Thursday, 27 November 2025

Jaati ! A poem by Daulatram

#जाती  !

साधु  संतात  जाती 
गुरू  महंतात  जाती 
सैन्यात सेवकात  जाती 
नेत्यात  जनतेत  जाती 
शहिदात  सोयरिकात  जाती 
कायद्यात  संविधानात  जाती 
गुन्हेगारात   न्यायमुर्तित  जाती 
नौकरात  मालकात  जाती 
व्यापारयात  धन्द्यात  जाती 
सांगतात  ते  मानतात  जाती 
धर्म  त्याचा  जाती  भेदा  साठी 
तरी  अनेकतेत  एकता  सांगतात  जाती  ! 

जाती  विहीन  नेटीव  हिन्दुत्व ला 
मूर्खात  काढतात  धर्म  जाती 
मुलभारतिय  हिन्दूधर्म  नाकारतात  जाती 
समता  बंधुत्व  नाकारतात  जाती 
कबीर  बीजक  नको  म्हणतात  जाती 
ब्राह्मण हिन्दू वेगवेगडे  हा  विचार  नाकारतात  जाती
जाती  ध्योतक   जानवे  घालतात  जाती 
अस्पृष्यता  छुवाछुत  पालतात  जाती 
तरी  जाती  जाती  आरक्षाण  मागतात   जाती 
जाती  नसलेल्या  धर्माता  शिरवतात  जाती 
तरी  जाती  विरुद्ध  आम्हीच लढतो  म्हणतात जाती !

नेटीव  रूल  मुव्हमेंट  ला  नाकारतात  जाती 
कास्टलेस  सोसाय़टी  नको  म्हणतात  जाती
मुलभारतिय  हिन्दूधर्म  नकारतात  जाती 
कबीर  दौलतराम  कडे   दूर्लक्ष  करतात  जाती 
जाती  विहीन  नको  जातिवंत  म्हणतात  जाती  !

#दौलतराम

Wednesday, 26 November 2025

Pavitra Bijak : Pragya Bodh : Chaachar : 2 : 22

पवित्र बीजक  : प्रग्या बोध : चाचर : 2 : 22

चाचर  : 2 : 22

ज्यों  आवै  त्यों  जाय , समुझि  मन  बौरा  हो  ! 

शब्द  अर्थ  : 

ज्यों  = जो  ज़हाँ  मर्जी  चाहे  ! आवै  = मन  मे  आवे  , मनमाना  ! त्यों  = वह  ! जाय  = गलत  जगह  जाय  ! मन  बौरा  हो  = मन  बे  काबू  है ! 

प्रग्या  बोध  : 

परमात्मा  कबीर  चाचर  के  इस  पद  में  बताते  है  भाईयों  कुछ  लोग  गलत  रास्ते  पर  चलते  है  जैसे  दारू  पिना  , जुवा  खेलना  , वेश्या के  पास  जाना  आदी  आदी  ! उनका  उनके  मन  पर  कोई  काबू नही  होता  है  वे  अच्छा  बुरा  में  भेद  नही  कर  पाते  जब  की  वे  भी  जानते   है  ये  अधर्म  है  गलत  है  पाप  है  ! एसा  इस  लिये  होता  है  क्यू  की  वो  गलत  संगत  मे  पड  जाते  है  ! विदेशी यूरेशियन  वैदिक ब्राह्मणधर्म यह गलत  संगत  है  उसे  छोडो  और  मुलभारतिय  हिन्दूधर्म  के  सुसंगत में  आवो  तो  मन  इधर  उधर  ना  भटके  ! 

धर्मविक्रमादित्य  कबीरसत्व परमहंस 
दौलतराम 
जगतगुरू नरसिंह मुलभारती
मुलभारतिय  हिन्दूधर्म  विश्वपीठ संस्थान 
कल्याण , अखण्ड  हिन्दुस्तान , शिवशृष्टी

Tuesday, 25 November 2025

Pavitra Bijak : Pragya Bodh : Chaachar : 2 : 21

पवित्र बीजक :  प्रग्या बोध : चाचर :  2 : 21

चाचर  : 2 : 21 

सूने  घर  का  पाहुना , मन  बौरा  हो  ! 

शब्द  अर्थ  : 

सूने   = शुन्य  , सुना , खाली  ! घर  = मानव  , शरीर ! पाहुना  = मेहमान  ! मन  बौरा  = अस्थिर  मन , चंचल  मन , पागल  मन  ! 

प्रग्या  बोध  : 

परमात्मा कबीर  चाचर  के  इस  पद  में बताते  है  अगर  कोई  इंसान  किसी  खाली  मकान  में  मेहमान  बन  कर  घुस  जाये  तो  उसका  कोन  स्वागत  करेगा  , कोन  देख  भाल  करेगा   कोन  उसकी  जारूरते   इच्छा  वासना कामना लालच तृष्णा  माया  मोह  पुरा  करेगा  कोई  नही  तब  तो  उसे  उस  व्यक्ती  को  पागल  ही  लोग  कहेंगे  !  जहाँ  कुछ  मिलता  नही  वहाँ  मन  लगाना  , समाय  बिताना  व्यर्थ  है  मूर्खता  है  ! एसे  धर्म  संस्कृती  विचार  आचार  को  अपनावो  जहाँ  तुम्हे   मन  की  शांती  मिले  !  विदेशी  यूरेशियान  वैदिक ब्राह्मणधर्म भूतो  का  ड़ेरा  है  उसे  छोडो   मुलभारतिय  हिन्दूधर्म  का  पालन  करो  तो  पगलाया  मन  शांती  मिले  ! 

धर्मविक्रमादित्य कबीरसत्व परमहंस 
दौलतराम 
जगतगुरू नरसिंह मुलभारती
मुलभारतिय  हिन्दूधर्म  विश्वपीठ संस्थान 
कल्याण  , अखण्ड  हिन्दुस्तान , शिवशृष्टी

Monday, 24 November 2025

Pavitra Bijak : Pragya Bodh : Chaachar : 2 : 20

पवित्र बीजक : प्रग्या  बोध  : चाचर  : 2 : 20

चाचर  : 2 : 20

अन्त  बिलैया  खाय , समझु  मन  बौरा  हो  ! 

शब्द  अर्थ  : 

अन्त  = अन्त्तता  , आखिर  में  , मृत्यू  पर  ! बिलैया = बिल्ली  ! खाय  = मार  देना ,  खाना   !  

प्रग्या  बोध  : 

परमात्मा  कबीर  चाचर  के  इस  पद  में  बताते  यह  जीवन  लालच  माया  मोह  इच्छा  तृष्णा  वासना भरा  है  जैसे  ये  सभ  चुहे   बिल्ली  का  खेल  हो ! ज़िस  प्रकार  बिल्ली  चुहे  को  पकडने   के  बाद आसनी  से  एक  दम  मारती  नही  बिच  बिच  में  उसे  छोड  देती  है  ताकी  वो  थोडा  भागे , फिर  उसे  बिल्ल  पकडती  है  , यह  चुहे  बिल्ली  का  खेल  बहुत  देर  तक  चलते  रहता  है और  खेल  खेल  कर  अंत  में  बिल्ली  चुहे  को  मार  कर  खा  जाती  है  वैसे  ही  माया  जीवन के  साथ  खेल  करती  है  और  अंत  में  जीवान  कोही  खा  जाती  है  यहाँ  तात्पर्य  है  अनंता  अधर्म  आप  पर  हावी  हो  जाये  तो  जीवन  व्यर्थ  ही  गया  समाजो  ! इस  लिये  हमेशा  सतर्क  रहो  , जागृत  रहो  शिल  सदाचार  के  मार्ग  से  ना  भटको  माया  मोह  की  बिल्ली  को  नजदिक  ना  आने  दो  ! 

धर्मविक्रमादित्य कबीरसत्व परमहंस 
दौलतराम 
जगतगुरू  नरसिंह  मुलभारती 
मुलभारतिय  हिन्दुधर्म  विश्वपीठ 
कल्याण , अखण्ड  हिन्दुस्तान , शिवशृष्टी

Sunday, 23 November 2025

Pavitra Bijak : Pragya Bodh : Chaachar : 2 : 19

पवित्र बीजक : प्रग्या बोध :  चाचर :  2 : 19

चाचर  : 2 : 19

पढे  गुने  क्या  कीजिये , मन  बौरा  हो  ! 

शब्द  अर्थ  : 

पढे  = शिक्षा  लिये  ! गुने  = गुनवान ! क्या  कीजिये  = क्या  फायदा   ! मन  बौरा  हो  = मन  काबू  मे  न  होना  ! 

प्रग्या बोध  : 

परमात्मा  कबीर  चाचर  के  इस  पद में  कहते है  लोग  कही  जाकर  स्कुल  , विद्दयापीठ  , गुरू , गुरूकुल  आदी  से  ऊची  ऊची  पढाई  करते   है  कई  विषय  , अभ्यासक्रम   पुरा  करते  है  डिग्रीया और  गूण  हासिल  करते  है  ! उन्हे  पंडित  ग्यानी  ब्राह्मण  आदी  न  जाने   कितने  उपाधी  अलंकरण से  सन्मानित  किया  जाता  है  पर  इन  लोगोंका  अगर   मन  पर  कोई  बस  नही  चलता  मन  इनके  काबू  मे  नही  रहता  माया  मोह  तृष्णा  लालच  अहंकार  आदी  के  कारण  भटकता  रहता  है  और  धर्म  के  बाजय  अधर्म  करते  रहते  है  तो  इनके  पढे  लिखे  ग्यानी  पंडित  होने  से  क्या  फायदा  ? पुछते  है  धर्मात्मा  कबीर  ! कबीर  साहेब  उस  ग्यान  को  ही  सच्चा  ग्यान  मानते  है  जो  मन  मे  काबू  मे  रख  कर  सद्धर्म  मुलभारतिय  हिन्दूधर्म का  आचरण  करे  ! 

