्मविक्रमादित्य कबीरसत्व परमहंस 
दौलतरां
जगतगुरू  नरसिंह  मुलभारती 
मुलभारतिय  हिन्दूधर्म  विश्वपीठ 
कल्याण , अखण्ड  हिन्दुस्तान  , शिवशृष्टी

Saturday, 27 September 2025

Pavitra Bijak : Pragya Bodh : Basant : 11 : 3

पवित्र  बीजक  : प्रग्या  बोध :  बसंत  : 11 : 3

बसंत  : 11 : 3

बहु  विधि  भवने  लागु  भोग  , एसो  नग्न  कोलाहल करत  लोग  ! 

शब्द  अर्थ  : 

बहु  विधि  = अनेक  प्रकारके  अच्छे  बुरे   कर्म  ! भवने  = ईमारत  , भवन , घर  ! लागु  भोग  = हासिल  करना !  एसो  नग्न  = बेशर्म  ! कोलाहल  = करकश  आवाज  ! करत  लोग = करते है  लोग  ! 

प्राग्या  बोध  : 

परमात्मा  कबीर  बसंत  के  इस  पद  में  लोग  बडे  लालाची  माया  मोह  भरे  है  एक  मकान  से  उनका  दिल  नही  भरता  वे  अनेक  बडे  बडे  महल  सही  गलत  रास्ते  से  खडे  करते है  पुरी  भुमी  पर  अपना  कब्जा  चाहते  है  इनकी  चाहत इच्छा  की  कोई  सीमा  नही !  धन  संपत्ती  की  हाव  और  विलासी  जीवन  यही  अधिकतर  लोगोंकी  इच्छा  है  और  नर्तकी  वेश्या  नाच  गाना  मदिरा  हत्या  बलातकार  , झूठ  फरेब  दिखावा  ही  लोगोंका  जीवन  बन  गया  है  ! पांडे  पंडित  बडे  बडे  लोगोंसे  कोलाहल  भरे  य़ग्य  , होम  हवन य़ग्या  बली का  आयोजन  कर  लोगोंको  फुसला  बहला  रहे  है  सब  दिखावा  है  अधर्म  है  विकृती  भरे  आयोजन  है मोनोरजन  है  धर्म  शिल  सदाचार  परोपकार लोक  कल्याण  सब  कुछ  खो  गाया  है !  समाज  की बडी  दुखद  अवस्था   है  ! 

धर्मविक्रमादित्य  कबीरसत्व परमहंस 
दौलतराम 
जगतगुरू  नरसिंह  मुलभारती 
मुलभारतिय  हिन्दूधर्म  विश्वपीठ 
कल्याण  , अखण्ड  हिन्दुस्तान , शिवशृष्टी

Sankalp Din !

#एक_मासुम_संकल्प_का_दिन  !

एक  मासुम  संकल्प  का  दिन  
मुलभारतिय  विचार  का  दिन 
मुलभारतिय  हिन्दुत्व  का   दिन  
मुलभारतियसत्ता  लानेका  दिन   !

ये  संकल्प   नेटीविस्ट   का 
ये  संकल्प  डीडी  राऊत  का 
ये  संकल्प  दौलत  राऊत  का 
संकल्प  दौलत  डोमाजी  का  !

उन्निस  सौ  सत्तर  का   दिन 
एक  जनवरी  साम  का  दिन  
नया  साल   का   नया  दिन  
नया सवेरा  नई  राह  का  दिन  ! 

नया  विचार  का  नया  दिन 
मुलभारतिय  विचार  का  दिन 
मुलभारतिय  हिन्दुत्व  का  दिन  
मुलभारतिय  लोगोंका  का  दिन  ! 

काबिरके  बीजक  का  दिन 
हिन्दू  कोड  बिल  का  दिन  
मुलभारतिय  धर्म  का  दिन 
हिन्दूधर्म   विश्वपीठ  का  दिन  ! 

ये  नेटीविजम  का  संकल्प  दिन
ये  नेटीव  हिन्दुत्व  का  उदय  दिन  
ये  नेटीव  पिपल्स  पार्टी  का  दिन  
ये  विश्व  नेटीविजम  का  दिन   ! 

ये  मासुम  संकल्प  का  दिन 
मासुम  आदिवाशी  का  दिन 
जल  जमिन  जंगल  हक  का  दिन 
स्वधर्म  स्वदेश  स्वराज्य  का  दिन  !

एक  जनवरी  नेटीवीज्म  का  दिन  
नव  अगस्त  विश्व  आदिवशी  दिन  
पंधरा अगस्त  देश  स्वातंत्र  दिंन  
चौबिस  अगस्त  नेटीवीस्ट  दिन  !

#नेटीव_रूल_मुव्हमेंट

Pavitra Bijak : Pragya Bodh : Basant : 11 : 2

पवित्र  बीजक  : प्रग्या  बोध  :  बसंत  : 11 : 2

बसंत  : 11 : 2

चोवा  चन्दन  अगर  पान  , घर  घर  सुमृति होत  पुरान  ! 

शब्द  अर्थ  : 

चोवा  = खारिक , सूपारी , फल  मेवा , मिठाई  ! चन्दन  = चन्दन  लकडी  का  माथे  पर  तिलक  , लेप   ! अगर = अगर  के  फुल  , सुवासिक  धुप  ,अगरबत्ती ! पान = नागवेल  का  पान , ज़िसे खाया  जाता  है  ! घर  घर  = हर  तरफ   ! सुमृति  = वेद  , मनुस्मृती ,  अठराह  पुरना , सत्य  नारायण  की  पूजा , होम  हवन आदी  विदेशी  यूरेशियन  वैदिक  ब्राह्मणधर्म  की  पांडे  पूजारी  द्वारा  पूजा  ! 

प्रग्या  बोध  :  

परमात्मा  कबीर  बसंत  के  इस  पद  में  विदेशी  यूरेशियन  वैदिक  ब्राह्मणधर्मी  पांडे  पूजारी  अपना वेद  और  भेद  , मनुस्मृती   और  जातिवाद  वर्णवाद ऊचनीच  भेदाभेद   अस्पृष्यता  विषमाता  शोषण  अमानविय  विचार  अधर्म  कुधर्म  विकृती  होम  हवन  ब्राह्मण  दान  दक्षिना  के  प्रचार  प्रसार  के  लिये  सारे  हथ  अपना  रहे  है  घर  घर  जाकर  असत्य  नारायण  , भागवात  पुरान , अठराह   पुरान पाठ  , सप्ता  हप्ता ,  अखण्ड  पाठ  , चंडी  य़ग्य  , नागबाली  य़ग्य  आदी  विविध  मार्ग  से  हर  ब्राह्मंण  उनका  अधर्म  और  विकृती  फैलाने   में  जूटा  हुवा  है   और  पूजा  मे  फल  मेवा  खारिख  सूपारी  ,दान  दाक्षिना भी  उपरसे  ले  रहा  है  ! कबीर  साहेब  यह  बात  सावधान  करने के  लिये  है  मुलभारतिय  हिन्दू  धर्मी  भाईयों  बहनो  सावधान  हो  जावो  ये  विदेशी  ब्राह्मण  धर्मी   पंडे  पूजारी  तुम्हे  लूट  रहे  है  , जाती  वर्ण  ऊचनीच  में  बाट  रहे  है  और  अपना  अधर्म  विकृती  फैलाकर  तुम्हे  अधर्म  के  जंजाल  में  फसा  रहे  है  ! इन  को  छोडो  , वैदिक  ब्राह्मणधर्म   छोडो , अपना  सनातन पुरातन  आदिवाशी  मुलभारतिय  लोकधर्म   शिल  सदाचार  भाईचारा  मानवता  विश्वबंधुत्व  वैग्यानिक  दृष्टी  का  धर्म  का  अपना  मुलभारतिय  हिन्दूधर्म  का  पालन  करो  , वैदिक  ब्राह्मणधर्म  और  मुलभारतिय  हिन्दूधर्म   अलग  अलग  है  ! 

धर्मविक्रमादित्य  कबीरसत्व परमहंस 
दौलतरां 
जगतगुरू  नरसिंह  मुलभारती 
मुलभारतिय  हिन्दूधर्म  विश्वपीठ 
कल्याण , अखण्ड  हिन्दुस्तान , शिवशृष्टी

Thursday, 25 September 2025

Jagat Janani Maa Loi !

#जगत_जननी_माँ_लोई  ! 

माँ  लोई  
नही  है  दुसरी  कोई 
रोज  सबेरे  उठती 
चरखे  पर  सुत  कातती 
पूँगारिया  में  भरती 
घर  की  सफाई  करती 
आँगण  घर  बुहारती  !

कबीर  का  आसन 
बैठक  की  चटाई 
हथकरधा  की  देखभाल 
सब   का  खाना  रसोई 
मेहमानो  का  आवभगत 
पानी  गुड  की  तजबीज 
और  बिना  व्यवधान  से 
सुनती  कबीर  के  दोहे  
और  अनमोल  धर्म  विचार  ! 