धर्मविक्रमादित्य कबीरसत्व परमहंस 
दौलतराम 
जगतगुरू  नरसिंह मुलभारती 
मुलभारतिय हिन्दूधर्म विश्वपीठ 
कल्याण  , अखण्ड  हिन्दुस्तान , शिवशृष्टी

Saturday, 22 November 2025

Pavitra Bijak : Pragya Bodh : Chaachar : 2 : 18

पवित्र बीजक : प्रग्या बोध : चाचर  : 2 : 18

चाचर  : 2 : 18 

एसो  भरम  विचार , समुझि  मन  बौरा  हो ! 

शब्द  अर्थ  : 

एसो  = इस  प्रकार के ! भरम  =  झूठ  ! विचार  = धर्म ,  संकृति  ! मन  बौरा  = अस्थिर  मन  ! 

प्रग्या  बोध : 

परमात्मा  कबीर  चाचर  के  इस  पद  में  कहते  है भाईयों  झूठा  धर्म  संस्कृती  का  पलान  ना  करो  जैसे  विदेशी  यूरेशियन  वैदिक  ब्राह्मणधर्म  यह  पुरा  का  पुरा  झूठ  और फरेब  ,भ्रमित  करने  वाला  विचार  आचार  है  वह  धर्म  नही  अधर्म  है  संस्कृती  नही  विकृती  है  एसे  अधर्म  और  विकृती का  पालन  करना  ही  दर्षाता  है  की  आप  का  मन  पगला  गया  है  आप  भ्रमित  हो  गये  हो ! 

धर्मविक्रमादित्य कबीरसत्व परमहंस 
दौलतराम 
जगतगुरू नरसिंह मुलभारती 
मुलभारतिय हिन्दूधर्म विश्वपीठ 
कल्याण ,अखण्ड  हिन्दुस्तान , शिवशृष्टी

Friday, 21 November 2025

Pavitra Bijak : Pragya Bodh : Chaachar : 2 : 17

पवित्र  बीजक : प्रग्या बोध : चाचर :  2 : 17

चाचर  : 2 : 17

ज्यों  सुवना  ललनी  गह्यो , मन  बौरा  हो  ! 

शब्द  अर्थ  : 

ज्यों  = ज़िसके  !  सुवना =  वासना , अच्छा  लगना , भाना  , तारीफ  , गीत  !   ललनी  = स्त्री !  गह्यो  = गया  ! मन  बौरा  = मन  पगला  गया , बेकाबू  हो  गया  ! 

प्रग्या  बोध  : 

परमात्मा  कबीर  चाचर  के  इस  पद  में  कहते  है  भाईयों  सैय्यम  बहुत  अच्छी  और  बडी  बात  है  ! पर  स्त्री  पर  लालच  भरी  वासना  न  रखो  , जो  एसा  करता  है  पर  स्त्री  पर  बुरी  नजर  रखता  है , उसकी  तारीफ  कर  उसके  गीत  गाता  है  समजो  वह  वासना  मे  अंध  हुवा  है !   विवेकहीन हुवा  है  और  खुद  का  ही  नुक्सान  करने  वाला  है  !  एसा  अधर्म  कर  भला  किसी  का  क्या  भला  हो  सकता  है  ! यह  वृत्ती  ज़हाँ  नही  वहाँ  चोच  मारने  वाले  सुवे  जैसी  है  ! 

धर्मविक्रमादित्य कबीरसत्व परमहंस 
दौलतराम
जगतगुरू  नरसिंह  मुलभारती 
मुलभारतिय  , हिन्दुधर्म , विश्वपीठ 
कल्याण  , अखण्ड  हिन्दुस्तान , शिवशृष्टी

Thursday, 20 November 2025

Pavitra Bijak : Pragya Bodh : Chaachar : 2 : 16

पवित्र बीजक :  प्रग्या बोध :  चाचर :  2 : 16

चाचर  : 2 : 16 

घर  घर  खायो  ड़ाँग  , समुझि  मन  बौरा  हो  ! 

शब्द  अर्थ  : 

घर  घर  =  द्वार  द्वार  भतकना  : खायो  = अन्न  और  अन्य  वस्तु  के  लिये  ! डाँग  = कुत्ता  ! मन  बौरा  हो  = मन  अस्थिर  है  !

प्रग्या  बोध  : 

परमात्मा कबीर चाचर के इस पद में बताते  है  भाईयों  अगर  कोई   व्यक्ती  कुत्ते  की  तरह घुम  रहा  है  तो  समजो  वह  अस्थिर  और  चंचल  है  वह  एक  घर  के  लोग  ,अन्न  बर्ताव  से  खुश  नही  है  वैसा  ही  मानव  जब  मोह  माया  के  कारण  अस्थिर  मन  का  हो  जाता  है  तब  अपना  विवेक  खो  देता  है ! कबीर  साहेब  आत्म  संतुष्ठी  और  अपने   भीतर  झाकना  पर  विशेष बल  देते  है  , भटकाव  का  कारण  ही  अतृप्ती  है  वासना  तृष्णा  है  वर्णा  कुत्ता  क्यू   द्वार  द्वार  भटकता  ? वैसे  ही  अतृप्त  मानव  कुत्ते  की  तरह  माया  मोह  में  पड  इच्छा  तृष्णा  के  पिछे  विवेक  खो  कर  भटकता  रहता  है  ! 

धर्मविक्रमादित्य कबीरसत्व परमहंस 
दौलतराम 
जगतगुरू नरसिंह मुलभारती 
मुलभारतिय हिन्दूधर्म विश्वपीठ 
कल्याण , अखण्ड  हिन्दुस्तान , शिवशृष्टी

Wednesday, 19 November 2025

Pavitra Bijak : Pragya Bodh : Chaachar : 2 : 15

पवित्र बीजक : प्रग्या  बोध  : चाचर  : 2 : 15

चाचर  : 2 : 15 

ऊँच  नीच  समझेउ  नहीं  , मन  बौरा  हो  ! 

शब्द  अर्थ  : 

ऊँच  = उन्नात  , प्रगती  ! नीच  = अवनती , निचे  आना  !  समझेउ  = समजाते  नही  ! मन  बौरा  हो  = मन  मे  शांती  नही  ! 

प्रग्या बोध : 

परमात्मा  कबीर  चाचर  के  इस  पद  में  बताते  है  भाईयों  उन्नाती  विकास  किसे  कहते  है  जानो  अवनती  , दूर्गती  किसे कहते  है  जानो  , ऊचनीच  भेदाभेद  अस्पृष्यता  जाती  नही  ना  वर्ण  है  , जो  धार्मिक  है  जो  सदधर्म  जानता  और  मानता  है  वह  ऊँच  है  श्रेष्ठ  है  जो  अधार्मिक है , विकृत  धर्म  मानता  है  वह  निच  है  ! विदेशी  वैदिक  ब्राह्मण  नीच  है  क्यू  की  वे  वर्ण जाती  , भेदभाव  अस्पृष्यता  विषमाता  मानते  है  उनकी  मन  स्थिती  विकृत  है  अधर्म  से  भरी  है  ! मुलभारतिय  हिन्दू  श्रेष्ठ  है  क्यू  की  वो  धर्म  को  मानते  है  ,सदधर्म समता   ममता भाईचारा को  मानते  है  शिल  को  मानते  है  जो  इस  सत्य  धर्म  को  नही  मानते  वे  वैदिक  ब्राह्मण  बुद्धीहीन , मन  से पागल  मनोऋग्ण लोग  है  ! 

धर्मविक्रमादित्य कबीरसत्व परमहंस  
दौलतराम 
जगतगुरू नरसिंह मुलभारती 
मुलभारतिय  हिन्दुधर्म विश्वपीठ 
कल्याण , अखण्ड  हिन्दुस्तान , शिवशृष्टी

Tuesday, 18 November 2025

Pavitra Bijak : Pragya Bodh : Chaachar : 2 : 14

पवित्र  बीजक :  प्रग्या बोध :  चाचर 2 : 14

चाचर  : 2 : 14

घर  घर  नाचेउ  द्वार  , समुझि मन  बौरा  हो  ! 

शब्द  अर्थ  : 

घर  घर  = ये  गुरू  से  वो  गुरू  , ये  धर्म  से  वो  धर्म  विचार  आदी  ! नाचेउ  : भटकाना  ! द्वार  = घर  का  द्वार  य़ा  रास्ता , गली गली !  बौरा  = पागल , अशांत  !

प्रग्या बोध : 

परमात्मा  कबीर चाचर  के  इस  पद  में कहते है भाईयों  मन  को  स्थिर  रखो  इधर  उधर  ना  भटकने  दो , जब  मन  इधर  उधर भटके  तो  समजो  सही  रास्ते  पर  नही  हो  सही  संगत  मे  नही  हो  सही  धर्म  का  पालन  नही  कर  रहे  हो  सही  गुरू  नही  मिला  है  जो  आपकी  तृष्णा  को  शांत  कर  दे  ! माया  मोह  इच्छा वासना कामना लालच तृष्णा  ये  सब  द्वार  है  जो  हम  द्वार  द्वार  भटकते  है  ! सही  धर्म  और  गुरू  मित्र  आपको  धर्म  अर्थात  शिल  सदाचार  भाईचार समता ममता का मार्ग  बताता  है  तभी  मन  में  ठहराव  आता  है  वही  स्थिरता  ,शांती  लाने  का  मार्ग  मुलभारतिय  हिन्दूधर्म  है  ! 

धर्मविक्रमादित्य कबीरसत्व परमहंस 
दौलतराम 
जगतगुरू नरसिंह मुलभारती 
मुलभारतिय  हिन्दूधर्म  विश्वपीठ 
कल्याण , अखण्ड  हिन्दुस्तान , शिवशृष्टी

Yamraj Nahi Mulbhartiy Jindudharmi Maharaj ! Daulatram

#यमराज_नही_मुलभारतिय_हिन्दूधर्म_महाराज !

मृत्यू  के  देवता  के  नाम  से  विख्यात  यमराज  वास्तव  मे  सिंधु  हिन्दू संस्कृती  के  मुलभारतिय हिन्दूधर्म महाराज  है  जो  धर्म  और  राज्य दोनो  के  प्रमुख  थे  ज़िन्होने  विदेशी  यूरेशियन  वैदिक  ब्राह्मणधर्मी   लोगोंको  गले  ऊतारा  था  ! वह  धर्म  राज  भी  था  जो  किसी  के  साथ  अन्याय  नही  करता  था  ! मुलभारतिय हिन्दूधर्म  के  शिल  सदाचार  भाईचारा समता के  मार्ग  से  चलने  वाले  किसी  व्यक्ती  को  अनावश्यक  कोई  हानी  नही  पूहचाता  था  ! 

यमराज का  सिंगी  मुकुट  सिंधुहिन्दू  संस्कृती  का  ध्योतक  है  ! वह  सिंधुहिन्दू  संस्कृती  और  समता  धर्म  का  वाहक  था  और  विदेशी  यूरेशियन  वैदिक  ब्राह्मणधर्म  के  वर्ण जाती  भेदभाव का  विरोधी  था  , मुलभारतिय पशु  गाय  बैल  भैस भैसा  और  अन्य  प्राणी  का  संरक्षक  था   उसका  वाहन  भैसा  था  जैसे  शिव  का  वाहन  बैल  था  !  

वह  मुलभारतिय  गणराज  नागवंशी  शिव  का  एक  गण  राज्य  का  प्रमुख  था   और  उसका  भक्त  था  ! 

यमराज  एक  सच्चा  मुलभारतिय  हिन्दुधर्मी   राजा  हुवा  है  जो  दयालू  भी  था  उसने  शिव  उपासक और  मुलभारतिय  हिन्दूधर्म  का  समता  विचार  मानने  वाले  लोगोंको  भी  मौत  के  मुह  से  बचाया  था  जैसे  मारखण्डे  का  पुत्र  को  शिव  के  कहने से  और  सावित्री  के  कहने  से  उसके  पती  की  जान बचाई  !  सर्वसमभाव  और एक  जैसा  न्याय  यह  उसके  विचार  है  ! 

#दौलतराम

Monday, 17 November 2025

Pavitra Bijak : Pragya Bodh : Chaachar : 2 : 13

पवित्र बीजक : प्रग्या बोध  : चाचर  : 2 : 13

चाचर  : 2 : 13

छुटन की  संशय परी , मन  बौरा  हो  ! 

शब्द  अर्थ  : 

छुटन  = छुवाछुत  !  संशय  = विचार  ! बौरा  = मूर्ख  ! 

प्रग्या  बोध  : 

परमात्मा  कबीर  चाचर  के  इस  पद  में  बताते है  की  छुवाछुत  ,अस्पृष्यता  का  विचार  रखाना  मूर्खता  है !   जो लोग  छुवाछुत  और  अस्पृष्यता  का  धर्म  मानते  है उसे  धर्म  मानते  है  वे  अधर्मी  निच  मूर्ख  है  , वे  कभी  भी  मोक्ष  , सदगती  प्राप्त  नही  कर  सकते  ! ये  संशइ  लोग  मन  मे  हमेशा  भटकते  रहते है  क्या ये  स्पृष्य  है  क्या  ये  अस्पृष्य  है  इसे  छुना  चाहिये  या  नही  छुना  चाहिये  ! 

धर्मविक्रमादित्य कबीरसत्व परमहंस 
दौलतराम 
जगतगुरू नरसिंह मुलभारती 
मुलभारतिय हिन्दूधर्म विश्वपीठ 
कल्याण , अखण्ड  हिन्दुस्तान , शिवशृष्टी

Sunday, 16 November 2025

Pavitra Bijak : Pragya Bodh : Chaachar : 2 : 12

पवित्र  बीजक  : प्रग्या बोध  : चाचर  : 2 : 12

चाचर  : 2 : 12

लीन्हों  भुजा  पसारि , समुझि मन  बौरा  हो  ! 

शब्द  अर्थ  : 

लीन्हों   = लिया  ! भुजा  पसारि  = बल  का  प्रदर्शन ,   अहंकार , घमंड ! समुझि  मन बौरा  हो  = समझो  मन  बे  काबु  हो  गया है  ! 

प्रग्या बोध : 

परमात्मा  कबीर  चाचर  के  इस  पद  में  कहते है  कोई  व्यक्ती  अपने  बाहु  का  बल  , शक्ती  , खुर्ची  का  रोब  दिखता  हो  और  दुसरे  पर  अन्याय  करता  हो  , अपमान  करता  हो  दुसरे  को  ताकत के  बलबुते  गुलम बनाता  हो  तो  समझो  वो  अधर्मी   हो  गया  है  अहंकारी  हो  गया  है  और  मूर्ख  अग्यानी  हो  गया  है  ! शक्ती  बल  का  दूर्पयोग  करना  बेकार  है  क्यू  की  वो  व्यर्थ  है  घमण्डी  का  राजपाट  सत्ता  अहंकार  भी  एक  दिन  टूटता  है  वह  भी  मिट्टी  मे  मिल  जाता  है  ! 

धर्मविक्रमादित्य कबीरसत्व परमहंस 
दौलतराम 
जगतगुरू  नरसिंह  मुलभारती 
मुलभारतिय  हिन्दूधर्म  विश्वपीठ 
कल्याण  , अखण्ड  हिन्दुस्तान , शिवशृष्टी

Saturday, 15 November 2025

Pavitra Bijak : Pragya Bodh : Chaachar : 2 :11

पवित्र बीजक : प्रग्या बोध : चाचर : 2 : 11

चाचर : 2 : 11

मर्कट मूठी स्वाद की , मन बौरा हो ! 

शब्द अर्थ : 

मर्कट = बन्दर ! मूठी = मिठाई ! स्वाद की = स्वाद की = स्वाद भरी ! मन बौरा हो = मान विचालित हो ! 

प्रग्या बोध : 

परमात्मा कबीर चाचर के इस पद में बताते है की बन्दर क्या जाने अद्रक का स्वाद ! अद्रक बहुत गुणी पदर्थ , खाने की वस्तु है पर बन्दर के हाथ लग जाये तो उसे इधर उधर ऊछल धुम मचा कर फेक देगा ! उसे बहुत महंगी स्वाद भरी कोई मिठाई दो तो भले वो आपके लिये मुल्यवान है पर बन्दर तो उसका मुल्य जानता नही वो उसके साथ ऊछल कुद का खेल कर बर्बाद कर देगा ! वैसे ही जो लोग धर्म शिल सदाचार का मुल्य नही जानते वे बन्दर की तरह ही है जो आपना अमुल्य मानव जीवन खेल कुद माया मोह अहंकार अग्यान में व्यर्थ गवा रहे है वे पागल ही है समजो ! 

धर्मविक्रमादित्य कबीरसत्व परमहंस 
दौलतराम 
जगतगुरू नरसिंह मुलभारती 
मुलभारतिय हिन्दुधर्म विश्वपीठ 
कल्याण , अखण्ड हिन्दुस्तान , शिवशृष्टी

Friday, 14 November 2025

Pavitra Bijak : Pragya Bodh : Chaachar : 2 :10

पवित्र  बीजक : प्रग्या  बोध  :  चाचर  : 2 : 10

चाचर  : 2 : 10 

अंकुश  सहियो  सीस , समुझि  मन  बौरा  हो  ! 

अंकुश  = गुलामी  , लाचारी !  सहियो  = सहन  कर  रहा  है  ! सीस =  सर , पगडी  , सन्मान,  आत्म  सन्मान  ! समुझि  मन  बौरा  हो  = मन  काबु  मे  न  होना  , लाचार मन  ! 

प्रग्या  बोध  : 

परमात्मा  कबीर  चाचर  के  इस  पद  में  कहते  है  मानव  की  इज्जत  मान  सन्मान , आत्म  सन्मान  का प्रतिक  उसकी  टोपी  , पगडी  , सर  और  सर का ताज  होता  है !  जब  आदमी  उसको  किसी  के  कदमो  में  रख  देता  है  और  गुलामी  लाचारी  स्विकार  लेता  है  अधर्म  स्विकार  लेता  है  तब  समजो  उसने  विवेक  खो  दिया  है  !  अपना  विवेक  बुद्धी  आत्मसन्मान  कभी भी  गीरवी  ना  रखो  किसिके  गुलाम  न  बानो  , आत्म  सन्मान  को  ठेच  पुहचे  एसे  विकृत  संस्कार  अस्पृष्यता  छुवाछुत  ऊचनीच  भेदाभेद  मानने  वाले  धर्म  संस्कृती  को  मान्य  ना  करो  ! समता  शिल  सदाचार  आत्म  सन्मान ही  मानव  की  पहचान  है  जो  मुलभारतिय  हिन्दू  धर्म  की  सिख  है  ! 

धर्मविक्रमादित्य कबीरसत्व परमहंस 
दौलतराम 
जगतगुरू  नरसिंह  मुलभारती 
मुलभारतिय हिन्दूधर्म विश्वपीठ 
कल्याण , अखण्ड  हिन्दुस्तान , शिवशृष्टी

Thursday, 13 November 2025

Pavitra Bijak : Pragya Bodh : Chaachar : 2 : 9

पवित्र बीजक : प्रग्या बोध : चाचर :  2 : 9

चाचर  : 2 : 9

काम  अन्ध  गज  बशि  परे , मन  बौरा  हो  ! 