कमल  कमला  बेटी  बेटे 
न  बोल  सुने  कभी  झुटे 
बकरी   कबीर  के  घर  की 
चारा  इधर  उधर  का  चरती 
जो  बिक  जाये  शेला  कबीर  का 
घर  गृहास्थी  उसी  से  चलाती  !

जब  आते  रवीदास  दादू  घर 
और  काशी  के  नरेश  महाराजा
सुनने  अनमोल  कबीर  विचार 
शिल  सदाचार  भाईचारा  समता
रहते  काबिर  के  यही  विचार   ! 

वर्ण  जातिवादी अस्पृष्यता  विषमाता 
नही  मानते  कबीर  पत्थर  के  विधाता
माया  मोह  अहंकार  रहित  सूचिता  
यही  रहाता  बीजक  का  धर्म  संदेशा  ! 

लोई  कमल  कमला  सब  सुनाते  
वही  बात  न  हो  कबीर  दोहराते 
सब  मिलकर  रात  में  अलख  जगाते
लोगोंको  मुलभारतिय  हिन्दूधर्म  बताते  ! 

एक  दिन  एैसा  आया 
देश  से  कबिला  जब  आया 
लोई  ने  दाना  अन्न  का  
न  घर  में  पाया 
अब  तक  न  कोई  भूका 
धर्मात्मा  कबीर  के  घर  से  गया  !

लोई  गई  दुकान  पर  
ले  आई  परचुन  और  अनाज 
लालाने  कहाँ   रात  को  आना 
पर  कबीर  को  न  बताना  ! 

रात  हुवी  बारिश  भारी 
लोई   बैठी  जाने  कर  त्यैयारी 
कबीर  को  बताई  बात  पुरी 
परमात्मा  ने  लोई  की  नजर  ऊतारी  !

कबीर  चले  भरे  बारिश  
लाला  के  घर  लोई  काधे  बिठाये 
परमात्मा  कबीर  मन  ही  मन  मुस्कुराये 
माँ  लोई  को  लाला  के  घर  ऊतारे  ! 

जगत  जननी  माँ  लोई  
जब  ऊतारी   निचे  
लाला  अचंभीत  हुवा 
अपनी  सगी  माँ   सामने  देखे  !

#दौलतराम

Pavitra Bijak : Pragya Bodh : Basant : 11 : 1

पवित्र  बीजक :  प्रग्या  बोध  :  बसंत  : 11 : 1

बसंत  : 11 : 1

शिवकाशी  कैसे  भई  तुम्हारि , अजहूँ   ही  शिव  लेहु  विचारि  ! 

शब्द  अर्थ  : 

शिवकाशी  =  वाराणशी  , काशी , उत्तर  प्रदेश  का  गंगा  किनारे  का  प्रसिद्ध  नगर  ! कैसे  = किस  प्रकार  ! भई  = हुवी  ! तुम्हारि  = पंडो  की  ! अजहूँ ही  = आज  ही  !  शिव  =  आदिवाशी भूतनाथ , शंकर  , महादेव  , लोकनाथ , पशुपतीनाथ   आदी  नामोसे  जानेवाला  मुलभारतिय  हिन्दूधर्मी  महापुरुश  !  लेहु विचारि  = जानकारी  लेते  है  पुछते   है  ! 

प्रग्या  बोध  : 

परमात्मा  कबीर  बसंत  ग्यारह  के  प्रथम  पद  में  ही  काशी  अर्थात  वाराणशी  जो  गंगा  किनारे  बसा मुलभारतिय  हिन्दूधर्मी , बौधधर्मी  जैनधर्मी आदी  का  एक  पवित्र  धार्मिक स्थल  माना  जाता  है  और  विश्व  का  पहला  बडानगर  माना  जाता  है  ज़िसके  किनारे  हिन्दू  लोग  मृत्यशरीर  दाह  संस्कार  कारते है   गंगा  अस्थी  विसर्जित  करने  भारत  भर  से  आते  है  जहाँ  बुद्ध  ने  पहला  धम्मचक्र  प्रवर्तित  किया  , राजा  राम  के  पूर्वज  ने  दाह  संस्कार  मे  सेवा  दी  ज़िस  नगरी  की  मिलकियत  मुलभारतिय  राजा डोंम  की  थी  जो  निराकार  निर्गुण   चेतन   तत्व  ग्यानी  थे  और  ऊँहोने  ही  ये  ग्यान  विदेशी  वैदिक  ब्राह्मणधर्मी  बालाक  आदी  शंकाराचार्य  को  दिया उस  डोम  राजा  ने  ही  ग्यानपिंड  शिव  की  स्थापना  काशी  मे  की  थी  वो  मंदिर वो  स्थल   वो  घाट  वो  डोंम  शिव  की मोक्षवाली  मानवकल्याण  वाली  नगरी  ज़िसे  शिवकाशी  भी  कहाँ  जाता  है  वहाँ  विदेशी  यूरेशियन  वैदिक  होमहवन  करने  वाले  गाय  घोडे  की  बली  देनेवाले  और  उनके होम  अग्नी  से  उनके  देवी  देवता  सशरिर  बलातकारी  देव  इन्द्र , सोम  , रुद्र , ब्रह्मा  प्रगट  होते  है  इच्छित वरदान देते  है  कहने  वाले  देश  के  दुष्मन  जाती  वादीवर्ण   वादी  छुवाछुतवादी  अस्पृष्यतावादी  विदेशी  पांडे  पुजारी  कैसे  घूसे  यह  जानना जरूरी  है  कहते  है  परमात्मा  कबीर  ! इन  विदेशी  लोगोने  जो  वाराणशी  काशी  के  मन्दिर  मठ  आदी  पर  अवैध  कबजा  किया  है  उसे  मुक्त  करो  यही  बात  कबीर  साहेब  यहाँ  इंगित  करते  है  ! 

धर्मविक्रमादित्य  कबीरसत्व  परमहंस 
दौलतरां
जगतगुरू  नरसिंह  मुलभारती 
मुलभारतिय  हिन्दूधर्म  विश्वपीठ 
कल्याण , अखण्ड  हिन्दुस्तान  , शिवशृष्टी

Wednesday, 24 September 2025

Pavitra Bijak : Pragya Bodh : Basant : 10 : 9

पवित्र  बीजक  : प्रग्या बोध  : बसंत  : 10 : 9

बसंत  : 10 : 9

चंचल  मन  के  अधम  काम , कहहिं  कबीर  भजु  राम  नाम  ! 

शब्द  अर्थ  : 

चंचल  मन  = अस्थिर  मन ! अधम  काम  = धर्म  विरुद्ध  कार्य  ! कहहिं  कबीर  = कबीर  कहते  है  ! भजु  राम  नाम  = चेतन  तत्व  परमात्मा , स्वराम ! 

प्रग्या  बोध  : 

परमात्मा  कबीर  बसंत दस  के  इस  अंतिम  पद  में  मानव  का  मन  जो  सभी  कार्य  को  प्रेरित  करता है  उसका  स्वभाव   बताते  हुवे  कहते  है  की  मानव  मन  बहुत  ही  चंचल  और  अस्थिर  होता  है  पल  पल  मे  यहाँ  वहाँ  भटकता  है  और  माया  मोह  लालच  झूठ  अहंकार  हत्या  आदी  किसी  भी  अधर्म  या  गलत  कार्य  को  वो  तब  तक  गलत  य़ा  अधर्म  नही  मानता  जब  तक  उसे  प्रग्या  बोध  का दर्शंन  नही  होता  यह  धर्म  ग्यान  तभी  प्राप्त   होता  है  जब  मानव  स्वराम  अर्थात  स्व  में  बसे  चेतन  तत्व  निराकार  निर्गुण  अमर  अजर  परमात्मा  राम  अर्थात  राम  के  विरुद्ध  मर्त्य  या  मरा  की  अवस्था विचार  मन   उत्पन्न  नही  होता !   जब  मानव  मरे  मानव  शरीर  को  देखता  है  तब  उसे  क्षणभर  के  लिये  खुद  भी  मर्त्य  या  मरण  को  प्राप्त  होने  वाला  है  यह  बोध  आता  है  वह  राम  या  परमात्मा  नही  तो  एक  सामान्य  मर्त्य  मानव  है  ये  ग्यान  को  स्वयम  में  स्वराम   ही  निर्मांण  कर  सकता  है  और  इस  के  लिये  शिल  सदाचार  का  धर्म  मार्ग मुलभारतिय  हिन्दूधर्म   मार्ग  के  शिवाय  कोई  रास्ता  नही  ! इस  शिल  सदाचार  का  धर्म  कबीर  साहेब  ने  फिर  से  प्रस्थापित  किया  ज़िसे  विदेशी  यूरेशियन  वैदिक  ब्राह्मण   अधर्म  और  विकृती  ने  आपनी  जाती  वर्ण  वादी  भेदभाव  विषमता   शोषण   अस्पृष्यता  छुवाछुत  अमानविय  वैदिक  मनुस्मृती  विचार  से  तहस  नहस  किया  था  और  अधर्म  को  धर्म  बता  रहे  थे  ! कबीर  साहेब  ने  सत्य  को  फिर  से  स्थापित  किया  ! 