शब्द  अर्थ  : 

काम  = कामना , वासना  , इच्छा , तृष्णा , लैंगिक  इच्छा  ! अन्ध  = अन्य  कुछ  न  शुझने  वाला ,   इच्छा  मे  पागल  हुवा  ! गज  = हाथी  ! बशि  परे  = नियंत्रण  के  बाहर  , कुछ   नही  सुनता  ! मन  बौरा  हो  =  मन  विचालित  हुवा  , पगला  गया  ! 

प्रग्या बोध : 

परमात्मा  कबीर  चाचर  के  इस  पद  में  कहते  है  भाईयों  जैसा  मदमस्त  हुवा  हाथी  केवल  लैंगिक  सुख  , इच्छा  पूर्ती  के  लिये  हस्थिनी  चाहता  है  और  अन्य  किसी  भी  बात  से  संतुष्ठ  नही  होता  किसी  की  कुछ  नही  सुनता  ना  माहुत  के  आदेश  का  पलान  करता  है  वैसे  ही  इच्छा  तृष्णा  के  कारण  मन  किसी  की  कुछ  नही  सुनता  उस  समय  केवल  धिरज  और  संयम  से  ही  काम  लिया  जा सकता  है  और  इसकी  शिक्षा  मुलभारतिय  हिन्दू  धर्म  के  शिलाचरण  से  ही  संभव  होता  है  शिल  का  धर्म  ही  मन  के  विकार  दुर  करता  है  ! 

धर्मविक्रमादित्य कबीरसत्व परमहंस 
दौलतराम 
जगतगुरू  नरसिंह मुलभारती 
मुलभारतिय हिन्दूधर्म विश्वपीठ 
कल्याण , अखण्ड  हिन्दुस्तान , शिवशृष्टी

Wednesday, 12 November 2025

Pavitra Bijak : Pragya Bodh : Chaachar : 2 : 8

पवित्र  बीजक :  प्रग्या बोध : चाचर  : 2 : 8

चाचर  : 2 : 8

चित्र  रचो  जगदिश , समुझि  मन  बौरा  हो  ! 

शब्द  अर्थ  : 

चित्र = विश्व  ! रचो  = निर्मिती  ! जगदिश  = देव  , ईश्वर  ! समुझि  मन  बौरा  हो  = मन  का  पागलपन  है  ! 

प्रग्या  बोध  : 

परमात्मा  कबीर  चाचर  के  इस  पद  में  बताते है  यह  संसार  किसी  अन्य  देवी  देवता  ईश्वर  ने  नही  निर्मांण  किया  है  !  ज़िस  तत्व  ने  यह  संसार  की  उत्पत्ती  हुवी  है  वह  खुद  निराकार  निर्गुण  अजर अमर   सार्वभौम  सदा  के  लिये  रहने  वाले  चेतन तत्व  राम  से  स्व  निर्मित  है !   उसका  कार्य  है  टूटना जुड़ना !  यही  क्षय  उत्पत्ती  है ! यहाँ  स्थिर  कुछ  भी  नही !   अन्य  कोई  देवी  देवता नही  !   ना  ब्रह्मा  विष्णु  जैसे  कोई  ईश्वर  है  जैसे  की  वैदिक  और  अन्य  बताते  है  ! यह  संसार  और  चेतन  तत्व राम   एक  ही  है  !  उस  चेतन  तत्व का  ना  कोई  चेहरा  है  न  गूण  है ,   वो  केवल  कैवल्य  शिवशक्ती  है  ! माया  मोह  इच्छा  वासना  कामना  लालच  तृष्णा  यह  मन  के  विकार  है !   जब  मन  में  यह  विकार  आते  है  तब  अधर्म  घटित  होता  है  और  उसके  परिणाम  अधर्म  का  कार्य  चक्र  से  और  अधर्म  निर्मांण   होता  है  ! इससे  बचने  का  उपाय  कोई  ईश्वर  देवी  देवता की  मूर्ती  पूजा  आराधना  उपासना  होम  हवन  बली आदी  विकृत  मार्ग  नही  ! मुलभारतिय  हिन्दूधर्म  का  शिल  सदाचार  के  मार्ग  से  ही  मन  ही  अशांती और  अधर्म  से  बचा  जा  सकता  है  ! 

धर्मविक्रमादित्य कबीरसत्व परमहंस 
दौलतराम 
जगतगुरू  नरसिंह मुलभारती 
मुलभारतिय हिन्दूधर्म विश्वपीठ 
कल्याण , अखण्ड  हिन्दुस्तान , शिवशृष्टी

Tuesday, 11 November 2025

Pavitra Bijak : Pragya Bodh : Chaachar : 2 : 7

पवित्र  बीजक  : प्रग्या  बोध : चाचर  : 2 : 7

चाचर  : 2 : 7 

कालबूत  की  हस्तिनी , मन  बौरा  हो  ! 

शब्द  अर्थ  : 

कालबूत  की  हस्तिनी = मदमस्त  हस्तिनी  ! किसी की  पर्वा  न  करने  वाली  ! मन  बौरा  हो  = मन  पागल  ! 

प्रग्या  बोध : 

परमात्मा  कबीर चाचर  के  इस  पद  में  कहते  है ज़िस  प्रकार  मस्ती  में  आई  हस्तिनी  और  हस्थी  किसी  की  पर्वा  नही  करते  यहाँ  तक  की  पालतु  हाथी  अपने  माहत  यानी  उसकी  देखभाल  करने  वाले  व्यक्ती  के  आदेश  का  भी  पालन  नही  करते कभी  कभी  उसी  को  मार  देते  है  उसी  प्रकार   मोह  इच्छा  वासना  कामना  लालच  माया  मानव मन  को  उस  मदमस्त  हाथी  जैसे  बना  देती  है ! जो  किसी  के  बस  मे  नही  रहता ! और  तो  और  खुद  की  भी  पर्वा  नही  करता  उसे  हाथी  पगला  गया  कहते  है  !  यहाँ  केवल  स्वधर्म  और  सतधर्म  ही  अंकुश  रख  सकता  है  !  बडा  कठीण  होता  है !   शिल  सदाचार  का  पालन करना  जरूर  है  !  यही  समय  होता  है  मानव  जन्म  के  य़तार्थ को  क्रितार्थ  बना  देने  की   ! मानव  जीवन  का  यही  उद्देश  है  चेतन  तत्व  राम  को  समजनेकी  ! पगलाये  मन  को  धर्म  आचरण  से  काबू  मे  रख  कर  निराकार निर्गुण  राम  के  दर्शन   करने  की  अवस्था  ही  निर्वांण  है  ! 

धर्मविक्रमादित्य  कबीरसत्व परमहंस 
दौलतराम 
जगतगुरू  नरसिंह मुलभारती 
मुलभारतिय हिन्दूधर्म विश्वपीठ 
कल्याण , अखण्ड  हिन्दुस्तान , शिवशृष्टी

Monday, 10 November 2025

Pavitra Bijak : Pragya Bodh : Chaachar : 2 : 6

पवित्र बीजक : प्रग्या  बोध : चाचर  : 2 : 6

बिन  कहगिल  की  ईँट ,  समुझि  मन  बौरा  हो  ! 

शब्द  अर्थ  : 

बिन  कहगिल  =  बिन  सुना , बिन  अस्तित्व  ! ईट  = मकान  बनाने  वाली  सामुग्री  , ईटे  आदी  ! मन  बौरा  हो  = मन  मूर्ख  है,  पागल  है  ! 

प्रग्या  बोध  : 

परमात्मा  कबीर  चाचर  के इस पद में बताते है  भाईयों  जो  लोग  बिना मजबुत  पाया  के  केवल  ईट  के  उपर  ईट  रखकर  मकान  बनाते  है  और  सोचते  है  पक्का  मकान  बन  गया  और  निर्विघ्न  उसमे  रह  सकते  है  वो  लोग  मूर्ख  अथवा  पागल  ही  होंगे  !  पकी  इट , मजबुत पाया  घर  के  लिये  जरूरी  है  वैसे  ही  अच्छी  सुखद  ज़िन्दागी के  लिये  अच्छा  धर्म  और   और  अच्छी  पकी संस्कृती  जरूरी  है  जो  मुलभारतिय  हिन्दूधर्म  है  और  सिंधु  हिन्दू  संस्कृती है  जो  शिल  सदाचार  भाईचार समता ममता का  मार्ग  है  ! 

धर्मविक्रमादित्य कबीरसत्व परमहंस 
दौलतराम 
जगतगुरू  नरसिंह  मुलभारती 
मुलभारतिय  हिन्दुधर्म विश्वपीठ 
कल्याण , अखण्ड  हिन्दुस्तान , शिवशृष्टी

Vaingangaa Ke Chhore Daulatram ! A poem by Anamik

#वैनगंगा_के_छोरे_दौलत !

वैनगंगा के छोरे दौलत 
तुने कर दिया कमाल 
1970 में 23: की उम्रमें 
नेटिवीज्म की निव ड़ाल ____

तुने एक मुव्हमेंट बनाई 
आजादी की युक्ती सुझाई 
नेटीव हिन्दुव मचाया धमाल 
तुने कर दिया कमाल ____ 

मुलभारतियों को जगाया 
सत्य हिन्दूधर्म को बताया
बीजक यही धर्मग्रंथ गाया  
तुने कर दिया कमाल ____

नेटिवीज्म नेटीव हिन्दुत्व 
जन्म दिया बन गया पिता 
हल किया तुने हर सवाल 
तुने कर दिया कमाल ____

विश्व को समता बताया 
विषमता के दूर्गुण गिनाया 
वर्णवादी ब्रह्मा हुवा बेहाल 
तुने कर दिया कमाल ____

#अनामिक_निर्गुण_निराकार

DD Raut is a prominent Blogger and Activist

D. D. Raut is a prominent blogger and activist associated with the "Native Rule Movement" and the concept of "Nativism to Native Hindutva". 
Key information about D. D. Raut:
Political/Social Stance: Raut advocates for "Nativism," a political and social ideology focused on the rights and rule of indigenous peoples (natives) of India.
Blog Content: His writings often cover topics related to the caste system in Hinduism, arguing against its post-Vedic developments and advocating for the restoration of dignity and equal rights for all sections of Hindu society based on Vedic principles. He uses his blog to promote the message of his movement.
Online Presence: He primarily blogs on a platform under the name "NATIVE RAUT" (nativeraut.blogspot.com) and is also active on social media platforms like Facebook, where his biography is detailed.
Affiliation: He is a Pracharak (campaigner/preacher) for SHDS (an organization not fully defined in the snippets, likely related to his movement).
Publications: His articles/posts can also be found on other forums and blogs, such as Speaking Tree and Boloji. 
It should be noted that the name "D. D. Raut" also appears in academic and research contexts (co-authoring scientific papers), but these individuals appear to be different people from the political/social blogger.