धर्मविक्रमादित्य  कबीरसत्व परमहंस 
दौलतरां 
जगतगुरू  नरसिंह  मुलभारती 
मुलभारतिय  हिन्दूधर्म  विश्वपीठ 
कल्याण , अखण्ड  हिन्दुस्तान , शिवशृष्टी

Tuesday, 23 September 2025

Pavitra Bijak : Pragya Bodh : Basant : 10 : 8

पवित्र  बीजक  : प्रग्या  बोध  : बसंत  : 10 : 8

बसंत  : 10 : 8

सत्य  सत्य  कहैं  सुमृति  वेद , जस  रावण  मारेउ  घर  के  भेद  ! 

शब्द  अर्थ  : 

सत्य   सत्य  कहैं = सच  है  कहते  कहते  ! सुमृति   = स्मृती , मनु  स्मृती , विदेशी  यूरेशियान  वैदिक  ब्राह्मंण  धर्म  का  जाती  अस्पृष्यता  आदी  कानुन    ! वेद = विदेशी  यूरेशियन  वैदिक  ब्राह्मण  वर्ण  भेद  वादी  धर्म  ग्रंथ  !  जस  रावण  = जैसे  रावण  , रामायण का  वैदिक  ब्राह्मण   ! मारेउ  = मारा  गया  ! घर  के  भेद  = उसका  भाई  विभीषण  ने  भेद खोलने  के  कारण  ! 

प्रग्या  बोध  : 

परमात्मा  कबीर  बसंत  के  इस  पद  में  बताते  है  की   विदेशी  वैदिक  ब्राह्मणधर्म  के  स्मृती  , वेद  कानुन  और  धर्मग्रंथ  ने  ज़िस  प्रकार  देश  के  अन्य लोगोंको  निचा  , अछुत  , अस्पृष्य , शुद्र  आदी  कह  कर  अपमानित  किया  , प्रताडीत  किया  , शोषण  किया  वैसे  ही  वैदिक  धर्मी  रावण  ने  उसका  सगा भाई  विभिषण  को  अपमानित  किया   जो  रावण  को  अधर्म  त्यागने  और  धर्म  से  चलने की  बात  कारता था  वैसे  ही  मुलभारतिय  हिन्दूधर्मी  लोग  बार  बार  वर्ण  जाती  वादी  भेदभाव  ऊचनीच  अस्पृष्यता  वादी  छुवाछुत  वादी  शोषण  वादी  वेद  और  मनुस्मृती   के  विकृती अधमी  ग्रंथ   त्याग  कर  मुलभारतिय  हिन्दूधर्म  का  शिल  सदाचार  भाईचारा  समता  ममता  अहिंसा  विश्वबंधुत्व  और  विग्यानिक  दृष्टी  का  सनातन  पुरातन  आदिवाशी  मुलभारतिय  लोग  धर्मं  जो  विदेशी  यूरेशियन  वैदिक  ब्राह्मण  धर्मी  लोगोंके  आक्रमण  के  पूर्व  से  विद्दयामान  है  और  जग  विख्यात  सिंधुहिन्दू   गणराज्य , लोकशाही समाजवाद  का  पुरसकर्ता रहा  है  उसे  अपनाने  और  वैदिक  ब्राह्मणधर्म  त्यागने  की  बात  मुलभारतिय  हिन्दूधर्मी   करते रहे पर  उनकी बात  मानी  नही  गई  जैसे  रावण   उसके  भाई  विभीषण  की  बात  नही  मानी  और  द्रुस्ट  रावण  का  पतन  हुवा  वैसे  अब  विदेशी  यूरेशियन वैदिक  ब्राह्मण  धर्मी  लोग  पुरे  विश्व  मे  तिरस्कर्णीय  और  त्याज्य बन   गये  है  जैसे  रामायण  का  रावण ! 

धर्मविक्रमादित्य  कबीरसत्व परमहंस 
दौलतरां 
जगतगुरू  नरसिंह  मुलभारती 
मुलभारतिय  हिन्दूधर्म  विश्वपीठ 
कल्याण , अखण्ड  हिन्दुस्तान , शिवशृष्टी

Monday, 22 September 2025

Pavitra Bijak : Pragya Bodh : Basant : 10 : 7

पवित्र  बीजक : प्रग्या  बोध  :  बसंत  : 10 : 7

बसंत  : 10 : 7

शिव  माते  हरि  चरण  सेव , कलि  माते  नामा  जयदेव  ! 

शब्द  अर्थ  : 

शिव  माते  = शिव  मुलभारतिय  धर्म  पुरूष के  लिये  ! हरि  चरण  सेव  =  हरि  अर्थात  ज़िसने  सब  इच्छा का  हरण  कर  मुक्ती  मोंक्ष  पा  लिया  एसा  परमात्मा  चेतन  तत्व  राम  ! कलि  माते  = कलह के  कारण  ! नामा  जयदेव  = नामदेव  जयदेव  ! 

प्रग्या  बोध : 

परमात्मा  कबीर  बसंत  के  इस  पद  में  मुलभारतिय  धर्म  पुरूष  ज़िसे   मुलभारतिय   जैंन धर्म  आदी  मान्यता  नुसार आदीनाथ  ,पशुपतीनाथ ,सिंधु  हिन्दू  संसकृती की  मान्यया   अनुसार  प्रथम  राज्य  और  धर्म  अधिकारी  माना  गया  जो  नाग  अर्थात   नागरिक,  नागरी  गणराज्य   संस्कृती  के  संस्थापक  थे  वे  भी    मुलभारतिय  हिन्दूधर्म  का  तत्व  इच्छा  तृष्णा  मोह  माया  पर  अंकुश  उसका  हरण  कर  उसे  हरने  वाले  परमात्मा  चेतन   तत्व  राम  जो  निराकार  निर्गुण  सार्वभौम अजर  अमर   है  तृष्णा  विरहित  मोक्ष  की  स्थिती  में  विरामान  है  जो  मुलभारतिय  हिन्दूधर्म  का  शिल  सदाचार  के  मार्ग  से  ही  उसके  दर्शन  हो  सकते  है  उस  परमतत्व  हरि  को  शरण  गये  वैसे  ही  वारकारी  पंथ  के  संस्थापक  नामदेव  नामदेव  जयदेव भी  उसी  हरि  को  शरण  गये  ! 

धर्मविक्रमादित्य  कबीरसत्व  परमहंस 
दौलतरां
जगतगुरू  नरसिंह  मुलभारती 
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Sunday, 21 September 2025

Pavitra Bijak : Pragya Bodh : Basant : 10 : 6

पवित्र  बीजक  : प्रग्या  बोध :  बसंत  : 10 : 6

बसंत  : 10 : 6

माते  शुकदेव  उद्धव  अक्रूर , हनुमत  माते  लै  लंगूर ! 

शब्द  अर्थ  : 

माते  = के  लिये  , के  कारण  , अहंकारी  ! शुकदेव  उद्धव  अक्रूर   =  ये  भूतकाल  में  हुवे  ग्यानी  समझे  जाते  है ! हनुमत  = हनुमान  , बजरंग  बली , रामायण  का  पसिद्ध   पात्र  ! लै  लंगुर  = बन्दर  रूप  ! 

प्रग्या  बोध  : 

परमात्मा  कबीर बसंत  के  इस  पद  में  बताते  है  की  अहंकार  इच्छा  तृष्णा  माया  मोह  के  कारण  निर्मांण  होता  है  और  इस  अहंकार  से  बडे  बडे  ग्यानी  , शक्तीशाली और  धर्म  जानने  वाले  लोग  जैसे  शुकदेव  , अक्रूर  , उद्धव , पांडव  और  राजा  राम  के  महा  बलशाली  सेवक  हनुमंत  हनुमान  बजरंग  बली , केशरी  को  भी   अहंकार में हसने  के  कारण  भगवान  को  भी  लंगुर  का  चेहरा  लग  गया था !  इसलिये  माया  मोह  इच्छा  तृष्णा  से  बचो , शक्ती , धन  संपत्ती , ऊचे  पद  प्रतिष्ठा का  अहंकार  ना  करो  ! सब  का  गर्व  अहंकार  एक  दिन  परमात्मा  चेतन  राम  एक  दिन  हरता  ही  है  ! गर्व अहंकार  निरर्थक  है  !

धर्मविक्रमादित्य  कबीरसत्व परमहंस 
दौलतरां 
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New !

#नया !

कोई कहता है बुढा हो गया हूँ 
मै कहता हूँ नया हो गया हूँ 
पहले अल्लड था नादां था 
अब तर्जुबेकार सयाना हो गया हूँ !