Father of Nativism Nativist DD Raut

#Father_of_Nativism_Nativist_DDRaut 

There was no "first nativist of the world" because "nativism" has two distinct meanings: one in philosophy and psychology .  

In philosophy, the ancient Greek philosopher Plato is considered one of the earliest proponents of nativism for his ideas that some knowledge is innate or inborn .  But that is not Nativism in true sense ! 

In the political sense, false nativism arose in the United States in the 19th century and was championed by various groups white ruling parties who themselves were europiyon origine and not Native of America,  Know-Nothing party. Real Native of America Red Indians were neglected ! 

Philosophical Nativism

Plato Is cited as one of the earliest nativists for the belief that certain knowledge, such as an understanding of "the forms," is innate rather than learned through experience.  But that is only thinking ideas not  physical !
 
Modern philosophers: Later rationalist philosophers like René Descartes also argued for the existence of innate ideas. Innate idea or thinking is not Nativism !

Modern science: Contemporary nativism in psychology and linguistics is supported by research that shows infants have innate abilities, such as language acquisition. 

Political Nativism
Origin: The political movement, which is characterized by opposition to immigration, emerged in the 19th century in the United States but the rulers themselves were not Native themselves ! 

Motivation: It was largely driven by economic and social anxieties caused by large waves of immigration from Europe during the Industrial Revolution.

Key groups: Notable groups included the Order of the Star-Spangled Banner and the Know-Nothing party.

In true sense in India  in 1970 Netivist DD Raut founded NATIVE RULE MOVEMENT  and defined Nativism and Native Hindutva !  Home Rule Movement and Swadeshi of Annie Besant Tilak , Gandhiji  etc were more for Videshi Brahmins benefits than Real Native , Indigenous, Aboriginal , Aadiwashi Mulbhartiy Hindudharmi people  ! Neither Congress nor other ruling parties like Bhartiya Janata Party ( BJP ) , RSS , Shiv Sena or even small  groups like BSP , RPI spoke in support of Nativism ! They accepted Reservation formula based on percentage of even Videshi Eureshiyan Vaidik Brahmindharm people who exploited the Native Hindu people who were of Equality thinking ! 

First time in world Nativist DD Raut said Videshi Eureshiyan Vaidik Brahmindharmi people who are approximately 3 percent in India are enemy of not only Hindu , Hindu Dharm , Hindustan but enemy of whole world as Videshi Vaidik Brahmindharm are Brahminwadi , Varnawadi, Manuwadi , Punjiwadi and Vasaahatwadi and  Enemy of Human ! 

Since 1970 Native Rule Movement is working for Nativism in all respect ! Native Peoples Party, Mulbhartiy Vichar Manch , Casteless Society of India , Mulbhartiy Hindudharm Vishwapeeth etc are the organisation wings which were established for Spreading Thought of Nativist DD Raut , Father of Nativism !

#Daulatram

Sunday, 9 November 2025

Pavitra Bijak : Pragya Bodh : Chaachar : 2 : 5

पवित्र बीजक : प्रग्या  बोध  :  चाचर  : 2 : 5

चाचर  : 2 : 5

बिना  नेव  का  देव  घरा , मन  बौरा  हो  ! 

शब्द  अर्थ  : 

बिना नेव  का  = बिना  नाम का !  देव  =  ईश्वर  ! घरा  = घर  को  लाये  , पूजते  है  ! मन  बौरा  हो  = मन  का  पागलपन  , मूर्खता  ! 

प्रग्या  बोध  : 

परमात्मा  कबीर चाचर  के  इस  पद  में  कहते  है भाईयों  जान  न  पहचान  लोगोंको  देव  ईश्वार  ना  मानो  !  न  नाम  जानते  हो  और न  कभी  मिले  हो  तो  भी  ये  ईश्वार  है  ये  देव  है  ये  ईश्वर  का  अवतार  है  ये  ईश्वर  का  दुत  है  ये  ईश्वर  का  बेटा  है  कहना  गलत  है  मूर्खता  है ! ईश्वर  ना  अवतार  है  ना  मूर्ती  पूजा  में  है  न उसकी  प्राण  प्रतिष्ठा  किसी  पत्थर  की  मुर्ती  मे  की  जा  सकती  है  ! अगर  कोई एसा  कहाता है  तो  वो  अपने मतलब और  फायदे  के  लिये  आपको  मूर्ख  बना रहा  है  समजो  और  एसे  लोगोंसे  धर्म  से  अनुष्ठान , जगह  व्यक्ती  धर्म    पूजा  से  दुर  रहो  !  वह  तो  परमतत्व  चेतन  राम  है  जो  निराकार  निर्गुण  है  !  

धर्मविक्रमादित्य कबीरसत्व परमहंस 
दौलतराम 
जगतगुरू नरसिंह मुलभारती 
मुलभारतिय  हिन्दूधर्म विश्वपीठ 
कल्याण , अखण्ड  हिन्दुस्तान , शिवशृष्टी

Saturday, 8 November 2025

Pavitra Bijak : Pragya Bodh : Chaachar : 2 : 4

पवित्र  बीजक  : प्रग्या  बोध  :  चाचर  :  2 : 4

चाचर  : 2 : 4 

भस्म  कीन्ह  जाके  साज  , समुझि  मन  बौरा  हो  ! 

शब्द  अर्थ  : 

भस्म  = राख  ! कीन्ह  = किया  ! जाके  = ज़िसके  ! साज  = शरीर  ! समुझि = समज  ले  ! मन  बौरा  हो  ! मन  दुखी , पागल  है  ! 

प्रग्या  बोध  : 

परमात्मा  कबीर  चाचर  के  इस  पद  में  कहते  है  जो  लोग  अपने  अद्भूत शरीर  को  जानबुझ  कर  हानी  पूहचाते  जैसे  की  नेशेड़ी  , दारूबाज ,  गंजेडी ,  घूटका  खाने  वाले  तंबाकु  बीडी  सिगारेट  आदी  के  शौक करने  वाले  वेश्या  स्त्री   गामी  ये  सभी  अपने  शरीर  का  दुरपयोग  कर  हानी  पहचाते  है  !  ये  सब  माया  मोह  इच्छा  तृष्णा वासना   के  गुलामी  के  कारण  होता  है  इन  से बचने  के  लिये  ही  धर्म  का  उपदेश  है  शिल  सदाचार  का  मार्ग  मुलभारतिय  हिन्दूधर्म  !  वही  मार्ग  परमात्मा  कबीर  अपनी  वाणी  पवित्र  बीजक  में  बताते  है  ! 

धर्मविक्रमादित्य  कबीरसत्व परमहंस 
दौलतराम 
जगतगुरू  नरसिंह मुलभारती 
मुलभारतिय  हिन्दूधर्म विश्वपीठ 
कल्याण , अखण्ड  हिन्दुस्तान  , शिवशृष्टी

Friday, 7 November 2025

Pavitra Bijak : Pragya Bodh : Chaachar : 2 : 3

पवित्र बीजक : प्रग्या  बोध : चाचर  : 2 : 3

चाचर  : 2 : 3

तन  धन  से  क्या  गर्भ  सी , मन  बौरा  हो  ! 

शब्द  अर्थ  : 

तन  = शरीर  ! धन  = संपत्ती  , पैसा  ! क्या  गर्भ  सी  = क्या  गर्व  करना  , क्या  अहंकार  करना  ! मन  बौरा  हो  = मन  की  मूर्खता  है  , पागलपन  है  ! 

प्रग्या  बोध  :

परमात्मा  कबीर  चाचर  के  इस  पद  में कहते  है  भाईयों  जो  लोग  शरीर  और  धन  संपत्ती  का  गर्व करते   है  वे  अहंकारी  और  मूर्ख  है  !  क्या  शरीर  , काया  उसकी  सुन्दारता  तारुण्य  जोश  सदा  के  लिये  रहता  है  ?  धन  संपत्ती  शरीर  काया तो  आनी  जानी  है , उसका  क्या  गर्व  और  अहंकार  करना  ! ये  अहंकार  ये  गर्व  निरर्थक  है  ज़िसमे  धर्म  नही  ! धर्म  अहंकारी  नही  बनाता  ना  मर्त्य  शरीर  का  मोह  सिखता  है  ! शिल  सदाचार  भाईचार  समता  ममता  सिखो  और  उसका  गर्व  करो  क्यू  की  ये  धर्म  है  और  सदा  के  लिये  सुखदाई  है  ! 

धर्मविक्रमादित्य कबीरसत्व परमहंस 
दौलतराम 
जगतगुरू नरसिंह मुलभारती 
मुलभारतिय  हिन्दूधर्म विश्वपीठ 
कल्याण  , अखण्ड हिन्दुस्तान , शिवशृष्टी

Thursday, 6 November 2025

Pavitra Bijak : Pragya Bodh : Chaachar : 2 : 2

पवित्र  बीजक  : प्रग्या  बोध  :  चाचर  : 2 : 2

चाचर  : 2 : 2

जामें  सोग  सन्ताप , समुझि  मन  बौरा  हो  ! 