#दौलतराम

Saturday, 20 September 2025

Pavitra Bijak : Pragya Bodh : Basant : 10 : 5

पवित्र  बीजक  : प्रग्या बोध : बसंत  : 10 : 5

बसंत  : 10 : 5

संसारी  माते  माया  के  धार , राजा  माते  करी  हंकार  ! 

शब्द  अर्थ  : 

संसारी  माते  = संसारी  लोगोंके  लिये  ! माया  के  धार  = माया  मोह तृष्णा  ग्रस्त   !  राजा  माते  = राजा  , बडे  लोग  रइस  के  लिये  ! करि  अहंकार  = अहंकार कारते है ! 

प्रग्या  बोध  : 

परमात्मा  कबीर  बसंत  के  इस  पद  में  बताते  है  की  संसार  के  लोग  मोह  माया  इच्छा  तृष्णा  ग्रस्त  है  उसके  गुलाम  है  ! जो  नही  है  उसे  पाने  के  लिये  कुछ  भी  करने  के  लिये  तय्यार  हो  जाते  चाहे  वो  जायज  हो  य़ा  ना  जयाज  , धर्म  हो  या  अधर्म  , उसके  परिणाम   की  भी  चिंता  नही  करते  है  वैसे  ही  राजा  ,श्रीमंत  लोग  भी  अधिक  हाव  इच्छा  तृष्णा  चाहत  के  गुलाम  है  और  उनके पास ज़रूरत  से  जादा  होने  के  कारण  अहंकारी  , झूठी  शान  अनावश्यक  शेखी  के  गुलाम  हो  जाते  है  ! इच्छा  के  रूप  दोनो  स्तिथी  चाहे  गरीबी  हो  या  अमिरी  संसारी  हो  या  संन्यासी  सब  को  अधर्म  की  तरफ  ले  जाती  है  ! कबीर  साहेब  अती  से  बचने  की  शिक्षा  देते  है  ! 

धर्मविक्रमादित्य  कबीरसत्व  परमहंस 
दौलतरां 
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Friday, 19 September 2025

Pavitra Bijak : Pragya Bodh : Basant : 10 : 4

पवित्र  बीजक  :  प्रग्या  बोध  :  बसंत  : 10 : 4

बसंत  : 10 : 4

मोलना  माते  पढ़ि  मुसाफ  , काजी  माते  दै  निसाफ  ! 

शब्द  अर्थ  : 

मोलना  = मुस्लिम  शिक्षक  ! माते  = के  लिये  ! पढ़ि  = पढना !  मुसाफ  = मुस्लिम  धर्म  ग्रंथ  ! काजी  = मुस्लिम  न्याय  काराने वाले  काजी  जो  शादी  ब्याह  कारते है  ! माते  = के  लिये  ! दै  = देना  ! निसाफ  = निर्णय  , न्याय , निजात छुटकारा  ! 

प्रग्या  बोध  : 

परमात्मा  कबीर  बसंत  के  इस  पद  में  हिन्दुस्तान  में  आये  तुर्की  धर्म  य़ानी  मुस्लिम  धर्म  के  मौलाना  और  काजी  के  धर्म  आचरण  पर  ध्यान आकार्शित  कारते  हुवे   बाताते  है  इनकी  धर्म  दृष्टी  ,सोच  ऊनके  धर्म  ग्रंथ   कुराण  और  उसपर  की  hai चर्चा   के  मुताबिक  ही  है  इसे  ही  वे  कट्टर  मुस्लिंम  कहते   है  जैसे  कट्टर  विदेशी  यूरेशियन  वैदिक  धर्मी  ब्राह्मण   वेद  और  मनुस्मृती  के   अर्थ  को  ही  धर्म  मानते  है  ! काजी  और  मौलाना  अपने  सदविवेक  बुद्धी  का  उपयोग  नही  करते  वे  भी  पढ़त  पंडित  है  और  अधर्म  को  ही  धर्म  मान बैठे  है  ! कबीर   साहेब  ने  मुस्लिंम   धर्म के  अंध  श्रद्धा  के  उपर  कठौर  प्रहार  किया  जैसे  वैदिक  ब्राह्मण  धर्म  पर  ! 

धर्मविक्रमादित्य  कबीरसत्व  परमहंस 
दौलतरां 
जगतगुरू  नरसिंह  मुलभारती 
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Thursday, 18 September 2025

Pavitra Bijak : Pragya Bodh : Basant : 10 : 3

पवित्र  बीजक  : प्रग्या  बोध  :  बसंत  : 10 : 3

बसंत  : 10 : 3

तपसी  माते  तप  के  भेव  , संन्यासी  माते  कर  हंमेव  ! 

शब्द  अर्थ  : 

तपसी  = जप  तप  उपास  तापस  काराने वाले  लोग  ! माते =  के   लिये  ! तप  = व्रत  ! के  भेव  = का  डर  ! संन्यासी  = गृहस्थी  त्याग  कर  संन्यासी  बने  लोग  !  हंमेव  =  स्वयम  का  डर  ! 

प्रग्या  बोध  : 

परमात्मा  कबीर  बसंत  के  इस  पद  मे  कहते  है  जप तप  करने  वाले  तपसी  लोग  तप  अनुष्ठन संकल्प  जप  माला  संख्या  को  ही  धर्म  समझकर वो  न  टूटे  इस  डर  मे  ज़िते  है  और  कोई  उनके  जप तप   मे  बाधा  बने  तो  क्रोधित  होते  है  गाली  श्राप  देते  है  वैसे  ही  जो  लोग  घर  बार  स्त्री  बाल  बच्चे  माँ  बाप  तो  त्याग  कर  संन्यासी  बने  है  उनहे  अपने  कर्म  का  स्वयम  अफसोस  होता  रहता  है  ! आखिर  वो  संसार  से  कहाँ  कहाँ  और  कितना  दुर  भाग  सकते  है  उनहे  बार  बार  संसारी  लोगो  की  मदत  दया  पर  ही  आश्रित  रहना  पडता  है  ! कोई  संसार  से  नही  भाग  सकता  है  चाहे  वो  जप तप  करने  वाला  हो  य़ा  संन्यासी  ! दोनो  को  हरदम  हनेशा  डर  बना  रहता  है  कहि  ये  ना  टूटे  वो  ना  टूटे  ! ये  कोई  धर्म  नही  संन्यासी   और  जप तपी  जब  तक  शिल  सदाचार  का  धर्म  पालन नही  करते   उनके  जप तप  संन्यास  को  कोई  अर्थ  नही  सब  बेकार  है  ! 

धर्मविक्रमादित्य  कबीरसत्व  परमहंस 
दौलतरां 
जगतगुरू  नरसिंह  मुलभारती 
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कल्याण , अखण्ड  हिन्दुस्तान , शिवशृष्टी

Father of Nativism

Nativist DD Raut

Wednesday, 17 September 2025

Pavitra Bijak : Pragya Bodh : Basant : 10 : 2

पवित्र  बीजक  : प्रग्या  बोध  :  बसंत  : 10 : 2

योगी  माते  योग  ध्यान , पंडित  माते  पढ़ि  पुरान ! 

शब्द  अर्थ  : 

योगी  माते  = योगी  के  लिये  ! योग  ध्यान  = आसन  और  ध्यान  ! पंडित  माते  = पंडित  , ब्राह्मण , पांडे  के  लिये  ! पढ़ि  = बताना  , पढना !  पुरान = वैदिक  ब्राहाण  धर्म  के  दूय्यम   ग्रंथ  ! 

प्रग्या  बोध  : 

परमात्मा  कबीर  बसंत  के  इस  पद  में  कहते  है  योगी , हट  योगी  जैसे  गोरखनाथ  आदी  योग  और  योगिक  मुद्रा  ,ध्यान  को  ही  धर्म  मानने  लगे  और उनके  लिये  शिल  सदाचार  की  कोई  किमत  नही  रही ! मूर्दे  को  जगाने  की  झूठी  हट  योगी  पद्धती  ने  सारी  हदे  पार  कर  ली  कुछ  तो  नागा  बने  और  विभिन्न  आसन  मुद्रा  को  ही  धर्म  और  कुण्डली  योग  माया  जगाना  कहने  लगे  लोग  इन  से  डर  दुर  भागने  लगे  वैसे  ही  विदेशी  यूरेशियन वैदिक  ब्राह्मण  धर्मी  पांडे  पूजारीयोने  वेद  और  भेद  , मनुस्मृती  के  जाती  भेद  ऊचनीच  असपृष्यता  , छुवाछुत  आदी  को  अधिक  मजबुती देने  के  लिये  अठराह  पुरण   और  करोडो  देवी  देवता उनके  अवतार  पूजा प्रार्थना  मन्दिर  कथा आदी  कुछ  स्थानिय  लोककथा  किद्वंतिया  और  बहुत  सारा  ब्राह्मण  हितकारी  लाभकारी  दक्षिना वाला  मसाला   ड़ाल  कर  लोगोंको  यही  धर्म  है  बताने  लगे  जाती  वर्ण  छुवाच्छुत  अस्पृष्यता  शोषण  का  धर्म  कथा  और  पाढ  सुनाकर  बताने  लगे  शिल  सदाचार  को  दरकिनार कर  चौरी  झूठ  लालच , पाप  दुषकर्म  ही  धर्म  बनाया  गाया  इससे  न  राजा  बचा न  प्रजा ! शिवाजी  को  लूटा  गया , शाहु का  अपमान किया  गया  ! 

धर्मविक्रमादित्य  कबीरसत्व  परमहंस 
दौलतरां 
जगतगुरू  नरसिंह  मुलभारती 
मुलभारतिय  हिन्दूधर्म  विश्वपीठ 
कल्याण , अखण्ड  हिन्दुस्तान , शिवशृष्टी

Tuesday, 16 September 2025

Pavitra Bijak : Pragya Bodh : Basant : 10 : 1

पवित्र  बीजक  : प्रग्या  बोध  :  बसंत  : 10 : 1

बसंत  : 10 : 1

सबहिं  मद  माते  कोई  न जाग , संगहि  चोर  घर  मूसन  लाग  ! 

शब्द  अर्थ  : 

सबहिं  = सब  लोग  ! मद माते   = अहंकार  अग्यान  के  कारण  !  कोई  न  जाग  = सब  सोये  हुवे  , किसीमे  जागृती  नही  ! संगहि = साथ  मे  ही  ! चोर = चोरी  काराने वाला , ड़ाकु  ! घर  मूसन  लाग  = घर  मे  चुहोने  घर  बनाना  ! 

प्रग्या  बोध  : 

परमात्मा  कबीर  बसंत  दस  के  प्रथम  पद  में  बताते  है  की  बहुत  सारे  लोग  हुवे  है  ज़िन्होने  असत्य  को  सत्य  माना  और  अपना  जीवन  व्यर्थ गमाया  क्यु  की  वे  अपने   शरीर  मन  में  घर  किये  माया  मोह  अहंकार  को  ठिक  से  पहचान  न  सके   इसके  अनेक  उदाहरण  कबीर  साहेब  आगे  देते  है  !

धर्मविक्रमादित्य  काबिरसत्व  परमहंस 
दौलतरां 
जगतगुरू  नरसिंह  मुलभारती 
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Kabir ki Dayaa !

#कबीर_दया !

थोडीसी परमात्मा कबीर दया से 
मै अग्यानी से कबीरसत्व बन गया 
कृपा की कबिर परमात्माने मुझपर 
क्या से क्या दयालने बना दिया ! 

#दौलतराम

Monday, 15 September 2025

Pavitra Bijak : Pragya Bodh : Basant : 9 : 7

पवित्र  बीजक  : प्रग्या  बोध :  बसंत  : 9 : 7

बसंत  : 9 : 7

ऐसी  जात  देखि  नर  सबहिं  जान , कहहिं  कबीर  भजु  राम  नाम  ! 

शब्द  अर्थ  : 

ऐसी जात  देखि  = इस  प्रकार  से  सब  की  मृत्यू  देखा  ! नर  सबहिं  = नर  नारी  , राव  रंक  , योगी  भोगी,  दानी  कंजुस ! महाराज  सामान्य  लोग  सब  ! कहहिं   कबीर  = परमात्मा  कबीर  बताते  है  !  भजु  राम  नाम  =  मै  निराकार  निर्गुण  चेतन  तत्व  राम  ही  हमेशा  याद  रखता  हूँ  ! 

प्रग्या  बोध  : 

परमात्मा  कबीर  बसंत  नव  के  अंतिम  पद  सात  में  सारांश  में  बताते   है  भाईयों  ये  मानव  शरीर  दूर्लभ  है  इसका  सही  उपयोग  कर  सरल सहज जीवन  मार्ग  मुलभारतिय  हिन्दूधर्म  का  शिल  सदाचार  का  धर्ममार्ग  का  पालन  करो  विदेशी  यूरेशियन  वैदिक  ब्राह्मणधर्म  के  अधर्म  और  विकृतीभरे  संस्कृती  से  दुर  रहो  उनके  चक्कर मे  यह  अनमोल  मानव  जीवन   व्यर्थ ना  गमावो  जैसे  बली   दूर्योधन   कंस  रावण  ने  अती  के  कारण  अपना   जीवन  व्यर्थ  गमाया  जैसे  योग  और  भोग  मे  मछिन्दर  गोपिचन्द  रावण  ने  गमाया  उनके  देखा  देखि  सामान्य  लोग  भी  अपना  जीवन  सत्य  जाने  बिगर  और  सत्य  हिन्दूधर्म  का  आचारण  किये  बिगर   व्यर्थ  गमा  रहे  है  ! 

कबीर  साहेब  अंत  मे  कहते  है  धर्म  अधर्म  का  भेद  जानो  , अती  ना  करो  अती  से  अहंकार  आता  है  चाहे  दानी  हो  या  सत्ताधिश  याद  रखो  यह  शिवशृष्टी  का  निर्माता  चालक  मालक  केवल एक  तत्व   चेतन  राम  है  जो  हम  सबमे  है  और  हम  सब  उसमे  वो  सब  जानता  है  न  अहंकार  माया  मोह  न  झूठ  न  फरेब  न  उपरी  दिखावा  उससे  छूपा है ! वो  निराकार  निर्गुण  अमर   अजर सार्वभौंम  सर्वत्र  है   उसे  हमेशा  याद  रखो  न  कोई  उससे  बडा  सम्राट  है  न  मालिक   वह  धर्म  अधर्म  , संस्कृती  विकृती  सब  जानता  है  उसे  केवल  शिल  सदाचार  भाईचार  समता  ममाता का  धर्ममार्ग   मुलभारतिय  हिन्दूधर्म  के  सरल  सहज  आचरण  से  ही  प्राग्य  बोध   द्वारा  जाना  जा  सकता  है  तभी  मानव  जीवन  सार्थक  होता  है  अन्यथा  नही  ! 

धर्मविक्रमादित्य  कबीरसत्व  परमहंस 
दौलतरां 
जगतगुरू  नरसिंह  मुलभारती 
मुलभारतिय  हिन्दूधर्म  विश्वपीठ 
कल्याण  , अखण्ड हिन्दुस्तान , शिवशृष्टी

Sunday, 14 September 2025

Pavitra Bijak : Pragya Bodh : Basant : 9 : 6

पवित्र  बीजक  : प्रग्या बोध  :  बसंत  : 9 : 6

बसंत  : 9 : 6

गोपीचन्द  भल  कीन्ह  योग  , जस  रावण  मारयो करत  भोग  ! 

शब्द  अर्थ  : 

गोपीचन्द  = एक  राजा  जो  हट योग  मचिन्द्रनाथ का  शिष्य  हुवा  और  योगी  था  ! भल  कीन्ह  योग  = जीवन  भर  योग  आसन  आदी  लगाता   रहा  पर  उसे  कोई  फायदा  नही  हुवा  उल्टे  दुख  झेलने  पडे  ! रावण  = रामयण  का  खल  नायक  विदेशी  यूरेशियन  वैदिक  ब्राह्मण  धर्मी  होम  हवन  करता  था  और  भोगी  था  ! 

प्रग्या  बोध : 

परमात्मा  कबीर  बसंत  के  इस  पद  मे  हट  योगी  माचिन्द्रनाथ  का  शिष्य  राजा  गोपिचन्द  का  उदाहरण  देते  हुवे  कहते  है  योग  करने  से  कुछ  नही  होता  है  वैसे  ही  होम  हवन  करने   वाला  ब्राह्मण  रावण  भी  वेद  और  वैदिक  धर्म  का  पालन  कर  सभी  प्रकार  के  भोग  होम  बली  , हत्या  , स्त्री अपहरन  ,लंपट  वृति  लोगोंको  फसाना छल कपट ,   झूठ  बोलना  आदी  ब्राह्मणधर्म  के  भोगधर्म  को  श्रेष्ठ  मानता  था वो  भी  भोग  के  अती  के  कारण  मारा  गया  ! न  अती  हट  योग  ठिक  है  न  अती  भोग  ठिक  है  यही  बात  धर्मात्मा कबीर   हमे  यहाँ  समझाते  है  !

धर्मविक्रमादित्य  कबीरसत्व  परमहंस 
दौलतरां 
जगतगुरू  नारसिंह  मुलभारती
मुलभारतिय  हिन्दूधर्म  विश्वपीठ 
कल्याण , अखण्ड  हिन्दुस्तान  , शिवशृष्टी

Saturday, 13 September 2025

Pavitra Bijak : Pragya Bodh : Basant : 9 : 5

पवित्र बीजक : प्रग्या बोध : बसंत : 9 : 5 

बसंत : 9 : 5

हनुमत कश्यप जनक बालि , ई सब छेंकल यम के द्वारि ! 