शब्द  अर्थ  : 

जामें  = ज़िसमे , ज़िस  कारण , जब  भी  ! सोग  =  शोक  , दुख  , माया,   मोह , आसक्ती ,   वेदना   ! सन्ताप  =  क्रोध , नफरत , अहंकार  , घुस्सा , मारपिट  , युद्ध  ! समुझि = समजो  ! मन  = अंतकरण  ,  व्हृदय , प्रेम !   बौरा  = पागल , गलत ! 

प्रग्या  बोध  :  

परमात्मा  कबीर  चाचर  के  इस  पद  में  कहते  है  भाईयों अगर  तुम्हारे  मन  में  शोक  और  संताप  उठ  रहा  है  तो  समजो  एसा  कोई  कार्य  तुमसे  या  अन्य  से  हुवा  है  ज़िस  कारण  तुम्हारा  कोई  नुक्सान  हुवा  है  या  होने  वाला  है   और  उसको  सोच  कर  तुम्ह  शोक  ग्रस्त  हुवे  जा  रहे  हो !   या  एसा  कोई  कर्म  तुमसे  या अन्य  से  हुवा  है  ज़िसके  कारण  तुम्हारा  मन  चंचल  , विचलित  हो  रहा  है  !  तुम्हारे  अहंकार  को  चोट  पहूची  है ! जो  तुम  चाहते हो  वैसा  नही  हो  रहा  है  !  तब तुम्हारा  मन  मास्तिक  क्रोधित  हुवा  है  तब समजो   तुम्हे  शांती  की  जरूरत  है !   तब  शोक  और  संताप  दुर  रख  शांती  से  कारण  और  निवारण  पर  सोचने  की  जरूरत  है  !  मनस्ताप  करने  से  और  काम  खराब  ना  करो !  जरा   रुक  जावो  , धर्म  के  बारे  मे  सोचो !   शिल  सदाचार  क्या  है  जानो  और  तब  आगे  बढो  ! जब  मन  क्रोध  भरा  हो  , अहंकार से  भरा  हो  , नफरत  से  भरा  हो  वह  खुद  को  हानी  पहूचाता  है  ! 

धर्मविक्रमादित्य कबीरसत्व परमहंस 
दौलतराम 
जगतगुरू नरसिंह मुलभारती 
मुलभारतिय  हिन्दूधर्म विश्वपीठ 
कल्याण , अखण्ड  हिन्दुस्तान , शिवशृष्टी

Wednesday, 5 November 2025

Pavitra Bijak : Pragya Bodh : Chaachar : 2 : 1

पवित्र बीजक : प्रग्या बोध :  चाचर  :  2 : 1

चाचर  : 2 : 1

जारो  जग  का  नेहरा , मन  बौरा  हो  ! 

शब्द  अर्थ  : 

जारो  = जलावो  , नस्ट  करो  ! जग  का  नेहरा  = जग  की  लालच  माया  मोह तृष्णा  इच्छा  वासना  कामना  ! मन  = मानव  मन  जीस  पर  माया   का  अधिकार  है  ! बौरा  = पागल , दिवाना  ! 

प्रग्या  बोध  : 

परमात्मा  कबीर  चाचर  के  इस  पद  में  कहते  इस  संसार  में  लोग  दुखी  क्यू  दिखते  है  इस  का  कारण  ही  संसार  का  मोह  है !  संसार  के  प्रती  लगाव , माया  तृष्णा  ही  है  !  विरक्त भाव  का  निर्मांण  करो ,  संसार  की  आसक्ती  ने  लोगोंको  उसका  गुलाम  और  दिवाना  बना  दिया  !  मन  माया  मोह  वश  अहंकारी  लालची  झूठा  मक्कार  अधमी  चौर  लूटेरा  पापी  हो  कर  केवल  क्षणिक  सुख  के  लिये  गलत  और अधार्मिक  कृत्य  करता है  और  जैसे  की  अधर्म  का  फल  दुख  ही  है  आगे  उसे  दुख  झेलना  पडता  है  ! 

कबीर  साहेब  यहाँ  सावधान  करते  है , जग के  प्रती  आसक्ती  को  सहज सरल जीवन  योग  मार्ग  अर्थात  मुलभारतिय  हिन्दूधर्म  पालन से  काबू  मे  रखने  की  बात  करते  है ! 

धर्मविक्रमादित्य कबीरसत्व परमहंस 
दौलतराम 
जगतगुरू नरसिंह मुलभारती 
मुलभारतिय  हिन्दूधर्म विश्वपीठ 
कल्याण , अखण्ड  हिन्दुस्तान  , शिवशृष्टी

Hi Vaat ! The Way ! Nativist

#ही_वाट ! 

सांगणारें चा महापुर आहे 
एकणारे ची आहे वणवा 
ईथेच तर मार खातो बंधु 
काही तरी उपाय सूचवा ! 

सांगणारे बहु उदंड झाले 
एकणारे च्या खूर्च्या खाली 
पसार झाले भाडखावू भाऊ 
विचार सरणी कुठे उरली !

आहे का एक नेटीविस्ट 
लिहिल जो दारावर नाव 
लाविल नेटीविस्ट नावापूढे 
दाव मज असा तरूँण दाव ! 

भींती वर चे शब्द मिटले
लिहले होते हुक्मराण बना 
विसरले तो भीम क्रांतीकारी 
तो भीम स्वाभिमानी बाणा !

बंदकरा फुकाची बडबड आता 
पांच दहा वर्ष गप्प बसा 
नेटीवीज्म जरा समजून घ्या
नेटीव हिन्दुत्व च्या कामाला लागा ! 

#नेटीविस्ट

Tuesday, 4 November 2025

Pavitra Bijak : Pragya Bodh : Chaachar : 1 : 25

पवित्र बीजक : प्रग्या  बोध  :  चाचर  : 1 : 25

चाचर  : 1 : 25

कहहिं  कबीर  ते  ऊबरे , जाहि  न  मोह  समाय  ! 

शब्द  अर्थ  : 

कहहिं  कबीर  = कबीर  कहते  है  ! ते  = वे  लोग  ! ऊबरे  = भव  सागर  से   पार  होते  है  !  जाहि  = ज़िसमे !   न   मोह  = मोह  नही , अहंकार  नही   ! समाय  = है  ! 

प्रग्या  बोध  : 

परमात्मा  कबीर  चाचर  के  इस  पद  में  कहते  है  भाईयों  इस  भवसागर  से  उनकी  ही  नैय्या  पार  होती  है  ज़िनमे  माया  मोह  नही  है  ! ज़िसमे  माया  मोह  इच्छा  तृष्णा  वासना  आ  जाती  है  वह  फिछड  जाता  है  वही  घुमते  रहता  है  ! जीवन   के  भवंडर  मे  चक्रव्यूह  मे  फसा  घुमता  रहता  है  ! बार  बार  अनेक  योनियो  मे जन्म  लेकर  बार  बार  माया  मोह  के  कारण  लालच  मद  मत्सर  राग  द्वेश  आदी  षडरिपू  से  मार  खाता  रहता  है !   वासना  और  चाहत  का  गुलाम  गुलामी  मे  ही  सुख  धुन्डता है  ! 

कबीर  साहेब  कहते  वही  इस  भवसागर   से पार  हुवे  है  ज़िन्होने  इच्छा  माया  मोह  वासना  तृष्णा  का  रूप  पहचान  लिया  और  इसकी  पारख  करना  सिखा  ! कबीर  साहेब  ने  वो  धर्ममार्ग  बताया  जो  सहज  सरल  जीवन  योग  है ,   ज़िसे  मुलभारतिय  हिन्दूधर्म  कहा  जाता  है  !  जो  सनातन  पुरातन आदिवाशी  आद्यधर्म  है !   विश्व  का  प्रथम  धर्म  है  जो  शिल  सदाचार   समता  ममता  भाईचारा  सत्य  अहिंसा  का  मार्ग  है  ज़िसने  विश्व  की  कल्याणकारी  सिंधु  हिन्दू  नाग  गणराज्य  वेवस्था संस्कृती   का  निर्मांण  किया  ! 

धर्मात्मा  कबिर  उसी समतावादी  मुलभारतिय  हिन्दूधर्म  को अपनी  वाणी  पवित्र  बीजक  में पंधरा वी  शती  मे  फिर  से  बताया  और   सत्यधर्म  पुनरस्थापित  किया  ज़िसे  विदेशी  यूरेशियन  विषमतावादी  वैदिक  ब्राम्हणधर्म ने  कालुशित  किया  था  ! कबीर  साहेब  ने  बताया   विदेशी  यूरेशियन  वैदिक ब्राह्मणधर्म  और  मुलभारतिय  हिन्दूधर्म  अलग  अलग  है  ! मुलभारतिय  हिन्दूधर्म  मुक्ती  का  मार्ग  है  तो  विदेशी  यूरेशियन विषमतावादी  वैदिक  ब्राह्मणधर्म नर्क  का  द्वार  है  ! 

धर्मविक्रमादित्य कबीरसत्व परमहंस 
दौलतराम 
जगतगुरू  नरसिंह  मुलभारती  
मुलभारतिय  हिन्दूधर्म विश्वपीठ 
कल्याण , अखण्ड  हिन्दुस्तान  , शिवशृष्टी

Monday, 3 November 2025

Pavitra Bijak : Pragya Bodh : Chaachar : 1 : 23

पवित्र बीजक : प्रग्या बोध  : चाचर  : 1 : 23

चाचर  : 1 : 23

कज्जल  वाकी  रेख  है , अदग गया  नहिं  कोय  ! 

शब्द  अर्थ  : 

कज्जल  = काजल  ,  कालिख,  कोयला !  वाकी  = उसकी  !  रेख  =  रेखा , रेषा  , पहचान  ! अदग  = बेदाग  , अनछुवा  ! गया  = बचा   ! नहिं  कोय  = कोई  नही  ! 