शब्द अर्थ : 

हनुमत = हनुमंत , हनुमान , बजरंग बली , केसरी , एक रामायण पात्र ! कश्यप = एक ऋषी , एक बुद्ध पुरूष ! जनक = रामायण एक पात्र , सिता के पिता ,जनकपुरी राजा ! बालि = एक मुलभारतिय प्रतापी महादानी राजा ज़िसको वामन नामके ब्राह्मण ने फसाया ! ई सब = ये सब ! छेंकल यम के द्वारि = मृत्यू लोंक में पहूच गये ! 

प्रग्या बोध : 

परमात्मा कबीर बसंत के इस पद में हनुमंत अर्थात हनुमान , ऋषी कश्यप , जनक यानी रामायण के सिता के पिता और महाप्रतापी महादानी राजा बली सुग्रीव का बंधु प्रतापी राजा बाली ज़िसने रावण को परास्त किया था इन सबको लोक मान्यता अनुसार अमर माने जाते है पर इनके अमर होने के बात का खण्डन करते हुवे कबीर साहेब कहते है ये सच नही है ये सभी लोग भलेही कितने अच्छे ,धर्मिक प्रतापी दानी परोपकारी क्यू न रहे हो थे तो मर्त्य मानव ही और सभी लोग मृत्यू को प्राप्त हुवे है कोई अमर नही जैसे की कुछ विदेशी यूरेशियन वैदिक ब्राह्मण धर्मी इन की देखा देखी कुछ गलत और बेकार पापी ब्राह्मण जैसे परशुराम , अस्वस्थामा आदी को भी अमर होने की झूटी बात फैलाते है ! वस्ताव मे परशुराम को मुलभारतिय मौर्य कुल राजा सम्राट संप्रती अर्थात अर्थात सम्राट अशोक पुत्र अंध कुणाल का बेटा और सम्राट दशरथ का भतिजा राम ही संप्रती है ज़िसपर रामायण काव्य लिखा गया है ! ह्नुमंत कष्यप जनक बाली सभी मुलभारतिय हिन्दूधर्मी गैर ब्राह्मण पात्र है जो महान तो हुवे है पर अमर नही जैसा लोक कहावत मे बताया जाता है ! केवल एक ही अजर अमर तत्व है और वो है चेतन राम जो निराकार निर्गुण सर्वव्यापी सार्वभौम है ज़िसके दर्शन केवल प्रग्या बोध से संभव है और उसका मार्ग है शिल सदाचार का मार्ग मुलभारतिय हिन्दूधर्म मार्ग जो स्वयम धर्मात्मा परमात्मा कबीरवाणी पवित्र बीजक है ! 

धर्मविक्रमादित्य कबिरसत्व परमहंस 
दौलतराम 
जगतगुरू नरसिंह मुलभारती 
मुलभारतिय हिन्दूधर्म विश्वपीठ 
कल्याण , अखण्ड हिन्दुस्तान , शिवशृष्टी

Friday, 12 September 2025

Pavitra Bijak : Pragya Bodh : Basant : 9 : 4

पवित्र  बीजक  : प्रग्या  बोध  : बसंत  : 9 : 4

बसंत  : 9 : 4 

छौं  चकवैं  मंडली  के  झारि , अजहूँ  हो  नर  देखु  बिचारि  ! 

शब्द  अर्थ  : 

छौं  = छ  ! चकवैं   = चक्रवर्ती  राजा  , माहाराजा ! मंडली  = भु  मंडल , पृथ्वी  पर , धरती  पर  ! झारी  = अधिकारी  , मालिक  ! अजहूँ   = अभीभी  ! नर  = कुछ  लोग  ! देखु  बिचारि  = वैसे  होना  चाहते   है  ! 

प्रग्या  बोध  : 

परमात्मा  कबीर  बसंत के  इस  पद  में  बताते  है  इस  धरती  पर  लोग  कहते  है  बडे  बडे  राजा माहाराजा  हुवे  है  ज़िनमे  छ  को  तो  पुरे  धरती के  मालिक  चक्रवर्ती  माना  गया  आज  भी  लोग  उनके  उदाहरण  देते  है  और  कुछ  तो  उनके  जैसे  चक्रवर्ती  सम्राट  राजाधीराज  बनना  चाहते  है  पर  जरा  विचार  करो  ये  आज  कहाँ  है  ? कोई  अमर  और  सदा  के  लिये  नही  siway एक  अमर  अजर  निराकार  निर्गुण  चेतन   तत्व  राम  के  शिवाय  ! 
विचारी  लोग  वो  है  जो  इस  तथ्य को  जानते   है  सत्य  को  जानते  है  चक्रवर्ती  सम्राट  कोई  नही  उस  चेतन  राम  के  शिवाय  ! बाकी   तो  आये  गये  है  मर्त्य  है  मालिक  कोई  नही  सब  अहंकार  माया  मोह  का  भ्रम  है  ! 

धर्मविक्रमादित्य  कबीरसत्व  परमहंस 
दौलतराम 
जगतगुरू  नरसिंह  मुलभारती 
मुलभारतिय  हिन्दूधर्म  विश्वपीठ 
कल्याण , अखण्ड  हिन्दुस्तान , शिवशृष्टी

Thursday, 11 September 2025

Pavitra Bijak : Pragya Bodh : Basant : 9 : 3

पवित्र  बीजक : प्रग्या  बोध  : बसंत  : 9 : 3

बसंत  : 9 : 3

पृथु  गये  पृथिवी  के  राव , त्रिविक्रम  गये  रहे  न  काव  ! 

शब्द  अर्थ  : 

पृथु  = एक  महाप्रतापी   राजा  जो  इस  धरती  का  चक्रवर्ती  हुवा  ज़िसके  नाम  पर  धरती  को  पृथ्वि  कहा  गया  ! पृथिवी  = धरती  !   राव  =  राजा  , मालिक , रावत  , धर्तीपुत्र  ,आदिवाशी  ! त्रिविक्रम  = एसे  महापराक्रमी  तीन  राजा जैसे  पृतु  बली  आदी ! 

प्रग्या   बोध :

परमात्मा कबीर बसंत  के  इस  पद  में  उन  महा  प्रतापी   राजा  का  ज़िक्र  करते  है  ज़िन्हे  विक्रमादित्य  कहा   गया  है  जैसे  पृतु , बली ,   भरत  आदी  जो  इस  धरती  के  मालिक  माने  गये  वो  भी  सदा  के  लिये  ज़िवित  नही  रहे  ना हमेशा  के  लिये  इस  धरती के  एकमात्र  मालिक  ! फिर  जो  विदेशी  यूरेशियन  वैदिक  ब्राह्मणधर्मी   पंडे  पूजारी  संकराचार्य  आदी  जो  खुद  को  ब्रह्मा  के  मुख  से  पैदा  हुवे  बताते  है  और  कव्वे  की  तरह  काव  काव  कारते है  उनकी  हैसियत  क्या  ? 

कबीर  साहेब  केवल  तत्व  चेतन  राम  को  अविनाशी  अजार  अमार  और  सब  का  निर्माता  पिता  मालिक  मानते  है  जो  निराकार  निर्गुण  सार्वभौम  सत्य है  ! उसके  शिवाय  अन्य  कोई  बडा  नही  चाहे  ज़ितनी  बकवास  काव  काव  विदेशी  ब्राह्मण  कर  ले  उनका  धर्म  ना  धर्म  है  ना  संस्कृती  संस्कृती  है  वह  पुरी  तरह   अधर्म  और  विकृती  है  ! 

धर्मविक्रमादित्य कबिरसत्व  परमहंस 
दौलतराम 
जगतगुरू  नरसिंह  मुलभारती 
मुलभारतिय  हिन्दूधर्म  विश्वपीठ 
कल्याण  ,अखण्ड  हिन्दुस्तान , शिवशृष्टी

Native Rule Movement Awards 2026 Nomination

#नेटीव_रूल_मुव्हमेंट 
( स्थापना  : 1 जनवरी ,1970 )

नामंकन  संदेश  भेजे  ! 

2026 के  नेटीव  पखवारा  9 अगस्त  से  24 अगस्त  2026 के  सार्वजनिक  कार्यक्रम  में  निचे  लिहित पुरस्कार  , अलंकरन  दिये  ज़ायेंगे  !

मुलभारतिय  समाजरत्न  पुरस्कार   1
जनसेनानी  अलंकरन  1
कबीर - गांधी  साहित्य सदभावना पुरस्कार  1
कर्तव्यमुर्ती  लोई  पुरस्कार  1
नेटीव  हिरो अवार्ड  1

पुरस्कार / अलंकरन  स्वरूप 

कबिर  सन्मान  सफेद  शेला 
कबिर  सन्मान  सफेद टोपी 
पुरस्कार  / अलंकरन  मानपत्र 
पुरस्कार / भेट  राशी  रू  एक  हजार  रोख 
पुष्पगुच्छ  

नामांकन  के  संदेश  भेजे 

#नेटीवीस्ट_दीपा_राऊत 
अध्यक्ष 
#नेटीव_रूल_मुव्हमेंट

Wednesday, 10 September 2025

Pavitra Bijak : Pragya Bodh : Basant : 9 : 2

पवित्र बीजक : प्रग्या बोध : बसंत : 9 : 2

बसंत : 9 : 2 

गये बेनु बलि गये कंश , दूर्योधन को बूडों वंश ! 

शब्द अर्थ :

गये = समाप्त हुवे ! बेनु बलि = महा बलशाली राजा बलि , महाप्रतापी बली ! दूर्योधन = महाभारत का एक बलशाली पात्र ! वशं = आगे की पिढ़ि , अवलादे ,राज्य , सामराज्य , सत्ता ! 

प्रग्या बोध : 

परमात्मा कबीर बसंत के इस पद में महा बलशाली , महा दाणी और महा अहंकारी को एक ही जैसा परस्त होना पडा यह बताते हुवे अनावश्यक दातृत्व जैसे की महा बलशाली बली था और एक विदेशी यूरेशियन वैदिक धर्मी ब्राह्मण वामन को उसने बिना सोचे समझे केवल अधिक दाणी महादाणी होने की ख्याती या नाम को बनाये रखाने के लिये जाती वर्ण ऊचनीच भेदाभेद अस्पृष्यता छुवाछुत वादी , विषमाता शोषण वादी विदेशी यूरेशियान वैदिक ब्राह्मण को हिन्दुस्तान उनके वसाहत के लिये रहने के लिये जगह दिया पनाह दिया जैसे कोई मेंधक अपना शत्रू साप को अपने घर रहने की अनुमती दे और खुद के वंश पर आफत लाये वैसे ही महा बली राजा ने अती उदारता के कारण अपने कुल खान्दान वंश का नाश किया जैसे अती कृपाण अती कंजुसी अती हाव के कारण दूर्योधन ने अपने रक्त कुल के चचेरे भाई पांडव को जमीन का सूई का आकार का तुकडा भी नकारकर दुष्मनी , युद्ध और अंतता महाविनाश और वंश का विनाश मोल लिया ! इस लिये कबीर साहेब कहते है अती मत करो 
 सरल सामान्य रहो न जादा अहंकारी बनो न अती दाणी ! सहज सरल योग का मार्ग अर्थात शिल सदाचार समता भाईचार अहिंसा का मुलभारतिय हिन्दूधर्म ही उत्तम धर्म है ! 

धर्मविक्रमादित्य कबीरसत्व परमहंस 
दौलतराम 
जगतगुरू नरसिंह मुलभारती 
मुलभारतिय हिन्दूधर्म विश्वपीठ 
कल्याण , अखण्ड हिन्दुस्तान , शिवशृष्टी

Tuesday, 9 September 2025

Buddha Rashtra

#बुद्धराष्ट्र ! 

नेपाल में इस समाय बहुत उथल पुथल चल रहा ! 

नेपाल में स्थित कपिलवस्तु , लुम्बिनी आदी क्षेत्र और भारत में स्थित गंगा जमुना के क्षेत्र गया वाराणशी कुशिनारा आदी स्थान मिलाकार स्वतंत्र बुद्धराष्ट्र बने यह हमारा सुझाव है ! सभी देशोने खासकर भारत नेपाल और बुद्धराष्ट्र राजधानी कपिलवस्तु ने त्री पक्षिय वार्ता शुरू करना चाहिये !

#दौलतराम

Pavitra Bijak : Pragya Bodh : Basant : 9 : 1

पवित्र  बीजक  : प्रग्या  बोध  :  बसंत  : 9 : 1

बसंत  : 9 : 1

एसो  दुर्लभ  जात  शरीर , राम  नाम  भजु  लागू  तीर  ! 

शब्द  अर्थ  :

एसो   = एसा  ! दुर्लभ  = बहुत  प्रयास  के  बाद ! जात  = जाना  ! शरीर  = मानव  जन्म  ! राम  नाम  = चेतान तत्व परमात्मा राम  जो  अमर  अजर   सर्वव्यापी  सार्वभौम  निराकार  निर्गुण  परमात्मा  कबीर  है  ! भजु  = जानु  मानू  ! लागू  तीर  = निर्वांण  , राम   प्राप्ती  ! 

प्रग्या  बोध : 

परमात्मा  कबीर  बसंत  नव  के प्रथम  पद  में  ही  बताते   है  की  मानव  जन्म  अद्भूत  और  दूर्लभ है  क्यू  की  इसी  मानव  जन्म  मे  मानव  को  शिल  सदाचार   के  धर्म  आचरण  द्वारा  प्रग्या  बोध  हो  सकता  है  अन्य  जीव  जन्तु  पेड  पौंधे  के  जन्म  में  नही  ! इस लिये  मानव  जन्म  अनेक  योनी  य़ानी  जीव  जन्तु  आदी  के  जन्म  मरण  के  भवचक्र  को  पार  करने के  बाद  ही  बडे  सौभाग्य  से  प्राप्त  होता  है  मानव  शरीर  एक  एक  अवयव  अनमोल  है  जो  हमे  धर्म  आचरण  कर  परमात्मा  चेतन  राम  के  समीप  पूहचने मे  मदत  कारते  है  उनको  हमने शिल  सदाचार  सत्य अहिंसा  भाईचारा  समता  ममता   के  धर्म  मार्ग  पर  न  लगाकर मोह  माया  इच्छा  तृष्णा  लालच  झूठ  हत्या  कुकर्म  अहंकार  अधर्म  और  विकृती  भरा  विदेशी  यूरेशियन  वैदिक  ब्राह्मण  धर्म  के  गलत  रास्ते  पर  लगाया  तो  यह  दूर्लभ  मानव  जीवन  पापकर्म  अधर्म  का  बोझ  , भार  सह  नही  पायेगा  और  मानव  जन्म  बेकार  जयेगा  क्यू  की  मृत्यू  के  बाद  हम  कुछ  भी  नही  कर  सकते  और  जन्म  मृत्यू  के  फेरे  में  यूगो  यूगो  भटकते  दुख  झेलते  जायेंगे  ! यही  अवसर  है  यही  अद्भूत  अलौकिक  मानव  जन्म  है  इसे  व्यर्थ  ना  जाने  दे  ! राम  मार्ग  अर्थात  परमात्मा  कबीर  ने  बताये  मुलभारतिय  हिन्दूधर्म  मार्ग  पर  चलकर  अपना  मानव  जीवन  सफल  करे  ! 

धर्मविक्रमादित्य  कबीरसत्व  परमहंस 
दौलतराम 
जगतगुरू  नरसिंह  मुलभारती 
मुलभारतिय  हिन्दूधर्म  विश्वपीठ 
कल्याण  , अखण्ड  हिन्दुस्तान , शिवशृष्टी

Monday, 8 September 2025

Pavitra Bijak : Pragya Bodh : Basant : 8 : 4

पवित्र बीजक : प्रग्या बोध : बसंत : 8 : 4

बसंत : 8 : 4

कहैं कबीर दासन के दास , काहू सुख दै काहू निरास !

शब्द अर्थ : 

कहैं कबीर = परमात्मा कबीर कह रहे है , बता रहे है ! दासन दास = सब के नम्र , विनम्र , सेवको के सेवक ! काहू सुख दै = कही सुख है ! काहू निरास = कही दुख है ! 

प्रग्या बोध : 

परमात्मा कबीर बसंत आठ के इस अंतिम पद में बताते है भाईयों ये संसार माया मोह से ग्रस्त है , हर जीव इच्छा तृष्णा ग्रस्त है और इस लिये भवचक्र फसे हुवे है और जन्म मृत्यू के फेरे में उल्जे हुवे है स्वाभविक है उन्हे इसमे कुछ सुख और कुछ दुख मिलते है क्यू की वो धर्म का पालन पुरी तरह नही करते इस लिये भवचक्र से मुक्त नही हो पाते ! बहुत कम लोग इस रहष्य को जानते है जब की कबीर साहेब इस रहष्य को मानव कल्याण के लिये ,मानव मुक्ती के लिये बिना किसी राग लपेट से सब को निस्वार्थ भाव से बताते है ! कबीर साहेब , परमात्मा सब को निराकार निर्गुण चेतन राम की सुख दुख रहित अवस्था निर्वाण तक ले जाना चाहते है और उसका मार्ग सहज सरल योग क्षेम प्रग्या बोध का मार्ग अर्थात शिल सदाचार का धर्म मार्ग मुलभारतिय हिन्दूधर्म बिना किसी भेदभाव से विनम्रतासे सब को बताते है ! 