प्रग्या  बोध  : 

परमात्मा  कबीर  चाचर के  इस  पद  में  बताते  है  की  माया  इच्छा  तृष्णा  वासना  का  घर  एक  प्रकार  की  कोयले  की  खान  खदान  है  , जैसे   ललाना  आँख  मे  काजल  लगाती  है  सुन्दर  और  मादक  आँख  बनाने  के  लिये  और  उसकी  मोहकता  से  पुरूष  आकार्शित  होते  है  और  बिना  देखे  जा  नही  सकते  अन्देखा  नही  कर  सकते  वैसे  ही  कोयले  के  धन्धे  मे  हाथ  काले  होते  है  वैसे  ही  मानव  तृष्णा  वासना  इच्छा  मोह  माया  से  बेदाग  बच  नही  सकता  !  इस  से  बचाने  का  उपाय  है  धर्म  शिल  सदाचार  का  पालन  ! 

धर्मविक्रमादित्य  कबीरसत्व  परमहंस 
दौलतराम 
जगतगुरू  नरसिंह  मुलभारती 
मुलभारतिय  हिन्दूधर्म  विश्वपीठ 
कल्याण , अखण्ड  हिन्दुस्तान  ,  शिवशृष्टी

Friday, 31 October 2025

Pavitra Bijak : Pragya Bodh : Chaachar : 1 : 21

पवित्र बीजक : प्रग्या  बोध  : चाचर  : 1 : 21

चाचर  : 1 : 21

दृष्टी  परे  उन काहु  न  छाड़े , कै  लीन्हो  एकै  धाप  ! 

शब्द  अर्थ  : 

दृष्टी परे   =  आँख  से  देखा  !  उन  = उसे  ! काहु  न  छाड़े  = किसी  को  नही  छोडाती  ! कै  = कितने ! लीन्हो  एकै  धाप  = एक  ही  घास  में  चबा जाना  ! 

प्रग्या  बोध  :

परमात्मा कबीर चाचर के इस पद में बताते है की  माया  मोह  इच्छा  तृष्णा  वासना  बहुत  ही  फूर्तिली  है  किसी  पर  दृष्टी  पडी  नही  की  वो  उसे  चाहती  है  , दृष्टी  मे  आने  वाली  हर  चिज  को  वो  बडे  लालच  भरी  निगाहे  से  देखती  है  और  एक  झपटे मे  उसे  हाँसिल  करना  चाहती  है  निगाहे  इतनी  कातिल  होती  है  की  एक  ही  घास  मे  ग्रास मे  उसे  निगलना  चाहती  है  !  कबीर  साहेब  तृष्णा  का  रूप  और  उसके  काम  का  तारिका  बताते  है  ताकी  उसके ग्रास  से  बचा  जा  सके  ! 

धर्मविक्रमादित्य  कबीरसत्व परमहंस 
दौलतराम 
जगतगुरू  नरसिंह  मुलभारती 
मुलभारतिय  हिन्दूधर्म  विश्वपीठ 
कल्याण , अखण्ड  हिन्दुस्तान , शिवशृष्टी

Thursday, 30 October 2025

Devaachi Utarand ! Daulatram

#देवाची_ऊतरंड  ! 

हिन्दू  समाजा  मधे  देवघर  अनेक  देवी  देवता  ने सजलेले  असते  

कुल  देवता  एक  किव्हा  अनेक  असतिल  तर  त्यांच्या  प्रतिमा  चे  टाक  चान्दी  , तांबे  , सोने  या  धातु  चे  आपल्या  एपती  प्रमाणे  बनविलिले   असतात  ! नंतर  समाजाचे  संत  , गुरू  यांचे  सुद्धा  फोटो  वा  मूर्ती  ठेवली   असते  ! 

वरिष्ठ  देवता  मधे  गणपती ,  दूर्गा ,  सरस्वती  लक्ष्मी , राम ,   कृष्ण  असतात 

पशु  पक्षी  वृक्ष   दगड , फुल  यांत  नन्दी  , नाग  , कमल तुलसी , पिंपल , बेल  व  वट , शालिग्राम  हे  देव  किव्हा   देवांना  प्रिय  समजले   जातात  ! महादेव शिव  शंकर  एकुणच  कुटुम्ब  व  गण  नाग  देवा  प्रमाणे  पूज्यनिय  समजले  जातात  आणी  राम  कृष्ण  आदिचे  आराध्य  नागधारी  शिव  शंकर  हेच  समजले  जाते  ! बहुतिक  सर्वमुलभारतिय  हिन्दूधार्मियांनी  शिवाला  आदी  देव  आदीनाथ   देवादी  देव  माहादेव  मानले  आहे आणी  नागवंशी  आदिवाशींचे  ते  पूर्वी  पासुन  चे  सर्वोच्च  देव  राहिले  आहेत  ते   शिवपिंड  म्हणुन  !   

निराकार  शिव  हा  असा  पूढे आकार व  रूप  देवून    पूढे  जैंन  बौद्ध  यांनी  साकार  रूपात  आणला , मूर्ती  पूजा  पूढे  आली  ! 

सर्वोच्च  देवता   मधे  अर्थातच  शिव  महादेव  शंकर  समजला  जातो  ! 

हिन्दूधर्म  एकेश्वरी  धर्म  असुन  सुद्धा  मानव  जन्म  घेतलेले  शिव  राम  कृष्ण  बुद्ध  यांना  एक  ईश्वर   चे   अंश  ज्यांनी  विदेशी  यूरेशियन   वैदिक  ब्राह्मणधर्म   च्या  विषमाता  शोषण  जाती   वर्ण  वाद  ब्राह्मण  वाद  मनुवादी  विरुद्ध समाज  राष्ट्र  व  धर्मा   साठी  लढले  म्हणुन  त्यांना  देव  समकक्ष  समजून  पूजा  केली  जाते  जसे  विठ्ठल  , साई  बाबा  हे  सुद्धा  देवा  चे  अंश  वा  देव  समजले  जातत  ! 

साई  बाबा  स्वताला  परमात्मा  कबीर  चे  अवतार   वा  अंश  म्हणत  असत  ! स्वता  कबीर  मात्र  जरी  एकेस्वरी  परमात्मा  वादी  होते  तरी  त्यांनी  निराकार निर्गुण  अविनाशी   अजर  अमर  तत्व  चेतन  यास   राम  अर्थात  जो  मरा  नही असे  तत्व  चेतना  यास  परमात्मा  शृष्टी  चा  निर्माता  चालक मालक   सांगितले  व  सर्व  काही  चेतन  तत्व  हेच  आहे  सांगितले  त्या  मुले  त्यांनी  मूर्ती  पूजा , अवतार  ही  कल्पना  नाकारून   शिल  सदाचार  भाईचार  समता  ममता  शोषण  रहित  समाज  निर्मिती  सदधर्म  हेच  परमात्मा  प्राप्ती  चे  मार्ग  होत  असे  सांगितले  !   त्यांचा  सर्वोच्च  परमात्मा  म्हणजे   चेतनतत्व  निराकार  निर्गुण  अजर  अमर सार्वभौम  राम  जे  ते  स्वता  त्या  अवस्थेला  होते  ! 

मुलभारतिय  हिन्दूधर्माचे  सर्वोच्च  देव  शिल  सदाचार  हेच !  त्या  शिवाय  सर्व  पूजा ,  सोपस्कार , अर्चना  , प्रार्थना   आणी  जीवन  सुद्धा  व्यर्थ  होय  ! 

#दौलतराम

Pavitra Bijak : Pragya Bodh : Chaachar : 1 : 19

पवित्र बीजक  : प्रग्या बोध : चाचर : 1 : 19

चाचर  : 1 : 19

शिवसन  ब्रह्मा  लेन  कहो  है , और  की  केतिक बात  ! 

शब्द  अर्थ  : 

शिवसन  =  शिव  को  मानने  वाले  मुलभारतिय  हिन्दूधर्मी  !  ब्रह्मा  =  विदेशी  यूरेशियन  वैदिक  ब्राह्मणधर्म  का  निर्माता  ! लेन  कहो  = लेने  पर  मजबुर  हुवे  ! और  की  = अन्य  की  !  केतिक  बात  क्या  बात  करना ! 

प्रग्या बोध  : 

परमात्मा कबीर चाचर के  इस  पद में बताते है  विदेशी  यूरेशियन  वैदिक  ब्राह्मणधर्मीयोने  अवतारवाद  लाकर  मुलभारतिय  हिन्दूधर्म  के  लोक  देवता  खुद  शिव  को  एक  अवतार  बना  दिया  और  त्रीदेव  की  कल्पना  गढ  ड़ाली , मुलभारतिय  कितने  ही  लोगोंको  अवतार  बनाया  जैसे  राम  कृष्ण  बुद्ध  और  वैदिक  ब्राह्मणधर्म  मे  उनका  ब्राह्मणीकरण  कर  उन्हे  जाती  वर्ण  मे  बन्दिस्त  किया  तो  और  छोटे  मोटे  लोग  राजा  साधु  संत  की  क्या  बात  ! 

 विदेशी वैदिक ब्राह्मणधर्म  से  मुलभारतिय  हिन्दूधर्म  अलग  है  ये  बात  मुलभारतिय  लोगोने  समझना  आवश्यक  है  जरूरी  है !  अवतारवाद  की  कल्पना  ठुकराना  होगा  !  लंपट  ब्रह्मा  के  साथ  मुलभारतिय  हिन्दूधर्म  का  कोई  संबध  नही  यह  बताना  होगा !  राम  कृष्ण  बुद्ध  महाविर  आदी  विदेशी  यूरेशियन  वैदिक  ब्राह्मणधर्म  के  खिलाफ  थे  ,  वर्ण जाती जनेऊ  होम  हवन  ऊचनीच  भेदाभेद  अस्पृष्यता  छुवाछुत  शोषण  के  विरोध  मे  खडे  हुवे  थे  यह   बताना होगा !   इनको  विदेशी  यूरेशियन वैदिक  ब्राह्मणधर्म  से  मुक्त  कर  स्वतंत्र  करना  होगा  ! 

धर्मविक्रमादित्य  कबीरसत्व परमहंस 
दौलतराम 
जगतगुरू  नरसिंह  मुलभारती 
मुलभारतिय हिन्दूधर्म विश्वपीठ 
कल्याण , अखण्ड  हिन्दुस्तान , शिवशृष्टी

Pavitra Bijak : Pragya Bodh : Chaachar : 1 : 20

पवित्र  बीजक  :  प्रग्या  बोध  :  चाचर  : 1 : 20

चाचर  : 1 : 20 

एक  ओर  सुर  नर  मुनि  ठाढ़े , एक  अकेली  आप  ! 

शब्द  अर्थ  : 

एक  ओर   = एक  तरफ  , एक  पलडे  में  ! सुर  = राजे  , महाराजे   , सुरवीर !  नर  = सर्व  सामान्य  लोग  ! मुनि  = सन्यासी  , ग्यानी  ! ठाढ़े  = बिठाये  , खडे  किये  ! एक अकली आप   = एक  माया  , मोहनी   , तृष्णा  , इच्छा  सब  पर  भारी   ! 

प्रग्या  बोध  : 

परमात्मा  कबीर  चाचर  के  इस  पद  में  माया  मोह  तृष्णा , इच्छा  का  पडला  कितना  भारी  है  यह  समजाते  हुवे  कहते  है तराजू  के  एक  फलडे  में सभी  सामान्य  नर  नारि  , ग्यानी  मुनि  , राजा  महारजा  सभी  बीठावे  तोभी  एक अकेली तृष्णा  माया  मोह  इच्छा  वासना  का  पलडा  तबभी    भारी  है  ! कोई  माया  को  ज़ित  नही  सकता  जब  तक  कोई  इंसान  शिल  सदाचार  का  धर्म  पालन  नही  करता  ! 

धर्मविक्रमादित्य कबीरसत्व परमहंस 
दौलतराम 
जगतगुरू नरसिंह मुलभारती 
मुलभारतिय  हिन्दुधर्म विश्वपीठ 
कल्याण  , अखण्ड  हिन्दुस्तान , शिवशृष्टी

Pavitra Bijak : Pragya Bodh : Chaachar : 1 : 18

पवित्र बीजक : प्रग्या  बोध  : चाचर  : 1 : 18

चाचर  : 1 : 18

ग्यान  ड़ाँग  ले  रोपिया , त्रिगुण  दियो  है  साथ  ! 

शब्द  अर्थ  : 

ग्यान  =  हुशारी  , शिक्षा  ! ड़ाँग  = ड़ाल  , पेड   ! ले  = लेकर  आये  ! रोपिया  = प्रात्यारोपित  किया  , लगाया  ! त्रिगुण  = मानव  के  स्वाभव  , तिन  देव  का  विचार !  दियो  है  साथ  = धर्म  मान्यता  ! 

प्रग्या  बोध  : 

परमात्मा  कबीर चाचर  के  इस  पद  में  कहते  है  विदेशी  यूरेशियन  वैदिकधर्मी  ब्राहमिनो  ने  धर्म  ग्यान  के  नाम  पर  जो  वेद  और  भेद  ऊचनीच  जनेऊ  अस्पृष्यता  विषम0ता  छुवाछुत  का  अधर्म  और  विकृती  अपने  साथ  यूरेशिया  से  हिन्दुस्थान  मे  अपने  साथ  लाई  उस  गंदी  ड़ाल  को  शाखा  को  यहाँ  के  मुलभारतिय  हिन्दूधर्म  के  मूल  वृक्ष  पर  प्रात्यारोपित  किया  ज़िसको  वही जाती  वर्ण  अस्पृष्यता  भेदभाव  के  विष  भरे  फल  आये  !  उपर  से  इन  विदेशी  यूरेशियन  वैदिक  ब्राह्मण  धर्मियोने  मानव  मानव  मे  भेद  ऊचनिच   बनाने  के  लिये  त्रीगुण  सत  रज  तम  की  गलत  धारणा  निर्माण  कर अस्पृष्यता   विषमता  शोषण  को  धर्म  कहने   लगे  !  धर्मात्मा  कबीर  ने  इस  त्रिगुण  विचार  ,  त्रीदेव  ब्रह्मा  विष्णु  महेश  आदी  बकवास को  सिरे  से  खारीज  किया   ! 

धर्मविक्रमादित्य  कबिरसत्व परमहंस 
दौलतराम 
जगतगुरू  नरसिंह  मुलभारती 
मुलभारतिय  हिन्दूधर्म  विश्वपीठ 
कल्याण , अखण्ड  हिन्दुस्तान , शिवशृष्टी

Monday, 27 October 2025

Pavitra Bijak : Pragya Bodh : Chaachar : 1 : 16

पवित्र  बीजक : प्रग्या बोध  : चाचर  : 1 : 16

चाचर  : 1 : 16 

छिलकत  थोथे  प्रेम  सों , मारे  पिचकारी  गात  ! 

शब्द  अर्थ  : 

छिलकत  = छलकना  , दिखावटी  , नकली ! थोथे  =  बिना  काम  का  ,अधुरा  , बनावटी  ! प्रेम =  प्रित  , मैत्री !   सों  = वह  , वे  लोग  !  मारे  पिचकारी  गात  = होली  के   गाली  भरे  गीत  ! 

प्रग्या  बोध  :

परमात्मा  कबीर  चाचर  के  इस  पद  मे  दिखावटी  प्रेम  पर  कटाक्ष  करते  हुवे  कहते  है  विदेशी  ब्राहमिनोकी  प्रित  होली  के  रंग  जैसी  है  ज़िस  पर  प्रेम की  पिचकारी  मारी  जाती  है  उसका  कपडा  खराब  कर  नुक्सान  ही  करती  है  , बेरंग  करती  है  इनकी  प्रित  होली  के  उन  गानो  जैसी  ही  है  जाहाँ  प्यार  कम   गाली  अधिक  होती  है  !  ये  ब्राह्मण   बहुत  दिखवा  करते  है  ग्यानी  होने  का धर्म  का  पर  सब  झूठ  और  थोथे  है  ! 

धर्मविक्रमादित्य  कबीरसत्व परमहंस 
दौलतराम 
जगतगुरू  नरसिंह  मुलभारती 
मुलभारतिय  हिन्दूधर्म  विश्वपीठ 
कल्याण , अखण्ड  हिन्दुस्तान , शिवशृष्टी

Sunday, 26 October 2025

Pavitra Bijak : Pragya Bodh ; Chaachar : 1 : 15

पवित्र  बीजक  : प्रग्या  बोध :  चाचर  : 1 : 15

चाचर  : 1 : 15 

सनक  सनन्दन  हारिया ,  और  की  केतकी  बात  ! 

शब्द  अर्थ  : 

सनक  - सनन्दन = भागवत  पुराण  में  बताये  चार  बालक   सनक , सनन्दन  , सनातान  और  सनतकुमार   बडे  विरंची  समझे  जाते  है  ! हारिया  = हार  गये  ! और  = अन्य  ! केतकी  बात = कितनी  कहें ! 

प्रग्या  बोध  : 

परमात्मा  कबीर  चाचर  के  इस  पद  में  भागवत  पुराण  जो  वास्तव  में  भगवान  बुद्ध  से  लेकर  मौर्य  काल  के  राम  कृष्ण  आदी  के  ज़िवनी  पर  आधारित  है  उसमे  भगवान  बुद्ध  के  चार  मानस  पुत्र  सनक , सनन्दन , सनातन  और  सनतकुमार  ज़िन्होने  ब्राह्मणधर्मी  नारद  को  बौद्ध  भीक्कु  बनाया  था  वे  भी  हार  गये  इस  लिये  कहाँ  जाता  है  क्यू  की  किसी  समय  नारद  विरंचीपन  त्याग  कर  संसारी  बने  थे  ! इन्हे  बाद  में  विदेशी  यूरेशियन वैदिक  ब्राह्मणधर्म  के  ब्रह्मा  के  मानस  पुत्र  बताये  गये जो  बचपन  से  ही  विरंची  थे  ! शायद  ये  सभी  बुद्ध  के  बच्चौ  के  लिये  बनाये  गये श्रामनेर  संघ  के  सदश्य  रहे  हो  जैसे  राहुल  थे  और  बुद्ध  सभी बाल श्रामनेर  को  अपने  मानस  पुत्र  ही  मानते  थे  ! 

वैदिक  ब्राह्मणधर्म  ने  बुद्ध  की  नकल  कर  श्रामनेर  को  बटु बना  दिया  और  उसके  लिये  जनेऊ  संस्कार  निर्मांण  किया  ये  बटु  भी  घर  घर  जा  कर  भिक्षा  मांगते  थे  जैसे  श्रामनेर  , बौद्ध  भीक्कु  ! वामन  नाम  का  एक  ब्राह्मणधर्मी  बटू   को  राजा  बली   ने  केरला  मे  कुछ  भुमी  दान  दी  वही  कोंकण  केरला   में  विदेशी  वैदिक  ब्राह्मण टोलिया  बनाकर  बस  गये  और  बाद  में  विदेशी  यूरेशियन  वैदिक  ब्राह्मणधर्म  के  कर्मकांड होमहवन, वर्णभेद  विषमाता आदी  का  प्रचार  करते  रहे  ! 

धर्मविक्रमादित्य  कबीरसत्व  परमहंस 
दौलतराम 
जगतगुरू  नरसिंह  मुलभारती 
मुलभारतिय  हिन्दूधर्म  विश्वपीठ 
कल्याण , अखण्ड  हिन्दुस्तान , शिवशृष्टी