धर्मविक्रमादित्य कबीरसत्व परमहंस 
दौलतराम 
जगतगुरू नरसिंह मुलभारती 
मुलभारतिय हिन्दूधर्म विश्वपीठ
कल्याण , अखण्ड हिन्दुस्तान , शिवशृष्टी

Sunday, 7 September 2025

Pavitra Bijak : Pragya Bodh : Basant : 8 : 3

पवित्र  बीजक  : प्रग्या  बोध  : बसंत  : 8 : 3

बसंत  : 8 : 3

उलटी  पलटी  बाजु  तार , काहू  मारै  काहू उबार  ! 

शब्द  अर्थ  : 

उलटी  पलटी  = सिधी  ऊलटी , विपरित विचार वाली  ! काहू  मारे  = किसे  मारे  ,  किसे  हिनता का  भाव  दे , बर्बाद  करे ! काहू  उभार  = किसे  अभीमान  गर्व  से  भरे ,अहंकार  से  भरे  ! 

प्रग्या  बोध  : 

परमात्मा  कबीर  बसंत  के  इस  पद  में  कहते  है माया  का  खेल  बडा  अजीब   है  कहि  कहि  तो  वो  लोगोंके  मन  मे  खुद  के  लिये कमी  का  भाव निर्मांण कर  गलत   कार्य  ,अधर्म  जैसे  चौरी  झूठ  बोलना  आदी  कुकर्म  कराती  है  तो  कहि  कहि  लोगोंके  मन  मे  अहंभाव , अहंकार  गर्व निर्मांण कर  अन्य  पर  अत्याचार  बलात्कार  कराती है  जैसे  धनी  लोग  बाहुबली   मालदार  रसुकदार  ,सत्ताधिष  लोग  गरीब  प्रजा  के  साथ  बर्ताव करते है  !  

धर्मविक्रमादित्य  कबीरसत्व  परमहंस 
दौलतराम 
जगतगुरू  नरसिंह  मुलभारती 
मुलभारतिय  हिन्दूधर्म  विश्वपीठ 
कल्याण , अखण्ड  हिन्दुस्तान , शिवशृष्टी

Saturday, 6 September 2025

Pavitra Bijak : Pragya Bodh : Basant : 8 : 2

पवित्र बीजक : प्रग्या बोध : बसंत : 8 : 2

बसंत : 8 : 2

कपरा न पहिरे रहै उधारि , निर्जिव से धनि अति रे पियारि ! 

शब्द अर्थ : 

कपरा न पहिरे = कपडे , अंगवस्त्र न पहने ! रहै उधारी = रहे निर्वस्त्र , नंगी ! निर्जिव = भोग वस्तु , धन संपत्ती , अहंकार ! अति रे पियारि = अती प्रेम , लालच माया मोह ! 

प्रग्या बोध : 

परमात्मा कबीर बसंत के इस पद में माया का वर्णन करते हुवे बताते है माया बेशर्म होती है , नंगी बिना वस्त्र लाज शरम के घुमती रहती है और चेतान राम अर्थात जीव से प्यार नही करती न उसका भला चाहती है वह कल्याणकारी नही अहंकारी है उसे निर्जीव वस्तु धन संपत्ती अहंकार से बडा लगाव है प्यार है और इनको पाने के लिये वो किसी भी हद तक जा सकती है उसे शर्म लाज की कोई चिंता नही वह निर्लाज्ज है बेशर्म है वह इज्जत भी बेच कर खुश रहती है ! 

धर्मविक्रमादित्य कबीरसत्व परमहंस 
दौलतराम 
जगतगुरू नरसिंह मुलभारती 
मुलभारतिय हिन्दूधर्म विश्वपीठ
कल्यान , अखण्ड हिन्दुस्तान , शिवशृष्टी

Friday, 5 September 2025

Pavitra Bijak : Pragya Bodh : Basant : 8 : 1

पवित्र  बीजक  : प्रग्या बोध  :  बसंत  : 8 : 1

बसंत  : 8 : 1

कर  पल्लव  केवल  खेले  नारि , पंडित  होय  सो  लेइ  बिचारि  ! 

शब्द  अर्थ  : 

कर  पल्लव  = हाथ  मे  लाज   ! केवल  खेले  नारि  = माया  मोह  इच्छा  तृष्णा  के  खेल  ! पंडित  = ग्यानी  ! होय  सो  = अगर  है  ! लेइ  बिचारि  = विचार  पूर्वक  काम  करना ! 

प्रग्या  बोध : 

परमात्मा  कबीर   बसंत  आठ  के  प्रथम  पद  में  माया  मोह  इच्छा  तृष्णा  के  स्वरूप  को  बताते   हुवे  कहते  है  माया  मोह  को  कोई  शर्म  लाज  नही  आती  है  वह  लाज  को  हाथ  मे  लपेटे बडे  शान से  चलती  है  जैसे  मोहीनी  लोगो  को  आकृष्ट  करने के  लिये  करती  हो उसके  पल्लू  मे  बडी  मोहक  अदा  होती  है  ज़िस  पर  लोग  लठ्ठु  हो  जाते  है  और  बेशर्म  होकर  उसके  लिये  वो  काम  करते  है  जो  अधर्म  है  ,  जो नही  करना  चाहिये  ! जो  लोग  विचारी  है  ग्यानी  है  मुलभारतिय  हिन्दूधर्म  के  शिल  सदाचार  का  धर्म  जानते  है  उसका  पालन  कारते  है   वे  माया  मोह  की  बेशर्म  मोहक  मन  लुभावनी  अदा  से  बच  जाते  है  ! एसे  भी  कुछ  लोग  है  जो  विदेशी  यूरेशियन  वैदिक  ब्राह्मणधर्म  जो  विषमता  शोषण    जातीवर्ण  वाद  , अस्पृष्यता  , ऊचनीच  भेदाभेद  छुवाछुत  आदी  का  विकृत अधर्म  का  खुद  को  ग्यानी  ब्राह्मण  पंडित  पांडा  पूजारी  धर्म  गुरू  शंकारचार्य  है  बताते  है  उनसे  दुर  रहना  ही  श्रेयकर  है  ! 

धर्मविक्रमादित्य  कबीरसत्व  परमहंस 
दौलतराम 
जगतगुरू  नरसिंह  मुलभारती 
कल्याण , अखण्ड  हिन्दुस्तान  , शिवशृष्टी

Thursday, 4 September 2025

Pavitra Bijak : Pragya Bodh : Basant : 7 : 10

पवित्र  बीजक  : प्रग्या  बोध  :  बसंत  :  7 : 10

बसंत  : 7 : 10

अबकी  बार  जो  होय  चुकाव , कहहिं  कबीर  ताकी  पूरी  दाव  ! 

शब्द  अर्थ  : 

अबकी  बार  = इस  समय , इस  जन्म  में  ! होय  चुकाव  = गर  चुक  गये  ! कहहिं  कबीर  = परमात्मा  कबीर  कहते  है  ! ताकी  पूरी  दाव  = पूरी  ज़िन्दगी बेकार  गई ! 

प्रग्या  बोध  : 

परमात्मा  कबीर  बसंत  सात  के  अंतिम  पद  दस  मे  अंतता   बताते  है  भाईयों  ये  मानव  जीवन  अद्भूत  और  दूर्लभ  है  अनेक  भवचक्र  और  योनी जन्म  के  बाद  यूगो  यूगो  बाद  मानव  जन्म  प्राप्त  होता  है  ज़िस  मे  धर्म  आचरण  और  प्रग्या बोध  की  मानव  को तरतुद  है  केवल  मानव  जन्म  मे  ही  परमात्मा  चेतन  राम  के  दर्शन और  मुक्ती  का  मार्ग  है  और  वो  है  मुलभारतिय  हिन्दूधर्म   का  शिल  सदाचार  का  मार्ग  , मानवता  और  भाईचारा  का मार्ग  , सत्य  और  अहिंसा  का  मार्ग  इस  मार्ग  पर  नही  चले  और  माया  मोह  में  फस  कर  अधर्म  विकृत मार्ग  पर  चले  तो ये  दूर्लभ  मानव  जीवन व्यर्थ   जयेगा  और  फिर  युग  युग  भवचक्र  के  फेरे  में  न  जाने  कब  तक  जन्म  मृत्यू  के  फेरे  में  दुख  झेलते  रहोगे  इस  लिये  यही  अवसार  है  मानव  बन  कर  जन्मे  हो  उसे  बेकार  न  जाने  दो  अधर्म  छोडो  जाती  वर्ण  विषमाता  शोषण  छुवाछुत  अस्पृष्यता  असमानता   का  विदेशी  यूरेशियन  वैदिक  ब्राह्मण  अधर्म  की  कुसंगत  छोडो वो  अहितकारक  है  ! 

धर्मविक्रमादित्य  कबीरसत्व  परमहंस 
दौलतराम 
जगतगुरू  नरसिंह  मुलभारती 
मुलभारतिय  हिन्दूधर्म  विश्वपीठ 
कल्याण  ,अखण्ड  हिन्दुस्तान , शिवशृष्टी